यदि मैं सहिष्णु नहीं होता।

लेखक – चन्द्रपाल प्रजापति नोएडा

यदि भारत सहिष्णु नहीं होता तो- मोहम्मद गोरी १६ बार परास्त होने के बावजूत पृथ्वीराज चौहान द्वारा जीवित नहीं छोड़ा जाता, लूट के उद्देश्य से आये मुग़ल शासन सदियों तक शासन नहीं करते, कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी की तरह जीवन यापन नहीं कर रहे होते, रानी पद्मिनी को जोहर नहीं करना पड़ता, जे.एन.यू. में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ और ‘घर घर से अफजल निकलेगा’, भारत में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे नहीं लगते।

दुनिया के मुसलमानों के लिए सबसे सुरक्षित स्थान कोई है तो वह भारत है। वे भारतीय मुसलमान, जो विधायक अथवा सांसद बनना चाहते हैं या फिर किसी संवैधानिक पद पर बैठकर भिन्न-भिन्न अवसरों पर दुनिया के सैर सपाटे करते हैं, उन्हें यह लाभ केवल वहां की बहुसंख्यक जनता की हृदय-विशालता और उनके पंथनिरपेक्ष चरित्र के कारण ही मिलता है। भारत का मुसलमान यहां जो सुख-सुविधा भोग रहा है, उसकी चर्चा मुस्लिम राष्ट्रों में समय-समय पर होती रहती है। भारतीय मुसलमानों का कट्टरवादी वर्ग भले ही भारत की सहिष्णुता का मुरीद हो या न हो, लेकिन सारी दुनिया के मुस्लिम राष्ट्र भारत के इस सर्वव्यापी गुण की मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हैं। न केवल विश्व के समाचार पत्र, बल्कि मुस्लिम जगत के बुद्धिजीवी भी भारत के इस गुण के कायल और प्रशंसक रहे हैं। भारत दुनिया का सबसे सहिष्णु देश है, ये बात किसी राष्ट्रवादी ने नहीं कही है। ये विचार हैं सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देश के प्रख्यात उदारवादी लेखक, स्तंभकार खलाफ-अल-हराबी के। उन्होंने बड़ी ही गंभीरता से कहा है कि भारत धरती पर सबसे सहिष्णु देश है। उनके अनुसार तरह-तरह के धर्म के लोगों की उपस्थिति के बाद भी भारत न कभी असहिष्णु हुआ और न ही कभी हो सकता है। उन्होंने यहां तक कहा है कि भारत को देखकर उन्हें ईर्ष्या होती है। क्योंकि एक धर्म, एक भाषा के बावजूद मुस्लिम देशों में मारकाट मची रहती है।

पुरस्कार वापसी जमात की तरह कुछ नौकरशाहों ने पत्र लिखकर चिंता जताई थी कि देश में असहिष्णुता बढ़ गई है। पर सेवानिवृत्ति के बाद ही उन्हें यह बोध क्यों हुआ? नौकरी में रहते हुए इन्होंने कितनी ईमानदारी से कर्तव्यों का निर्वहन किया? दरअसल, यह छटपटाहट केंद्र सरकार द्वारा नियमानुसार चलने की बाध्यता को लेकर है मुसलमानों के साथ जब सत्तापक्ष बहकावे और बहलाने के खेल खेलता रहा, तब कितने नौकरशाहों ने चिंता प्रकट की? काश, ये नौकरशाह देश के सामने एक बार यह तथ्य भी उभारते कि कश्मीरी पंडितों द्वारा शरणार्थियों का जीवन बिताना उन्हें शर्मसार करता है? देश में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों के हमदर्द कट्टरवादी उन पर ‘दया’ दिखा रहे थे, लेकिन बरसो से विस्थापन का दंश झेल रहे कश्मीरी पंडितों की बात आते ही चुप्पी साध लेते हैं पर जहां तक मैं मानता हूं, यह एक तरह का ‘राजनैतिक आतंकवाद’ है। क्या ऐसे लोगों ने घाटी के कश्मीरी हिन्दुओं की पीड़ा को समझने की कभी कोशिश की?
ये सच्चाई है कि अगर भारतीय जनमानस में असहिष्णुता के बीज होते तो क्या सदियों-सदियों में लुटेरों के रूप में आए लोगों को भी यहां पर कभी शरण मिलती। लेकिन यही भारतीयता है। यहां लुटेरा भी आया तो उसे भी यहां पर शरण मिला। समय के साथ उन्हीं लुटेरों के वंशजों ने भारत पर शासन तक किया। सबकुछ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना के साथ सदियों से चला आ रहा है। ‘वसुधैव कुटंबकम" की संस्कृति हमें विरासत में मिली हुई है। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति, गुट या कोई समूह एक एजेंडे की तहत असहिष्णुता का वातावरण दिखाने की कोशिश करे, तो बात साफतौर पर समझ में आ जाती है। क्योंकि यही भारत है जिसने ऐसे ही जयचंदों के चलते सदियों तक गुलामी झेला है।