रॉबिन हिबू – एनसीसी कैडेट से आई.पी.एस तक का सफर

एनसीसी कैडेट से आई.पी.एस तक का सफर

रॉबिन हिबू
अरुणाचल प्रदेश के प्रथम आई.पी.एस अधिकारी
सूर्य की प्रथम किरणें पड़ती जिस प्रदेश पर
मैं हूं उस प्रदेश का,
प्राकृतिक खूबसूरती से आच्छादित वसुधा
कण-कण में भरती मानवीयता
उसी मानवीयता ने भरी मेरे अंदर आत्मीयता
बेहद गौरवान्वित हूं,
आज उसके पोषण से पल्लवित
आई.पी.एस के रूप में
देश सेवा का सौभाग्य पाकर
जीवन को सार्थक कर रहा ।

उपरोक्त पंक्तियां रॉबिन हिबू की जिजीविषा एवं सादगी को बयान करती हैं । उनका जन्म 01 जुलाई 1968 को अरुणाचल प्रदेश के एक बेहद पिछड़े कस्बे होम गांव में हुआ था । प्रारंभ से ही जीवन बेहद संघर्षमय रहा । वे एक बेहद ही निर्धन परिवार से थे । पिता किसान थे । माता घर का कार्य देखती थीं । अन्य भाई बहन भी सुविधाओं के अभाव में पल रहे थे । उनके गांव मंे बिजली-पानी एवं शौचालय जैसी कोई भी मूलभूत सुविधाएं नहीं थीं । इन बुनियादी सुविधाओं के अभाव मंे एक बालक को कितनी तकलीफ होती होगी, इस बात को सहजता से समझा जा सकता है । जब वहां पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव था तो स्कूल जैसी सुविधाआंे का होना तो नामुमकिन ही था । इतने बड़े प्रदेश में महात्मा गांधी सेविका की केवल एक शिक्षिका थीं । उन्होंने ही रॉबिन हिबू को अक्षर ज्ञान से लेकर पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई करवाई । बचपन से ही महात्मा गांधी कीे सेविकाओं के अदम्य त्याग को देखकर हिबू ने महात्मा गांधी को अपना आदर्श बना लिया । स्कूल खत्म होने के बाद वे आश्रम के लिए लकड़ियां एवं सब्जियां जुटाने के लिए जंगलों की ओर चल पड़ते थे । उनके पैरों में जूते भी नहीं होते थे । जूते उन्होंने बहुत बाद में पहनने आरंभ किए ।

बचपन से ही बेहद प्रतिभाशाली होने के कारण हिबू को पढ़ाई करना बेहद पसंद था । उनकी योग्यता के कारण उनका प्रवेश नरोत्तमनगर के रामकृष्ण मिशन स्कूल में हो गया । वे तीन महीनों तक वहां रहे और शिक्षा भी प्राप्त करते रहे । दुर्भाग्यवश नेता के बच्चे के प्रवेश के कारण उनका प्रवेश रद््द कर दिया गया । वे वापिस अपने घर लौट आए । बालमन में बचपन से ही अन्याय के प्रति कुंठा ने जन्म ले लिया । उनकी कुंठा ने उन्हें नकारात्मक मार्ग पर ले जाने के बजाए सकारात्मक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया ।

एनसीसी में प्रवेश के बाद एकता एवं अनुशासन को आत्मसात किया

अनुशासन ही लक्ष्यांे और उपलब्धियों के बीच का पुल है-जिम रॉन

इसके बाद वे गांव के ही स्कूल मंे पढ़े़ और यहां पर एनसीसी में प्रवेश होने के बाद उनका नया जन्म हुआ । एनसीसी संगठन ने उनके अंदर न केवल आत्मविश्वास भरा अपितु उनके अंदर नेतृत्व की भावनाएं भी जागृत कीं । एनसीसी के माध्यम से ही उन्होंने बचपन से अनुशासित जीवन को अपनी जिंदगी का महत्वपूर्ण अंग बना लिया । एनसीसी के दौरान उन्होंने अनेक कैम्प किए । कैम्पों के माध्यम से उन्होंने आत्म अनुशासन सीखा । अनुशासन जीवन का ऐसा नियम है कि यदि वह एक बार व्यक्ति के जीवन का अंग बन गया तो उसे सफलता के शिखर पर पहुंचा देता है । अनुशासन के माध्यम से ही व्यक्ति कार्य को सही तरीके से करना सीखते हैं । श्री हिबू ने इसी अनुशासन को अपनी रग रग में शामिल कर लिया ।

