पारिजात सिन्हा
यह मोदी सरकार की दृढ राजनीतिक इच्छाशक्ति और शीघ्र व कड़े निर्णय लेने की क्षमता का ही परिणाम है कि सी.बी.आई में ‘क्लीन-अप’ के लिए इतने कम समयांतराल में इतने बड़े पैमाने पर कार्यवाही की जा सकी l दूसरी तरफ, पिछले सात दशकों में अधिकतर समय सत्ता में रही पिछली सरकार द्वारा सी. बी.आई. के दुष्प्रयोग से विकसित हुए ‘कल्चर’ का ही यह परिणाम था कि कल ही छुट्टी पर भेजे गए से.बी.आई. प्रमुख यह ढीठता कर पाए कि उनके खिलाफ राकेश अस्थाना द्वारा 22 जुलाई 2018 को लगाए गए आरोपों से सम्बंधित दस्तावेज जब चीफ विजिलेंस कमीशान ने 11 सितम्बर से शुरू करते हुए हुए कई नोटिसों के माध्यम से माँगा तो आलोक वर्मा टाल मटोल कर गए l संभवतः राकेश अस्थाना के सी.बी.आई में आते ही यह बात लगने लगी थी कि अस्थाना सी.बी.आई में चल रही अनियमितताओं को सामने लाना शुरू करेंगे; यही वजह थी कि पिछले साल ही अलोक वर्मा उन्हें सी.बी.आई. में नहीं लाने की वकालत करने लगे थे जिसमें उनका साथ दिया था प्रशांत भूषण ने मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जा कर लेकिन वहां कोर्ट ने अस्थाना के से.बी.आई में लाये जाने को उचित ठराया था l यही नहीं, पिछले वर्ष भी सी.वी.सी जब आलोक वर्मा से उनके द्वारा राकेश अस्थाना पर पिछले साल लगाए गए आरोपों के सम्बन्ध में 9 नवम्बर 2017 को विस्तृत रिपोर्ट मांगती है तो वह भी आलोक वर्मा नहीं दे पाते l
खैर, इस साल २२ जुलाई को अस्थाना ने वर्मा पर राजनैतिक रूप से संवेदनशील स्कैम पर जांच/कार्यवाही में ढील बरतने का तिथि और प्रमाण सहित जो आरोप लगाया उसे देखने पर यह स्पष्ट होता है कि वर्मा द्वारा बरती गयी ढिलाई इरादतन थी और इस ढिलाई से कई स्कैम में फंसे कोंग्रेसी नेताओं को लाभ पहुँच रहा था l २२ जुलाई 2018 के अपने पत्र में अस्थाना ने ये लिखा था कि कैसे एयर सेल मैक्सिस केस में पी चिदंबरम की भागीदारी को आलोक वर्मा ने लम्बे समय तक छुपाए रखा जिसका खुलासा सी.बी.आई में अस्थाना के पद-ग्रहण के बाद ही हुआ; कैसे 2G स्कैम में कर्ती चिदंबरम से सम्बंधित कंपनियों को घूस देने की बात भी सी.बी.आई ने छुपा ली और परिणामस्वरूप 2G के आरोपी कोर्ट द्वारा बरी कर दिए गए; कैसे चिदंबरम की कथित लिप्तता वाले एयरसेल मैक्सिस केस में अस्थाना द्वारा जांच-रिपोर्ट सौंप दिए जाने के बाद भी आलोक वर्मा ने साढ़े चार महीने तक चार्जशीट नहीं की; कैसे अगस्ता स्कैम में सीबीआई जानबूझ कर धीरे धीरे कार्यवाही कर रही थी; कैसे रोबर्ट वाड्रा केस में इन संस्थाओं ने ढिलाई बरती, आदि l अस्थाना द्वारा तिथि और प्रमाणों के साथ लिखे इस पत्र के आधार पर चीफ विजिलेंस कमीशन (सी.वी.सी) 11 सितम्बर को आलोक वर्मा से इन आरोपों से सम्बंधित फ़ाइल और दस्तावेज माँगने के लिए तीन नोटिस भेजती है लेकिन -खबरों के अनुसार – अलोक वर्मा ये दस्तावेज सी.वी.सी को नहीं सौंपते l 19 सितम्बर को सी..वी.सी आलोक वर्मा से मोईन कुरेशी केस की फाइल मांगती है जो – खबरों और सी.वी.सी के अनुसार – वर्मा नहीं देते l 26 सितम्बर को कुरेशी केस में पूछताछ के दौरान एक अभियुक्त यह स्वीकार करता है कि वर्मा घूस ले कर कुरेशी केस में ढिलाई बरत रहे हैं l अस्थाना यह बात सीवीसी/कबिनेट सेक्रेटरी को बता देते हैं l स्पष्ट है कि अस्थाना बेबाकी से आलोक वर्मा के नेतृत्व वामे सीबीआई में कोंग्रेस को लाभ पहुंचाने वाली कारगुजारियों को उजागर कर रहे थे l संभवतः तभी अस्थाना की विश्वसनीयता पर चोट करने के लिए जाल बुनने की कोशिश शुरू कर दी गयी : 4 अक्टूबर को आशचर्यजनक रूप से आलोक वर्मा -अपनी तटस्थता को दरकिनार कर – प्रशांत भूषण से मिलते हैं, 4 अक्टूबर को ही कुरेशी केस में वर्मा पर आरोप लगाने वाला अभियुक्त आश्चर्यजनक रूप से पलट जाता है; 15 अक्टूबर को सी.