“परीक्षा पे चर्चा” कार्यक्रम में पीएम ने दिए छात्रों के सभी सवालों के जवाब, कार्यक्रम के मुख्य अंश

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (27/01/2023): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खास कार्यक्रम “परीक्षा पे चर्चा” 2023 का छठा संस्करण शुक्रवार को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित किया गया। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ बातचीत की। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के कई सवालों का जवाब दिया।

अगर परीक्षा में परिणाम अच्छा नहीं आए या पढ़ाई में कमजोर है तो परिवार का कैसे सामना करें?

जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि परिवार के लोगों का बच्चों के साथ अपेक्षा होना बहुत स्वाभाविक है और उसमें कुछ गलत भी नहीं है। लेकिन अगर परिवार के लोग अपेक्षाएं सोशल स्टेटस के कारण मार्क कर रहे हैं, तो वो चिंता का विषय है। उनका सोशल स्टेटस का उन पर इतना दबाव होता है, उनके मन पर इतना प्रभाव होता है, उनको लगता है कि जब सोसाइटी में जाएंगे तो बच्चों के लिए क्या बताएंगे? अगर बच्चे कमजोर है तो कैसे उनके सामने चर्चा करेंगे। कभी-कभी मां-बाप अपने बच्चों की क्षमता को जानने के बावजूद भी अपने सोशल स्टेटस के कारण बाहर बहुत बड़ी-बड़ी बातें बता देते हैं अपने बच्चों के बारे में और फिर धीरे-धीरे वो इंटेलाइज कर लेते हैं और घर में आकर भी वही अपेक्षाएं करते हैं। समाज जीवन में, ये सहजप्रभुतु बनी हुई है और दूसरा आप अच्छा करेंगे तो भी हर कोई आपसे नई अपेक्षा करेगा। हम तो राजनीति में हैं। हम राजनीति में कितने ही चुनाव क्यों न जीत लें लेकिन ऐसा दवाब पैदा किया जाता है कि हमें हारना नहीं है। चारों तरफ से दबाव बनाया जाता है। लेकिन क्या हमें इन दबावों से दबना चाहिए? अगर आप अपनी एक्टिविटी पर फोकस रहते हैं तो आप ऐसे संकट से बाहर आ जाएंगे। कभी भी दबावों के दबाव में न रहें। अपने भीतर देखिए आत्मनिरीक्षण कीजिए। आपको अपनी क्षमता, अपनी आकांक्षाओं, अपने लक्ष्यों को पहचानना चाहिए और फिर उन्हें उन अपेक्षाओं के साथ जोड़ने का प्रयास करना चाहिए जो अन्य लोग आपसे कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आग्रह करते हुए कहा कि मेरा आपसे आग्रह होगा कि आप दबाव के दबाव में न रहें। हां कभी-कभी दबाव का विश्लेषण करें। कहीं ऐसा तो नहीं है आप स्वयं के विषय में underestimate रहे हैं, आपकी क्षमता बहुत है। लेकिन आप खुद ही इतने डिफरेंस मेंटालिटी के है कि कुछ नया करने के बारे में सोचते नहीं है। कभी कभी वह अपेक्षाएं बहुत बड़ी ताकत बन जाती है। बड़ी उर्जा बन जाती है। सामाजिक दबाव में मां-बाप को अपने बच्चों पर दबाव ट्रांसफर नहीं करना चाहिए। लेकिन बच्चों को अपनी क्षमता से कम भी नहीं आंकना चाहिए। दोनों चीजों की बल देंगे तो मुझे पक्का विश्वास है कि आप ऐसी समस्याओं को बहुत आराम से सुलझा लेंगे।

परीक्षा के दौरान आपको लगता है कि आप सब कुछ भूल गए हैं, पढ़ाई कहां से शुरू करें, सारे काम सही समय पर कैसे करें?

जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सिर्फ परीक्षा के लिए नहीं वैसे भी जीवन में हमे समय के प्रबंधन के प्रति जागरूक रहना चाहिए। काम का ढेर इसलिए हो जाता है क्योंकि समय पर उसे नहीं किया। काम करने की कभी थकान नहीं होती, काम करने से संतोष होता है। काम ना करने से थकान होती है कि इतना काम बचा है। आप घर में अपनी मां को काम करते हुए देखिए, उनका टाइम मैनेजमेंट परफेक्ट होता है। आपको माइक्रो मैनेजमेंट करना है कि किस विषय को कितना टाइम देना है। आप समय को ढंग से बांटे आपको उसमें जरूर लाभ होगा। परीक्षा में अनुचित साधनों के प्रयोग से कैसे बचा जाए इसके जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि मेहनती बच्चों को चिंता रहती है कि मैं मेहनत करता हूं और कुछ लोग चोरी कर अपना काम कर लेते हैं। ये जो मूल्यों में बदलाव आया है ये सामज के लिए खतरनाक है। अब जिंगदी बदल चुकी है जगत बहुत बदल चुका है। आज हर कदम पर परीक्षा देनी पड़ती है। नकल से जिंदगी नहीं बन सकती है।

हार्ड वर्क और स्मार्ट वर्क में से कौन सा वर्क जरूरी है? क्या अच्छे परिणामों के लिए दोनों वर्क जरूरी है?

जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्यासा कौवा की कहानी सुनाया और हुए हार्ड वर्क और स्मार्ट वर्क के बारे में समझाया। उन्होंने कहा कि कुछ लोग होते हैं जो हार्ड वर्क ही करते रहते हैं, कुछ लोग होते हैं जिनके जीवन में हार्ड वर्क का कोई नामोनिशान नहीं होता है, कुछ लोग होते हैं जो हार्डली स्मार्ट वर्क करते हैं और कुछ लोग होते हैं जो स्मार्टली हार्ड वर्क करते हैं। इसलिए कौवा भी हमें सिखा रहा है कि स्मार्टली हार्ड वर्क कैसे करना है। इसलिए हमें भी जिस चीज पर जरूरत है वहीं फोकस करना चाहिए जो हमारे लिए उपयोगी है। हर चीज प्राप्त करने की कोशिश से मेहनत बहुत लगेगी लेकिन जनरल हेल्थ, फिटनेस के लिए यह ठीक है। लेकिन अगर मुझे अचीव करना है तो उस स्पेसिफिक एरिया को एड्रेस करना होगा। ये जिसको समझ होता है वह अच्छा परिणाम भी देता है।

एवरेज छात्र पढ़ाई पर कैसे ध्यान दें?

जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक बार आपने इस सत्य को स्वीकार कर लिया कि मेरी यह क्षमता है, मेरी ये स्थिति है। तो मुझे अब इसके अनुकूल चीजों को ढूंढना होगा। मुझे बहुत बड़े तीस मार खां बनने की जरूरत नहीं है। हम अपने सामर्थ्य को जिस दिन जानते हैं तो हम सबसे बड़े सामर्थ्यवान बन जाते हैं। जो लोग खुद के सामर्थ्य को नहीं जानते, उनको सामर्थ्यवान बनने में बहुत सारी रुकावटें आती है। मैं हर मां-बाप से चाहूंगा कि वह अपने बच्चों का सही मूल्यांकन करें उनको उनके अंदर हीन भावना पैदा नहीं होने दीजिए लेकिन सही मूल्यांकन कीजिए। ज्यादातर लोग सामान्य होते हैं, असाधारण लोग बहुत कम होते हैं। सामान्य लोग असामान्य काम करते हैं और जब सामान्य लोग असामान्य काम करते हैं तब वे ऊंचाई पर जाते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज दुनिया में आर्थिक तुलनात्मक में भारत को एक आशा की किरण के रूप में देखा जा रहा है। 2-3 साल पहले हमारी सरकार के विषय में लिखा जाता था कि इनके पास कोई अर्थशास्त्री नहीं है सब सामान्य हैं, PM को अर्थशास्त्र के बारे में कुछ नहीं पता। जिस देश को सामान्य कहा जाता था वे आज चमक रहा है। इसलिए इस दबाव में ना दोस्तों कि आप एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी नहीं है और दूसरी बात आप एवरेज भी होंगे तो भी आपके भीतर कुछ एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी तो होगा ही होगा और जो एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी उनके भीतर भी कुछ एवरेज होगा ही होगा। बस आपको पहचानने की जरूरत है।

