बीते गड़तंत्र दिवस पर देश की राजधानी दिल्ली से निकलते जिन दृश्यों को लोगों ने देखा उसने कहीं भय तो कहीं बेहद तीखे सवाल खड़े कर दिए।
लाल किले में मंगलवार दोपहर बाद 2 घंटे तक उत्पात चलता रहा. उपद्रवियों ने सिक्योरिटी, ऑडियो रूम और स्कैनिंग मशीनों को तहत नहस कर दिया है. लाल किले की सुरक्षा का पूरा इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम तोड़ दिया गया है. सुरक्षाकर्मियों के कमरे में अभी भी पुलिसकर्मियों के जैकेट, टूटे शीशे, टूटी कुर्सियां, टूटे टेबल देखे जा सकते हैं.
पर इन सब के बीच सबसे बड़ा सवाल उठता है की राष्ट्रीय पर्व के दिन लाल किले जैसे स्मारक की ऐसी शर्मनाक सुरक्षा का जिम्मेदार कौन है? क्या पुलिस 800-1000 कथित किसानों या उपद्रवियों पर दोषारोपण कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकती है।
ऐसे विशेष अवसरों पर हाई अलर्ट पर रहने वाली दिल्ली में, उसके दिल में बसे इस अभेद्य क़िले में यूँ सैकड़ों लोगों का घुस जाना, उत्पात मचाना कैसे संभव हुआ?
किसान नेताओं की तरफ ऊँगली कर के आरोप लगाती दिल्ली पुलिस खुद की तरफ़ मुड़ी तीन उंगलियों को क्या नजरांदाज कर सकती है।
जैसा कि ट्विटर पर सामाजिक चिंतक दिलीप मण्डल ने लिखा, "लाल क़िला महल नहीं, युद्ध का क़िला है। तोप के गोले झेलने वाला मज़बूत गढ़। जनता से लेकर पीएम तक एक ही गेट से अंदर जाते हैं। लाहौरी गेट बोलते हैं उसे। उसे बंद कर दें तो टैंक या तोप से गेट तोड़कर ही अंदर जा सकते हैं। कोई और रास्ता नहीं है। वह गेट कल बंद क्यों नहीं किया गया? ‘
तो आख़िर किस स्तर पर भूल हो गई?
दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद पुलिस कमिश्नर एसएन श्वीवास्तव ने किसान नेताओं पर विश्वासघात का आरोप लगाया है तो उनका बयान और भी बेतुका लगने लगा। क्या अब देश की राजधानी की सुरक्षा विस्श्वास-अविश्वास के भरोसे चलेगी।
सीधे तौर पर अब जनता इसे गृह मंत्रालय की नाकामी के तौर पर देख रही है। इससे बड़ा इनटेलीजेंस फेलियर आख़िर और हो भी क्या सकता है।
साथ ही साथ जब दिल्ली पुलिस ने सिर्फ़ 5000 टेक्टरों की अनुमति दी थी तो क्या यह तय किया गया था की किस बार्डर से कितने वाहन और किसान दिल्ली सीमा में प्रवेश करेंगे? और जब देश का हर न्यूज़ चैनल एक दिन पहले से 10-15 हजार ट्रैक्टरों का जमावड़ा दिखा रहा था तो उसे नियंत्रित करने की कोई कोशिश क्यों नहीं की गई? इस जगह निश्चित तौर पर दिल्ली पुलिस के विभीन्न जिलों, मुख्यालय और ग्रह मंत्रालय के बीच बेहद गहरी संवादहीनता औऱ गैर सामंजस्य नजर आता है
इसी ओर निशाना साधते हुए भारतीय किसान यूनियन नेता राकेश टिकैत ने कहा, "कल दिल्ली में ट्रैक्टर रैली काफी सफलतापूर्वक हुई। अगरप कोई घटना घटी है तो उसके लिए पुलिस प्रशासन ज़िम्मेदार रहा है। कोई लाल किले पर पहुंच जाए और पुलिस की एक गोली भी न चले। यह किसान संगठन को बदनाम करने की साजिश थी। किसान आंदोलन जारी रहेगा।"
अब देखना महत्वपूर्ण होगा कि पुलिस सिर्फ उपद्रवियों पर कार्यवाही कर अपना पलड़ा झाड़ लेती है या संबांधित अधिकारियों की भी जवाबदेही इसमे तय की जाएगी।