वी.सी. आलोक वर्मा को यह कहती है कि सीबीआई के किसी भी अधिकारी के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की शुरुआत करने के पहले उन्हें सेक्शन 70 का ध्यान रखना होगा जिसमें यह उल्लिखित है कि ऐसी किसी भी कार्यवाही के पहले उन्हें सी.वी.सी का ‘अप्रूवल’ लेना होगा लेकिन तमाम केसों में ढीलाई के आरोपों पर पर्दा डालने की मानो आख़िरी कोशिश और हडबडाहट में आलोक वर्मा इस नियम का उल्लंघन करते हैं और बिना सी.वी.सी के अप्रूवल के ही अस्थाना पर एफ .आई.आर कर देते हैं l सुप्रीम कोर्ट विनीत नारायण प्रसिद्धी वाले प्रतिष्ठित विनीत नारायण कहते हैं कि आलोक वर्मा ने किसी जांच एजेंसी के प्रमुख की तरह व्यवहार नहीं कर के किसी दारोगा की तरह व्यवहार किया l अस्थाना द्वारा न्यायालय में अर्जी देने पर न्यायालय, उचित रूप से, 23 अक्टूबर को इस ऍफ़.आई.आर पर स्टे लगा देती है l उसी रात यानि 23 अक्टूबर को अल्लोक वर्मा को फाइलें/दस्तावेज आदि से.वी.सी को न देने और जांच में जानबूझ कर असहयोग और नियमों को जान बूझ के तोड़ने के कारण सी.वी.सी एक्ट 8 (1) (अ) (बी) के तहत उन्हें छुट्टी पर भेज देती है l पारदर्शिता और पक्षपातरहित जांच हो सके – इसके लिए राकेश अस्थाना को भी छुट्टी पर भेज दिया जाता है जो तर्कसंगत है l
24 अक्टूबर को आलोक वर्मा छुट्टी पर भेजे जाने के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करते हैं जिसमे वे विनीत नारायण वाले सुप्रीम कोर्ट फैसले का हवाला देते हैं जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने से.बी.आई प्रमुख का काल कम से कम दो साल तय किया था, लेकिन वे यहाँ भूल जाते हैं कि यह काल सामान्य परिस्थितियों के लिए तय किया गया था न कि किसी ऐसी विशेष परिस्थिति के लिए जिसमें से.बी.आई प्रमुख अनियमितताएं बरतटा जाए और उसे विनीत नारायण फैसले के तहत 2 साल के पहले हटाया ही न जा सकेl स्वयं विनीत नारायण ने कल इस बात की पुष्टि की l आलोक वर्मा अपनी याचिका में दिल्ली पुलिस स्पेशल एक्ट के सेक्शन 4 (बी) का हवाला देते हैं कि उन्हें 2 साल से पहले हटाने के लिए प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, विरोधी पार्टी के नेता वाली कमिटी की अनुमति लेनी होगी, लेकिन आलोक वर्मा यह भूल जाते हैं कि सेक्शन 4बी (2) में यह स्पष्ट लिखा है कि 2 साल से पहले हटाने के लिए केंद्र को से.वी.सी की सर्च कमिटी के प्रमुख की ही अनुमति लेनी होगी और जो उन्हें छुट्टी पर भेजे जाने के मामले में ली गयी है l वे ये भी भूल जाते हैं कि उन्हें हटाया नहीं गया है बल्कि केवल छुट्टी पर भेजा गया है क्योंकि उनके खिलाफ आरोप लगे हैं और उसकी जांच उनके ही नेतृत्व में नहीं की जा सकती l खैर , उनकी याचिका पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में 26 अक्टूबर को है l