चुनौतियां और विपक्ष के आलोचना से आप कैसे सामना किया जा सकता है?

जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं सिद्धांतों का कहा मानता हूं कि समृद्ध लोकतंत्र के लिए आलोचना एक शुद्धि अग्न है। आलोचना समृद्ध लोकतंत्र के लिए की पूर्व शर्त है। कभी कभी होता है कि आलोचना करने वाला कौन है ये महत्वपूर्ण होता है। जो अपना है वे कहता है तो आप उसे सकारात्मक लेते हैं लेकिन जो आपको पसंद नहीं है वे कहता है तो आपको गुस्सा आता है। आलोचना करने वाले आदतन करते रहते हैं तो उसे एक बक्से में डाल दीजिए क्योंकि उनका इरादा कुछ और है। ज्यादातर लोग आरोप लगाते हैं आलोचना नहीं करते हैं। आरोप और आलोचना के बीच में बहुत बड़ी खाई है। हमें आरोपों को आलोचना नहीं समझना चाहिए। आलोचना तो एक तरफ से वो न्यूट्रीशन है जो हमें समृद्ध करता है। आरोप लगाने वालों को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है और समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है लेकिन आलोचना को कभी लाइट नहीं लेना चाहिए और आलोचना को हमेशा मूल्यवान समझना चाहिए। वह हमारे जिंदगी को बनाने में बहुत काम आते हैं।

टेक्नोलॉजी के युग में बिना ध्यान भटकाए कैसे पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करें?

इसके जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सबसे पहले यह निर्णय करना होगा कि आप स्मार्ट हैं या फिर गैजेट स्मार्ट हैं। कभी कभी लगता है कि आप अपने से भी ज्यादा गैजेट को स्मार्ट मान लेते हैं। गलती वहीं से शुरू होता है आप विश्वास कीजिए परमात्मा ने आपको बहुत शक्ति दी है। गैजेट आपसे स्मार्ट नहीं हो सकता है, आपकी जितनी ज्यादा स्मार्टनेस होगी उतना ही ज्यादा आप गैजेट का सही उपयोग कर सकेंगे। गैजेट एक इंस्ट्रूमेंट है जो आपकी गति में नई तेजी लाता है ये अगर हमारी सोच बनी रही है तो शायद आप उससे छुटकारा पा सकते हैं। देश के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है कि हमारे देश में अब गैजेट-उपयोगकर्ता के लिए औसतन छह घंटे का स्क्रीन-टाइम है। यह निश्चित रूप से उस समय और ऊर्जा की मात्रा को दर्शाता है जो किसी व्यक्ति द्वारा अर्थहीन और उत्पादकता के बिना निकाल दी जाती है। यह गहरी चिंता का विषय है और लोगों की रचनात्मकता के लिए खतरा है। हमें कोशिश करना चाहिए कि हम गैजेट के गुलाम नहीं बनेंगे, मेरा स्वतंत्र अस्तित्व है और उसमें से जो मेरे काम की चीज है उस तक ही सीमित रहूंगा। क्या हम सप्ताह में 1 दिन डिजिटल फास्टिंग कर सकते हैं उससे जो उसका फायदा होगा उसका आप मूल्यांकन कीजिए। फिर धीरे-धीरे आपको उसका समय बढ़ाने का मन करेगा। मेरा आग्रह है। क्या आप घर में भी एक एरिया तय कर सकते हैं जो ‘नो टेक्नोलॉजी जोन’ होगा और उस एरिया में टेक्नॉलजी का प्रयोग नहीं कीजिए। धीरे-धीरे आपको जिंदगी जीने में आनंद शुरू होगा और आनंद अगर शुरू होगा तो आप उस टेक्नॉलजी के गुलामी से बाहर आएंगे।

तनाव परीक्षा के परिणाम को कैसे प्रभावित करता है?

जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि परीक्षा के जो परिणाम आते हैं उसके बाद जो तनाव है उसका मूल कारण है परिवार जो मान लेते हैं कि उसका अच्छा परीक्षा गया है और बचा मान लेता है कि मेरा तो शानदार पेपर गया है और जब परीक्षा के परिणाम में 40% से 45% मार्क्स आता है तो फिर तूफान खड़ा हो जाता है। इसलिए सच्चाई से मुकाबला करने की आदत छोड़ने नहीं चाहिए। हम कितने दिन तक झूठ के सहारे जी सकते हैं। हमें स्वीकार करना चाहिए कि मैं गया लेकिन मेरा परीक्षा ठीक से नहीं गया मैंने कोशिश की थी। अगर आप पहले से ही कह देंगे और आपके अगर परीक्षा में पांच नंबर ज्यादा आ गए हैं। घर में तनाव भी होगा तो आपको कहेंगे कि तुम तो कह रहे थे कि तुम्हारा परीक्षा अच्छा नहीं गया है लेकिन तुम तो अच्छे नंबर लेकर आए हो। इसलिए मानदंड पहले से ही सेट हो जाता है। दूसरा तनाव का कारण यह है कि आपके दिमाग में आपके दोस्त भरे हुए रहते हैं। तीसरा जीवन की तरफ हमारी सोच क्या है जिस दिन हम मानते हैं ये परीक्षा गया, मतलब जिंदगी गई। फिर तो तनाव शुरू होना ही होना है। परीक्षा एंड ऑफ द लाइफ नहीं होता है।

अधिक से अधिक भाषाएं कैसे सीख सकते हैं और यह क्यों जरूरी है?

इसके जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत विविधताओं से भरा हुआ देश हैं। हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हमारे पास सैकड़ों भाषाएं हैं और हजारों बोलियां हैं। यह हमारा समृद्धि है। हमें अपने इस समृद्धि पर गर्व होना चाहिए। हमें शौक के नाते ही मन लगाकर अड़ोस पड़ोस राज्यों की 1-2 भाषा सीखने में क्या जाता है। कोशिश करनी चाहिए। और सीर्फ हम भाषा सीखते हैं, मतलब बोलचाल के कुछ वाक्य सीख जाते हैं ऐसा नहीं है। हमें वहां के अनुभवों का जो निचोड़ जो होता है, एक-एक भाषा की अभिव्यक्ति होना शुरू होता है। उसके पीछे हजारों साल की एक अभिरथ, अखंड, और अभिचल एक धारा होती है। अनुभव की धारा होती है, उतार-चढ़ाव की धारा होती है, संकटों का सामना करते हुए निकली हुई धारा होती है; तब जाकर एक भाषा अभिव्यक्ति का रूप लेती है। हम एक भाषा को जब जानते हैं तब आपको हजारों साल पुरानी उस दुनिया में प्रवेश करने का द्वार खुल जाता है। इसलिए बिना बोझ बनाए हमें भाषा सीखनी चाहिए। दुनिया की सबसे पुरातन भाषा जिस देश के पास हो उस देश को गर्व होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए। सीना तान कर दुनिया को कहना चाहिए कि नहीं कहना चाहिए कि विश्व की सबसे पुरातन भाषा हमारे पास है। तमिल भाषा दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है। इतनी बड़ी अमानत देश के पास है। इतना बड़ा गौरव देश के पास है लेकिन हम सीना तानकर कहते नहीं है। UN में मैंने जानबूझ कर कुछ तमिल भाषा से जुड़ी बातें बताई क्योंकि मैं दुनिया को यह बताना चाहता था कि दुनिया की सबसे पुरानी भाषा मेरे देश में है। मैं तो चाहूंगा कि हर किसी को कोशिश करना चाहिए कि अपनी मातृभाषा के उपरान्त भारत के कोई ना कोई भाषा या कुछ तो सेंटेंस आना चाहिए। आपको आनंद आएगा। इसलिए भाषा को बोझ के रूप में नहीं सीखना चाहिए। हमें अपनी विरासत और भाषा पर गर्व होना चाहिए।