कैम्पों में विभिन्न राज्यों के कैडेटों को देखकर श्री हिबू ने भारतीय संस्कृति के विभिन्न दृष्टिकोणों को देखा । हमारी भारतीय संस्कृति की विविधता को अगर देखना हो तो एनसीसी कैम्पों से श्रेष्ठ स्थान शायद ही कहीं देखने को मिले । श्री हिबू कहते हैं कि सभी कैडेटों की अलग अलग भाषा, बोली, पहनावा और खानपान हृदय को छू लेता था । एनसीसी ने ही हमें सिखाया कि एकता के सूत्र मंे बंधकर ही देश की एकता एवं अखंडता को परिभाषित किया जा सकता है । एनसीसी कैम्पों में रात्रि के समय होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने न केवल श्री हिबू को सांस्कृतिक विविधता से जोड़ा अपितु उन्हें इस बात के लिए भी प्रेरित किया कि जिन क्षेत्रों में शिक्षा एवं मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, उन्हें दूर किया जाए और वहां पर शिक्षा का प्रचार प्रसार किया जाए ।

जिम्मेदारी की भावना का जन्म

आपको निजी तौर पर जिम्मेदारी लेनी होगी । आप हालात, मौसम या हवा का रुख नहीं बदल सकते, लेकिन आप खुद को बदल सकते हैं ।-जिम रॉन

महान विचारक भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि जब तक व्यक्ति स्वयं जिम्मेदार नहीं बनता और हर कार्य की स्वयं जिम्मेदारी नहीं लेता तब तक वह ठोस कार्य नहीं कर सकता । वे कार्य जो सदैव दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर किए जाते हैं, उनका कोई अस्तित्व नहीं होता । इसलिए बचपन से ही बच्चों के अंदर जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न कर देनी चाहिए । जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न करने का सबसे अच्छा स्रोत एनसीसी है ।

एनसीसी कैम्पों में रात्रि गश्त के लिए कैडेटों की ड्यूटी लगाई जाती है । इस ड्यूटी को लगाए जाने का उद््देश्य कैडेटों में साहस एवं कर्त्तव्य की भावना को जागृत करना है । उन दिनों कैम्प अधिकर टैन्टों में चलते थे । टैन्टों का जीवन खतरे से खाली नहीं था । जंगली जानवरों के आक्रमण का भय बना रहता था । कैडेट अपने अंदर डर एवं भय के साथ ड्यूटी को करते थे और जब वे अपनी ड्यूटी पूर्ण कर लेते थे तो उन्हें एहसास होता था अपने अंदर कर्त्तव्य की भावना के सुदृढ़ होने का ।

सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना भारत एक धर्मनिपरेक्ष राष्ट्र है । यहां पर हर धर्म को प्रमुखता दी जाती है । एनसीसी एक ऐसा संगठन है जिसमें सभी धर्मांे के लोग न केवल मिल जुल कर रहते हैं बल्कि अपने स्कूली जीवन में कई महत्वपूर्ण पाठ सीखते हैं ।

श्री रॉबिन हिबू के अंदर बचपन से ही हर धर्म के प्रति समान भावना है । यदि यह कहा जाए कि बचपन से ही उनके अंदर हिन्दू धर्म की जड़ें कहीं गहरे तक जम चुकी थीं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।

श्री रॉबिन हिबू एक इसाई हैं । लेकिन उन्हें भगवद्गीता से लेकर शिवपुराण तक के कई पाठ कंठस्थ हैं । वे अनेक बार गीता एवं शिवपुराण के उदाहरण देकर आम व्यक्ति को प्रभावित कर देते हैं । सभी धर्मों को एक समान देखने का नज़रिया उन्होंने एनसीसी के जीवनकाल मंे ही बना लिया था ।

