कला विरासत में मिल सकती है लेकिन तजुर्बा हमें सिखना पड़ता है: शिल्पकार अनिल राम सुतार

 

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (20/02/2022) : जानें माने मूर्तिकार पद्मभूषन राम सुतार के बेटे अनिल राम सुतार से टेन न्यूज़ नेटवर्क ने खास बातचीत की उन्होंने बताया कि कोई भी बड़ा मॉडल बनाने से पहले उनका छोटा मॉडल बनाया जाता है। हमने जितने भी मूर्तियां बनाई है पहले उसका छोटा मूर्ति बनाया है और फिर उसके बाद उस मूर्तियों को असली साइज में बनाया हैं। उन्होंने कहा की कला विरासत में मिल सकता है लेकिन तजुर्बा हमें सिखना पड़ता है साथ ही कहा कि किसी भी काम को करने से पहले उस पर स्टडी करना बहुत जरूरी है बिना स्टडी के काम पेशेवर तरीके से नहीं हो सकता है।

पहले आप उस मूर्ति का मॉडल बनाते है उसके बाद आप वह मूर्ति जहां बनना होता है वहां जाकर बनाते है इससे आपको क्या परेशानियां होती है?
इसके जवाब में उन्होंने कहा कि उन्हें कोई परेशानियां नहीं होता है। हर चीज का एक तकनीक होता है यदि आप उस काम को तकनीक के माध्यम से करें तो आपको कोई परेशानी नहीं होता है। उन्होंने कहा कि उनके पास तकनीक और तजुर्बा दोनों ही है जिससे उन्हें बड़े-बड़े मूर्तियां बनाने में कोई कठिनाइयां नहीं होता है। अब तो 40 से 50 फुट की मूर्तियां बहुत छोटी लगती है अब हम तो 125 से 153 फुट की मूर्तियां बना रहे हैं।

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आपको तो यह विरासत में मिला है और आपको इस काम में तजुर्बा भी है, आप इस बारे में क्या कहेंगे?
उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि कला विरासत में मिलती है लेकिन तजुर्बा आपको सिखना पड़ता है‌। जैसे-जैसे हमारी जिंदगी बढ़ता है वैसे-वैसे तजुर्बा आती जाती है। उन्होंने कहा कि मेरे पिताजी का तजुर्बा है वह एक निश्चित लेवल तक रहा लेकिन आज के दौर में कंप्यूटर और मशीन है वह उसे भी पिछले 15 सालों से इस काम में इस्तेमाल कर रहे है। जिससे कि कंप्यूटर में मूर्ति का 3 डी डाटा डालकर बहुत बड़े मूर्ति बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि नई टेक्नोलॉजी को इस काम में जोड़ने से काफी फायदा हुआ है अब वह इसकी मदद से बड़ी-बड़ी मूर्तियां बना पाता हैं।

 

-आपके आने वाली पीढ़ी भी इस काम को करेंगे?
उन्होंने कहा कि मेरा बेटा समीर अनुज सुतार उसने बीएफए किया हुआ है। वह भी स्टूडियो में ध्यान देता है और क्लेय वर्क पर काम कर लेता है। फिलहाल हम बेंगलुरु में 90 फीट का स्टेच्यू बना रहे हैं और वह करीब 4 महीने में पूरा हो जाएगा। इसके अलावा हम पुणे में 100 फीट का मूर्ति बनाएंगे फिर वहां जाकर स्टेच्यू लगाएंगे।

आप एक मूर्तिकार है तो आप इस बारे में क्या कहना चाहेंगे कि एक मूर्ति को बनाने में किस तरह का अनुभव की जरूरत पड़ता है?
इसके जवाब में उन्होंने कहा कि एक अच्छे मूर्ति बनाने के लिए इंसान की बॉडी और ऑटोमेनी को ध्यान में रखते हुए, अनुपात, फेशियल एक्सप्रेशन के मसल्स के भाव को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। जो एक्सप्रेशन लानी है फिर उस पर मेहनत की जाती है ताकि बड़ी मूर्ति में वैसे ही स्वाभाविक तरीके से उसके हावभाव आए और पर्सनैलिटी का अंदाजा लगे ताकि जो राजा है वह राजा की तरह ही दिखने चाहिए। ये सारी चीजें स्टडी करने के बाद आती है और उन्होंने कहा कि मेरे पिताजी ने इन पर बहुत सारे स्टडी किए हैं। मेरे पिताजी 70 साल से ये काम कर रहे हैं जिससे कि उनके पास बहुत सारा तजुर्बा है‌। इसलिए हमने जो मूर्तियां बनाई है उसमें एक सहजता है और जो उसका कैरेक्टर है वह बहुत अच्छे से बनाया है जिससे कि लगता है कि अब मूर्तियां बोल पड़ेगी। आर्टिस्ट के लिए स्टडी करना बहुत जरूरी है जब तक वह स्टडी नहीं करता है तब तक वह एक पेशेवर तरीके से मूर्ति नहीं बना सकता है।

आज आपके पिता जी का जन्मदिन है आप इस अवसर पर क्या कहना चाहेंगे?
इसके जवाब में उन्होंने कहा मेरे पिताजी सादा जीवन जीना पसंद करते हैं वह ना तो स्मोक करते हैं ना तो ड्रिंक करते हैं। उनके जीवन की प्रक्रिया बहुत सीधा है वह रोटी, चावल खाते हैं और सुबह-शाम व्यायाम और योगा भी करते हैं। वह ना तो बहुत ज्यादा पीछे की सोचते हैं और ना ही बहुत ज्यादा आगे के बारे में सोचते हैं। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे आपको एक पहाड़ पर चढ़ना है तो आप बस चलते जाइए कुछ मत सोचिए कि आपको कितनी दूर जाना है। आखिर में जब आप वहां पहुंच जाएंगे तब आपको लगेगा कि मैं कितनी दूर आया हूं। आप बस अपना काम करते जाइए आपको सफलता अपने आप मिलेगी।आप जितना दूर जाएंगे तब आपको आगे समझ में आएगा कि हमनें कितना रास्ता तय किया है।

-क्या आप लोगों को सुझाव देंगे कि वह भी सादा जीवन जीए?
उन्होंने कहा कि मेरे पिताजी सादा जीवन जीते हैं अच्छे विचार रखते हैं वह किसी के बारे में गलत नहीं सोचते हैं योगा करते हैं शायद उनके जिंदगी में मुश्किलें भी आई होंगी तो उन्होंने सोचा होगा कि यह हमारे जिंदगी में लिखा हुआ है कोई बात नहीं अब हम आगे इससे अच्छा करेंगे।

आखिर में उन्होंने संदेश देते हुए कहा कि अपने आप में विश्वास और स्वभाव रखना कि हम दूसरों के लिए गलत नहीं करेंगे, जो हो रहा है वह अच्छे के लिए हो रहा है और हमें सब्र रखना। इन सब चीजों से हम अपनी परेशानियों से निपट सकते हैं। दुनिया की भाग दौड़ में ना रह कर मेरे पिताजी अच्छा काम करते रहे हैं और जो उनके मन में था वहीं उन्होंने किया है शायद यही कारण है कि वह आज इस मुकाम पर है।