कक्षा में विद्यार्थियों को रुचि पूर्ण पढ़ाई के लिए कैसे आकर्षित करें तथा जीवन का सार्थक मूल्य कैसे सिखाएं? साथ ही कक्षा में अनुशासन के साथ पढ़ाई को रोचक कैसे बनाएं?

इसके जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारे शिक्षक विद्यार्थियों के साथ जितना अपनापन बढ़ाएंगे उतना बेहतर होगा। जब विद्यार्थी आपसे सवाल करता है तो उसका लक्ष्य आपके ज्ञान को परखना नहीं है। विद्यार्थी की जिज्ञासा ही उसकी बहुत बड़ी अमानत है। आज भी हमारे छात्र अपने टीचर की बात को बहुत मूल्यवान समझता है।हमें डंडा लेकर डिसिप्लिन वाला रास्ता ना चुन कर अपनेपन का रास्ता चुनना चाहिए। अपनेपन का रास्ता चुनेंगे तभी लाभ होगा।

विद्यार्थी को समाज में कैसे बर्ताव करना चाहिए?

इसके जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा कि बच्चे को एक घर के दायरे में बंद करके नहीं रखना है। उसका समाज में जितना व्यापक विस्तार हों, उसे होने देना चाहिए। आपको अपने बच्चों का ट्रायल लेते रहना चाहिए। उनको समाज के भिन्न-भिन्न अंगों में जाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उसको कभी पूछना चाहिए कि तुम्हारे स्कूल में इस बार कबड्डी में अच्छा खेला तो क्या तु उससे मिला क्या? जा उसके घर जाकर मिलकर आ। उसको उसका विस्तार करने का मौका देना चाहिए। उसको बंधन में मत बांधिए। हमें बच्चों का विस्तार होने देना चाहिए। उनको नए-नए दायरे में ले जाना और मिलाना चाहिए। कभी हमें भी ले जाना चाहिए। अपने दायरे में बच्चों को बंद मत करें, हम जितना ज्यादा उनका दायरा बढ़ाएंगे, हमारा ध्यान रहना चाहिए। हमारा ध्यान रहना चाहिए कि क्या उसकी आदतें तो खराब नहीं हो रही है। आपको कोशिश करना चाहिए कि आपके बच्चों का विस्तार ज्यादा हों, बंधनों में ना बंध जाए। उसको खुला आसमान और अवसर दीजिए। वो समाज में ताकत बनकर उभरेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यक्रम के अंत में सभी का धन्यवाद किया और कहा कि हमारे विद्यार्थी, अभिभावक और शिक्षक ये अपने जीवन में तय करें कि परीक्षा का जो बोझ बढ़ता चला जा रहा है और एक वातावरण क्रिएट हो रहा है उसको जितना ज्यादा हम डाइल्यूट कर सकते हैं, करना चाहिए। जीवन का उसे सहज हिस्सा बना देना चाहिए और जीवन का एक सहज क्रम बना देना चाहिए। अगर ये करेंगे तो परीक्षा अपने आप में एक उत्सव बन जाएगा। हर परीक्षा से जीवन उमंग से भर जाएगा और ये उमंग उत्कर्ष का गारंटी होता है। उस उत्कर्ष का गारंटी उमंग में है। उस उमंग को लेकर आप चले यही हमारी शुभकामना है।