टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (24 नवंबर 2024): दिल्ली की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर हुआ है। आम आदमी पार्टी (AAP) से नाता तोड़ते हुए पूर्व मंत्री कैलाश गहलोत ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थाम लिया है। गहलोत ने खुद को बीजेपी के साथ अपनी राजनीतिक पारी को आगे बढ़ाने की बात कही है। दिलचस्प बात यह है कि सियासी गलियारों में कैलाश गहलोत को बीजेपी में मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है।
हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब किसी बड़े नेता ने AAP से अलग होकर राजनीति में नई राह तलाशने की कोशिश की हो। अब तक दर्जनों नेता AAP से किनारा कर चुके हैं, लेकिन केजरीवाल से दूरी बनाने के बाद इन नेताओं का सियासी करियर रफ्तार पकड़ने में नाकाम साबित हुआ है।
योगेंद्र यादव: सियासत से दूर, सामाजिक कार्यों में सक्रिय
2015 में AAP के प्रमुख चेहरों में से एक योगेंद्र यादव पार्टी के मुख्य रणनीतिकार माने जाते थे। राज्यसभा सीट को लेकर मतभेदों के चलते उनका केजरीवाल से विवाद हो गया और उन्होंने पार्टी छोड़ दी। इसके बाद योगेंद्र यादव ने अपनी पार्टी बनाई, लेकिन सियासी सफर में वह सफल नहीं हो सके। अब वह सामाजिक कार्यों में सक्रिय हैं।
कुमार विश्वास: कवि सम्मेलनों तक सीमित
अन्ना आंदोलन के बाद AAP का हिस्सा बने कुमार विश्वास को पार्टी के तेजतर्रार नेताओं में गिना जाता था। 2018 में राज्यसभा सीट से वंचित रहने के बाद उन्होंने केजरीवाल पर खुलकर आरोप लगाए। पार्टी छोड़ने के बाद उनका कोई सियासी ठिकाना नहीं बन सका। वर्तमान में वह राम कथा और कवि सम्मेलनों के जरिए चर्चित हैं।
कपिल मिश्रा: हार के बाद सियासी पुनर्वास
AAP सरकार में मंत्री रहे कपिल मिश्रा ने पार्टी के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए। 2019 में उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया और 2020 के विधानसभा चुनाव में मॉडल टाउन से उम्मीदवार बने, लेकिन चुनाव हार गए। 2023 में बीजेपी ने उन्हें दिल्ली इकाई का उपाध्यक्ष बनाकर सियासी पुनर्वास दिया।
अंजलि दमानिया: सियासत में अप्रभावी
महाराष्ट्र में AAP की प्रमुख चेहरा रहीं अंजलि दमानिया ने 2015 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने केजरीवाल पर आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ी, लेकिन इसके बाद उनका राजनीतिक करियर आगे नहीं बढ़ सका।
पंकज पुष्कर: राजनीतिक रूप से अलग-थलग
2015 में तिमारपुर से विधायक बने पंकज पुष्कर को योगेंद्र यादव का करीबी माना जाता था। यादव के पार्टी छोड़ने के बाद पंकज भी साइडलाइन हो गए। 2020 के चुनाव में टिकट कटने के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी, लेकिन वह भी राजनीतिक रूप से कोई प्रभाव नहीं बना सके।
राजकुमार आनंद: लगातार पार्टियां बदलीं
दिल्ली सरकार में मंत्री रहे राजकुमार आनंद ने 2019 में AAP छोड़ी और बहुजन समाज पार्टी में शामिल हुए। यहां से असंतुष्ट होकर जुलाई 2024 में बीजेपी का दामन थाम लिया। फिलहाल वह बीजेपी में अपनी भूमिका के इंतजार में हैं।
राजेंद्र पाल गौतम: कांग्रेस में भी हाशिए पर
दलित नेताओं के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए 2022 में AAP छोड़ने वाले राजेंद्र पाल गौतम ने कांग्रेस का हाथ थामा। हालांकि, कांग्रेस में भी उन्हें कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं मिली। वर्तमान में वह सीमापुरी सीट से विधायक हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक सक्रियता सीमित है।
क्या चमकेगा कैलाश गहलोत का सियासी करियर?
कैलाश गहलोत के बीजेपी में शामिल होने से दिल्ली की राजनीति में चर्चा गरम है। हालांकि, AAP से अलग होकर सफलता हासिल करने का उदाहरण अब तक कोई नेता पेश नहीं कर पाया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि गहलोत बीजेपी में अपनी सियासी जमीन बना पाते हैं या अन्य पूर्व नेताओं की तरह वह भी गुमनामी का हिस्सा बन जाएंगे।
AAP छोड़ने वाले नेताओं का अब तक का सियासी सफर असफल ही रहा है। कैलाश गहलोत के बीजेपी में शामिल होने से दिल्ली में राजनीतिक समीकरण जरूर बदल सकते हैं, लेकिन उनके भविष्य को लेकर सवाल बने हुए हैं। यह वक्त ही बताएगा कि गहलोत इस परंपरा को तोड़ पाएंगे या नहीं।।
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