राकेश अस्थाना और अलोक वर्मा की पृष्ठभूमि देखें तो कई बातें सामने आती हैं l राकेश अस्थाना की काबिलियत स्पष्ट रूप से उभर कर आती है जब सी.बी.आई एसपी के रूप में वे शक्तिशाली लालू प्रसाद के विरुद्ध आरोपों को सिद्ध कर पाते हैं, आसाराम को जेल भिजवाते हैं, धनबाद में शक्तिशाली डीजीएम को गिरफ्तार करते हैं, गोधरा में कारसेवकों से भरी ट्रेन में आग लगाए जाने के मामले की सफल जांच करते हैं, अहमदाबाद में बम धमाकों की जांच मात्र 22 दिनों में पूरी कर लेते हैं, आई एन एस मीडिया केस जिसमें कारती चिदंबरम पर केस है की सफल जांच, एयर सेल मक्सिक्स जिसमें चिदंबरम फंसे हुए है की सफल जांच, त्रिनामूल कोंग्रेस के नेताओं की कथित लिप्तता वाले नारदा-शारदा केस में सफल जांच व कार्यवाही आदि; और आज की तारीख में माल्या- आईआरसीटीसी-अगस्ता आदि कई मामलों पर कड़ी और सफल कार्यवाही कर रहे हैं l स्पष्ट है कि आज की तारीख में कई महत्वपूर्ण केसों – जिसमें विपक्षी दलों के शक्तिशाली नेतागण कथित रूप से लिप्त प्रतीत होते हैं – को उनके निष्कर्ष पर पहुंचाने के बिलकुल करीब हैं राकेश अस्थाना l ज़ाहिर है कि राकेव्श अस्थाना तमाम विपक्षी दल की आँखों में खटक रहे हैं l राकेश अस्थाना की ईमानदारी के विषय पर बोलते हुए सी.बी.आई के पूर्व एडिशनल डायरेक्टर उपेन बिस्वास कहते हैं कि राकेश अस्थाना एक ऐसे ईमानदार अधिकारी हैं जिनको भ्रष्ट किया ही नहीं जा सकता l ज्ञातव्य हो कि ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ माने जाने वाले बिस्वास की अगुवाई में ही फोडर स्कैम की जांच हुई थी जिस टीम में राकेश अस्थाना भी थे और , बिस्वास के अनुसार, कई राजनीतिक दबावों के बाद भी अस्थाना अपने कर्तव्य-पथ से डिगे नहीं थे l बिस्वास बाद में त्रिनामूल कोंग्रेस से विधायक और मंत्री भी रहे और वर्तमान में वेस्ट बंगाल शेड्यूल कास्ट एंड शेड्यूल ट्राइब डेवलपमेंट फाइनेंस कोर्पोरेशन के अध्यक्ष हैं l दूसरी तरफ, आलोक वर्मा की पृष्ठभूमि कोई ख़ास नहीं दिखती , उलटे – खबरों के मुताबिक़ – दिल्ली में तिहार जेल के डायरेक्टर जनरल के उनके कार्यकाल में कई रहस्यमय मौतें होती हैं, एक्सटोर्शन रैकेट होते हैं, जेल से भागने की घटनाएं होती हैं आदि l वर्मा ने बीबीसी को दिल्ली गैंग रेप के अभियुक्त मुकेश का तिहाड़ से साक्षात्कार उपलब्ध करवा कर भी व्यापक स्तर पर भर्त्सना का सामना किया था l
कुल मिला कर देखें तो स्कैमों की जांच आदि में आलोक वर्मा द्वारा बरती गयी ढिलाई जिससे कोंग्रेस नेताओं को लाभ पहुंचा, अस्थाना की सी..बी.आई में बहाली का अलोक वर्मा द्वारा पुरजोर विरोध और फिर तुरंत प्रशांत भूषण द्वारा सुप्रीम कोर्ट में इस बहाली के मामले का ले जाना, आलोक वर्मा का उसी प्रशांत भूषण से इस अक्टूबर में मिलना, ऐन वक्त पर जब अस्थाना विपक्षियों की लिप्तता वाले संवेदनशील माल्या-अगस्ता-लालू कृत आईआरसीटीसी-नारदा शारदा केस आदि कई मामलों पर कड़े कदम उठा रहे हैं उन्हें (अस्थाना) कमज़ोर करने की कोशिश, नियमों को ताक पर रख कर अस्थाना के विरुद्ध आलोक वर्मा के द्वारा हडबडाहट में किया गया ऍफ़.आई.आर. – ये सब सी.बी.आई में विपक्षियों की मिली भगत से चलते आ रहे रहे किसी गहरे षड्यंत्र की और इशारा करते प्रतीत होते हैं l
इस पृष्ठभूमि में सरकार द्वारा की गयी ‘सी.बी.आई क्लीन-अप’ की त्वरित कार्यवाही अत्यंत प्रशंसीय है जो मोदी सरकार की सकारात्मक राजनीतिक इच्छाशक्ति और सकारात्मक निर्णय लेने की क्षमता का द्योतक है l
(लिखत में प्रस्तुत तथ्य और तिथियाँ तमाम अखबारों में छापी और चैनलों पर प्रस्तुत सामग्रियों से लिए गए हैं l)