समाज सेवा के प्रति प्रेरित करना

एनसीसी संगठन मंे कैडेटों को समाज सेवा के अनेक कार्यों की जानकारी प्रदान की जाती है । कैडेट स्वैच्छिक रूप से प्राकृतिक आपदा एवं महामारी के समय अपना बहुमूल्य सहयोग प्रदान करते हैं । इस तरह वे बचपन से ही समाज सेवा से जुड़ जाते हैं और उनके अंदर मानवीय गुणों का विकास होता है । श्री रॉबिन हिबू ने भी एनसीसी के जीवन से ही समाज सेवा के अनेक कार्य किए । स्कूली जीवन मंे वे एनसीसी संगठन के अधिकारियों के साथ मिलकर कार्य करते थे । आज वे स्वयं एक उच्च अधिकारी हैं । इसलिए आज उनके मार्गदर्शन में अनेक लोग समाज सेवा के कार्य करते हैं ।
श्री हिबू अनेक सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हैं । वे हेल्पिंग हैन्ड नामक संस्था के संस्थापक हैं । ये संस्था उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लोगों की हर संभव मदद करती है । डिप्रेशन एवं तनावग्रस्त लोगांे की काउन्सिलंग करती है । ये संस्था उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लोगों तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचाने के सार्थक प्रयास कर रही है ।
एनसीसी कैडेटों को जिंदगी के कठिन पाठ पढ़ाती है और इसके साथ ही अनेक कठिन पड़ावों का धैर्य और कुशलता से सामना करना भी सिखाती है ।

प्रत्येक विद्यार्थी के लिए अनिवार्य हो एनसीसी

रॉबिन हिबू ने स्कूली जीवन में अनेक कैम्पों में भाग लिया । वे कहते हैं कि आज उनके आई.पी.एस होने में एनसीसी का महत्वपूर्ण योगदान है । एनसीसी एक ऐसा संगठन है जो निशुल्क कैडेटों को सैनिक बनने का प्रशिक्षण प्रदान करता है । एनसीसी लेने वाले कैडेट आम विद्यार्थियों एवं व्यक्तियों से बिल्कुल भिन्न नज़र आते हैं । उनका आत्मविश्वास, लगन, कर्त्तव्यभावना, नेतृत्व उन्हें हर क्षेत्र में अग्रणी बनाता है ।
यदि एनसीसी कैडेट आने वाले समय में थल सेना, नौ सेना एवं वायु सेना के अतिरिक्त अपना कॅरियर तलाश करते हैं तब भी एनसीसी उनके लिए बेहद लाभकारी सिद्ध होती है । एनसीसी के द्वारा मिलने वाला आत्मविश्वास, नेतृत्त एवं कर्त्तव्य की भावना उन्हें हर क्षेत्र मंे सफल होना सिखा देती है ।

कैडेट से आई.पी.एस तक का सफर

श्री रॉबिन हिबू ने एक एनसीसी कैडेट से लेकर आई.पी.एस तक के सफर में अनेक पड़ावों को पार किया । उनका जीवन संघर्ष और कांटों से भरा रहा । जब तक उन्होंने अपने जीवन मंे एक श्रेष्ठ लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लिया तब तक उन्हें लोगों के व्यंग्य बाण एवं कड़वे शब्दों से कदम कदम पर दो चार होना पड़ा । एक बालक के रूप मंे कड़वे शब्दों ने उन्हें निरुत्साहित करने के बजाए उत्साहित किया । जब भी तीखे व्यंग्य बाण उनके कर्ण को भेद कर हृदय पर आघात करते, तब तब वे दृढ़ निश्चय करते कि जीवन में ऐसे उच्च लक्ष्य को प्राप्त करेंगे कि जो लोग उन पर व्यंग्य बाणों की वर्षा कर रहे हैं, एक दिन वही लोग उनके स्वागत में पलक पांवड़े बिछाएं प्रतीक्षा करेंगे । वे लोग जो कल तक श्री हिबू को ‘बहादुर’, ‘चिंकी’ कहकर अपमानित किया करते थे, आज अपने बच्चों के समक्ष उन्हें एक यथार्थ आदर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं । स्कूली जीवन की पढ़ाई पूरी करने के बाद श्री हिबू ने जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से एम.ए उत्तीर्ण की । एम. फिल करने के दौरान ही उनका चयन आई.पी.एस के लिए हो गया । वे अरुणाचल प्रदेश के प्रथम आई.पी.एस अधिकारी हैं ।

श्री रॉबिन हिबू ने एनसीसी के जीवन से लेकर अपने अभी तक के जीवन में इस बात को साबित किया है कि
‘‘तू पंख ले ले,
मुझे बस एक हौंसला दे दे ।
फिर आंधियों को
मेरा नाम और पता दे दे । ।’’

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सफलता ग्रंथियों पर निर्भर करती है-पसीने की ग्रंथियों पर – ज़िग ज़िगलर

By Renu Saini