लोकसभा चुनाव 2024: क्या कांग्रेस ने खुद के पैर पर मार ली कुल्हाड़ी?

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (12 सितंबर 2023): अगले साल यानी 2024 में लोकसभा चुनाव होना है। सियासी बिसात बिछ गई है। सियासी गलियारों में सियासतदानों का गठजोड़, पाला बदलने और समीकरण साधने का खेल जारी है। इसबार के लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी और एनडीए गठबंधन के सहयोगी घटक दल के खिलाफ विपक्ष की पार्टियों ने I.N.D.I.A गठबंधन बनाया है।

लेकिन विपक्षी खेमा के लिए मुश्किल यह है कि दल तो मिल गए पर दिल नहीं मिल रहा, सभी क्षेत्रीय पार्टी के नेता अपने मुखिया को पीएम का उम्मीदवार घोषित करने में जुटे हैं। विपक्षी गठबंधन में सबसे अधिक सांसदों की पार्टी है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, और माना यह जा रहा है कि यूपीए गठबंधन का ही दूसरा रूप है I.N.D.I.A गठबंधन। लेकिन यूपीए गठबंधन में कांग्रेस अहम और निर्णायक भूमिका में थी जबकि अब पासा पलट गया है और कांग्रेस महज एक ‘पिछलग्गू पार्टी’ के तौर पर गठबंधन में है।

सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद आंख दिखा रही क्षेत्रीय पार्टियां

आज भी विपक्षी खेमे में सबसे अधिक सांसदों एवं विधायकों वाली पार्टी है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस। बावजूद इसके क्षेत्रीय पार्टी कांग्रेस के अहमियत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। सियासी पंडितों की मानें तो कांग्रेस अपने इन हालात के लिए स्वयं जिम्मेदार है। उन्होंने क्षेत्रीय पार्टी को उनके महत्व से अधिक तरजीह दी है और यही कारण है कि गठबंधन के भीतर ‘अपनी -अपनी डफली, अपना-अपना राग’ वाला हाल है।

विपक्ष की सियासत पर बात करते हुए एक वरिष्ठ पत्रकार ने बातचीत में बताया कि ” यूपीए के समय में राजद, जदयू और समाजवादी पार्टी जैसे क्षेत्रीय पार्टियां दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान से मिलने के लिए दफ्तर के बाहर खड़े मिलते थे। जबकि अब वही कांग्रेस मुंबई के I.N.D.I.A गठबंधन की बैठक में भाग लेने अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत राहुल गांधी एवं सोनिया गांधी तक वहां पहुंच जाती है। यह कांग्रेस के राजनीतिक पतन को दर्शाता है।”

वहीं आगे उन्होंने कहा कि “विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A में कई ऐसे सियासी पार्टी हैं जिनके एक भी सांसद नहीं है सदन में बावजूद इसके वो स्वयं को इस गठबंधन का अगुआ और कर्ता-धर्ता बताते हैं। उदाहरण के लिए लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और जयंत चौधरी की पार्टी रालोद के लोकसभा में एक भी सांसद नहीं हैं। जबकि लालू प्रसाद यादव एवं तेजस्वी यादव स्वयं को इस गठबंधन के झंडाबरदार बता रहे हैं। तो वहीं पीडीपी, सीपीआईएमएल, एमएमके, एमडीएमके, वीसीके, आरएसपी, केरला कांग्रेस, केएमडीके, अपना दल कमेरावादी, एआईएफबी के लोकसभा या राज्यसभा में एक भी प्रतिनिधि नहीं हैं।”

कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा खामियाजा

सियासी पंडितों की मानें तो क्षेत्रीय पार्टी को जरूरत से अधिक तरजीह देने का खामियाजा कांग्रेस पार्टी को भुगतान पड़ेगा। क्योंकि हाल में जिस तरह क्षेत्रीय पार्टियां दावा कर रही है उससे तो यही जाहिर होता है कि आने वाले चुनाव में कांग्रेस पार्टी से अधिक सीटों पर गठबंधन की ये तमाम क्षेत्रीय पार्टियां चुनाव लड़ेगी। जबकि मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़, राजस्थान , तेलंगाना , ओडिशा , गुजरात ,आंध्र प्रदेश , हरियाणा , कर्नाटक , असम और पूर्वोत्तर के राज्यों की 235 सीटों पर कांग्रेस का पलड़ा आज भी भारी है। एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक आंध्र प्रदेश तेलंगाना और उड़ीसा सहित दक्षिणी राज्यों में इंडिया में शामिल दूसरी पार्टी का कोई खास जानाआधार नहीं है ऐसे में इन सीटों पर कांग्रेस का दावा मजबूत है।।