असली खबर यह कि लोकसभा मे अपने बूते बीजेपी बहुमत के आकंड़े से एक सीट नीचे खिसक गई. चार साल पहले बीजेपी ने मोदी लहर मे लोकसभा की 543 मे से 282 सीटें खुद ही जीत लीं थी.जबकि उसे बहुमत के लिये 272 सीटों की ज़रुरत थी. तब से लेकर अब तक उसकी 11 लोकसभा सीटें घट चुकी हैं. 15 महीने मे वह 10 सीटें लोक सभा उपचुनावों मे हार चुकी. अब गोरखपुर -फूलपुर मे हार से बीजेपी की खुद के बल पर बहुमत की संख्या से एक सीट कम हो गई.इनमे कीर्ति आजाद और शत्रूघन सिन्हा जैसे विद्रोही शामिल हैं,जो बीजेपी से नाता लगभग खत्म कर चुके . माना कि सारे एनडीए घटक बीजेपी से नाता कल खत्म कर दें तो आविश्वास प्रस्ताव की surat मे लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन को मोदी सरकार बचाने को अपना वोट देने उतरना होगा . बस अब पश्चीमी यूपी की केराना सीट पर उपचुनाव बाकी है .
भले ही मोदी सरकार को सहयोगी एनडीए दलों के साथ पूरा समर्थन है पर वह कार्यकाल भी पूरा करेगी लेकिन संकेत साफ हैं कि अखिलेश-मायावती के साथ आने का मतलब है कि उल्टी गिनती कहां ज़ाकर रुकेगी,दिल थामकर रखिये ! कांग्रेस कहां खडी है यूपी मे! अच्छा हुआ, उसे भी आईना दिख गया…