UPSC Hindi Medium: यूपीएससी की परीक्षा में हिन्दी माध्यम का इतिहास, अब क्यों पिछड़ रहे छात्र?

टेन न्यूज नेटवर्क

विशेष रिपोर्ट: रंजन अभिषेक, संवाददाता, दिल्ली

नई दिल्ली (20 जुलाई 2023): भारत जैसे विविधता एवं बहुसंस्कृति वाले देश में यूपीएससी द्वारा आयोजित की जानेवाली परीक्षा सिविल सेवा परीक्षा ही एकमात्र ऐसी परीक्षा है जिसमें भाषा, क्षेत्र, संस्कृति और तमाम तरह के भेद को मिटाकर अभ्यर्थी शामिल होते हैं। इस परीक्षा के माध्यम से देश को मिलता है प्रशासनिक अधिकारी, जो पूरी कार्यव्यवस्था में अपनी एक अहम भूमिका निभाता है। इस परीक्षा में देशभर के अलग अलग भाषा, संस्कृति, और सभ्यता वाले लाखों छात्र -छात्राएं शामिल होते हैं।

सिविल सेवा परीक्षा में हिन्दी माध्यम का इतिहास

सिविल सेवा परीक्षा की शुरुआत ब्रिटिश शासन काल में हुई थी। उस समय यह परीक्षा केवल अंग्रेजी माध्यम में कराई जाती थी। साल 1979 तक सिविल सेवा परीक्षा में हिन्दी माध्यम नाम की कोई चीज नहीं थी। आपातकाल के बाद मोरारजी देसाई की सरकार ने सिविल सेवा परीक्षा में सुधार के लिए कोठारी समिति का गठन किया था। इस समिति की सिफारिश के बाद यह फैसला लिया गया कि सिविल सेवा परीक्षा में अभ्यर्थी अंग्रेजी माध्यम के अलावा हिंदी माध्यम एवं अन्य भाषाओं को भी अपने माध्यम के रूप में चुन सकेंगे। इसके बाबजूद हिंदी माध्यम का परिणाम साल 1990 तक ना के बराबर था जिसके चलते पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मोरारजी देसाई सरकार की गठित मंडल कमीशन की घोषणा को लागू कर दिया था, साल 1993 से सिविल सेवा परीक्षा में अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) को 27 फीसदी आरक्षण दिया जाने लगा।

सरकार के इस कदम के बाद हिन्दी माध्यम का परिणाम सुधरना शुरू हुआ। साल 2000 में पहली बार यूपीएससी पास करने वाले शीर्ष दस अभ्यर्थियों में छठे और सातवें स्थान पर हिंदी माध्यम के छात्र रहे। साल 2002 में शीर्ष 100 में 20-25 अभ्यर्थी हिन्दी माध्यम के थे। साल 2008 में देश के सर्वोच्च परीक्षा में तीसरे पायदान पर हिंदी माध्यम का दबदबा रहा।

2013 के बाद हिन्दी माध्यम के परिणाम में आई गिरावट

स्मान्यत: साल 2010 तक लगभग 40 से 45 फीसदी अभ्यर्थी हिंदी माध्यम के शामिल होते थे और उसमें से 20-22 फीसदी अभ्यर्थी साक्षात्कार में शामिल होते थे और अंतत: 9- 11 फीसदी छात्रों का चयन होता था।

साल 2011 में सीसेट लागू करने के बाद हिन्दी माध्यम का परिणाम निरंतर गिरता चला गया।साल 2011-12 में हिंदी माध्यम का परिणाम 3.5 फ़ीसदी से 4 फ़ीसदी ही रहा। हद तो तब हो गई जब साल 2013 में मुख्य परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों की संख्या घटकर 10 फीसदी पर पहुंच गई और केवल 2.5 फीसदी अभ्यर्थी ही चयनित हो सके।

साल 2014 में सीसेट को क्वालीफाइंग कर दिया गया बाबजूद इसके हिंदी माध्यम के परिणामों में कोई खास सुधार नहीं दिखा। साल 2016 में हिंदी माध्यम का परिणाम महज 2 फीसदी ही रहा।

2013 के बाद हिंदी माध्यम के शीर्ष रैंक

2013 : 107
2014 : 13
2015 : 62
2016 : 31
2017 : 146
2018 : 337
2019 : 317
2020 : 246
2021 : 18

यूपीएससी में क्यों पिछड़ रहे हिन्दी माध्यम के छात्र

• सिविल सेवा परीक्षा में हिन्दी माध्यम के छात्रों का परिणाम खराब होने का एक कारण है कि प्रश्न का उत्तर कैसे लिखा जाए, उसमें क्या जोड़ा जाए, क्या छोड़ा जाए इस बात को लेकर स्पष्टता का अभाव रहता है।

• प्रश्नपत्र के मशीनी अनुवाद के कारण अभ्यर्थियों द्वारा प्रश्नों को सही तरह से ना समझ पाना।

• हिंदी माध्यम में अध्ययन सामग्री का अभाव।

बता दें कि सीसेट के खिलाफ छात्रों का एक समूह निरंतर प्रदर्शन भी कर रहा है। उन छात्रों का मानना है कि सीसेट से एक खास शैक्षिक पृष्ठभूमि वालें अभ्यर्थियों को लाभ मिलता है जबकि मानविकी विषयों के अभ्यर्थी पिछड़ जाते हैं।।