INDIA वनाम NDA | सपा दोफाड़ हो जाएगी 

 

नवीन दुबे-एडवोकेट
पूर्व सपा सदस्य

जैसे जैसे इंडिया गठबंधन की बैठकों का दौर आगे बढ़ रहा है बैसे बैसे NDA भी अपनी रणनीति बदल रहा है कुल मिलाकर आगामी 5 राज्यों के चुनाव सहित लोकसभा चुनाव बहुत रोचक होने बाले हैं इंडिया गठबंधन ने कहीं न कहीं NDA गठबंधन पर आज की तारीख में बढ़त ले रखी है ।

यही कारण है कि अब अचानक से 18 से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र सरकार ने बुलाया है इससे यह तो साफ है कि कहीं न कहीं मोदी सरकार विपक्षी एकता से भयभीत है और प्रबल आसार हैं कि “एक देश एक चुनाव” की बात आगे बढ़े लेकिन इसमें भी अभी बहुत पेचो खम हैं क्योंकि राज्यों में यदि कोई सरकार अल्पमत में रहते हुए गिर जाती है तो उस स्थिति में ये व्यवस्था अपवाद होगी अथवा बकाया कार्यकाल तक क्या राष्ट्रपति शासन लागू रहेगा ये बड़ा सवाल है ।

सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में निःसंदेह सपा एक बड़ा दल है लेकिन उसकी पकड़ विधानसभा चुनाव के वोटों में तो है किंतु लोकसभा चुनाव के लिए जनता उसे आज के समय में (नेताजी जी के निधन के बाद) उस स्तर का नहीं मानती है इसीलिए NDA को 2014 से उत्तर प्रदेश में निरंतर बड़ी बढ़त हासिल होती रही है ।

उत्तर प्रदेश में सबसे अहम प्रश्न है कांग्रेस का मजबूत होना हाल ही में कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष को बदला है और संगठन के विस्तार पर यू पी में काम करना शुरू किया है इससे लगता है कि लोकसभा चुनाव में यदि कांग्रेस इंडिया गठबंधन में रहते हुए 20 या उससे अधिक सीटों पर उत्तर प्रदेश में लड़ती है तो निःसंदेह उसकी सीटें सपा के मुकाबले अधिक आएंगी जिसका कारण मुसलमानों का सपा से मोहभंग होना व स्वामी प्रसाद मौर्य की बदजुबानी के कारण हिन्दू समाज सहित सवर्ण समाज भी कांग्रेस को वोट देने में परहेज नहीं करेगा लेकिन सपा को इस वर्ग सहित पिछड़ा वर्ग भी वोट देने से बचेगा क्योंकि सपा ने कभी भी पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए कुछ किया ही नहीं ।

हम पहले भी कहा था फिर कह रहे हैं लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सपा दोफाड़ हो जाएगी और एक बहुत ही बड़ा और महत्वपूर्ण चेहरा हो सकता है निर्दलीय या भाजपा की टिकट पर मैनपुरी से चुनाव लड़ जाए अगर ऐसा हुआ तो यहीं से सपा का पूर्ण पतन शुरू हो जाएगा क्योंकि जिस नेतृत्व की अपेक्षा सपा से की जाती थी उसपर अखिलेश यादव खरे नहीं उतर सके जिस तरह का प्रखर विरोध उनको करना चाहिए था वह कर न सके और उनके व पार्टी के सोशल मीडिया पर भी असंसदीय भाषा और मुद्दों के विरोध पर हल्कापन उनके समर्थकों के लिए एक निराशाजनक प्रयास ही रहा है ।