डॉ. वंदना शर्मा ‘दीया’
पूरे भारत में लोग बिना यह सोचे कि उपवास के दौरान आलू खाना चाहिए या नहीं, इसका बड़ी मात्रा में उपयोग करते हैं।
वेद उतने ही पुराने हैं जितना कि समय और आलू का दिव्य वेदों में कोई संदर्भ नहीं मिलता। फिर आलू को उपवास के साथ कैसे जोड़ा गया?
17वीं सदी की शुरुआत में पुर्तगालियों द्वारा आलू को पश्चिमी तट पर लाया गया और खेती की गई। ब्रिटिश व्यापारियों ने आलू को बंगाल क्षेत्र में जड़ फसल के रूप में पेश किया। पुर्तगालियों ने इसे ‘बटाटा’ कहा, जबकि अंग्रेजों ने इसे ‘अलु’ कहा। हालांकि, आलू का मूल इतिहास दक्षिण अमेरिका से जुड़ा हुआ है। इस प्रकार, आलू भारत में वेदों के बहुत समय बाद 17वीं सदी में आया परन्तु अनादि काल से उपवास वैदिक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।
उपवास के दौरान खासतौर से लोग आलू क्यों खाते हैं, इसका कारण है खान-पान संस्कृति की नकल, उपलब्धता में आसानी, यह किफायती हैं और इन्हें हर कोई पसंद करता हैlअर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से आलू उत्पाद एक अरब डॉलर का बाजार हैं। इसलिए, उपवास के दौरान आलू खाने को एक लोकप्रिय संस्कृति तथा अर्थशास्त्र से जोड़ा जा सकता है लेकिन इसकी कोई शास्त्रीय वैधता नहीं है और उपवास के दौरान निश्चित रूप से इससे बचना चाहिए।