क्या सनकी तानाशाह ने तीसरा विश्व युद्ध छेड़ने की तैयारी कर ली है?

उत्तर कोरिया का तानाशाह किम जोंग आखिर क्या चाहता है? क्या उसने तीसरा विश्व युद्ध छेड़ने की तैयारी पूरी कर ली है? अमेरिका के भारी दबाव और यूएन प्रतिबंधों के बावजूद किम जोंग ने आज जापान की ओर एक और मिसाइल दाग दी. आखिर तानाशाह पर अमेरिका का दबाव भी काम क्यों नहीं आ रहा है? अंतर्राष्ट्रीय दबावों और संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी के बावजूद उ. कोरिया मिसाइलों का परीक्षण करने से बाज नहीं आ रहा है. 3 सितंबर को ही तानाशाह ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर पूरी दुनिया को भौचक कर दिया था. न अमेरिका उसे रोक पाया और न ही यूएन के प्रतिबंध लगाम कस पाए. किम जोंग पर किसी का दबाव काम नहीं आ रहा. अमेरिका की सारी कोशिशें अब तक तो नाकाम ही नजर आ रही हैं.

क्या है तानाशाह का मंसूबा?

तो क्या तानाशाह ने बड़े युद्ध और तबाही की तैयारी कर ली है? क्योंकि जिस तरह से वह तमाम पाबंदियों और अमेरिका की सख्त चेतावनियों के बावजूद मिसाइल परीक्षण कर रहा है, वह उसके मंसूबे का साफ संकेत है. अगर अमेरिका-उ. कोरिया के बीच जंग छिड़ती है तो चीन भी चुप नहीं रहेगा. इसका संकेत चीनी सरकारी मीडिया के बयानों से मिल चुका है. जंग के हालात बनते हैं तो जापान और दक्षिण कोरिया को भी इसमें उलझना होगा.

परमाणु परीक्षणों से चुनौती

अब तक उत्तर कोरिया 6 परमाणु परीक्षण कर चुका है. 3 अगस्त को ही उ. कोरिया ने पांचवां परमाणु परीक्षण किया था. जापान के उपर उसने छठा परमाणु परीक्षण कर माहौल को और गर्म कर दिया. उसका दावा है कि ये छठा परीक्षण पांचवे परमाणु परीक्षण से 10 गुना ज्यादा था. ये मिसाइल जापान के होकेइडो द्वीप के उपर से गुजरी. आज सुबह 6.57 मिनट पर ये मिसाइल दागी गई. यूएन ने उत्तर कोरिया पर कई बैन लगाए, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा. उसका परमाणु कार्यक्रम बदस्तूर जारी रहा. किम जोंग ने एक के बाद एक धमकियां दीं. अमेरिका को राख में जलाने की धमकी, तो जापान के द्वीप डुबोकर उसे छोटा करने की शेखी बघारी.

अमेरिका ने चीन पर भी दबाव बनाने की कोशिश की है, लेकिन ये भी काम नहीं आया. उसने चीन और रूस से उ. कोरिया को समझाने को कहा, लेकिन इसका असर होता नहीं दिखा. खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उ. कोरिया को कड़ी चेतावनी और चीन को नसीहत दे चुके हैं.

चीन-रूस पर अपील बेअसर

अमेरिका ने चीन और रूस से कड़े कदम उठाने को कहा है. उसने कहा है कि चीन से उ. कोरिया को बड़े पैमाने पर तेल की आपूर्ति होती है. रूस में उ. कोरिया से बड़ी संख्या में लोग काम करने पहुंचते हैं. ऐसे में दोनों देशों को सख्त कदम उठाकर उ. कोरिया पर काबू पाना चाहिए. अमेरिका के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन ने कहा कि चीन अपना अधिकतर तेल उत्तर कोरिया को मुहैया करवाता है. रूस उत्तर कोरियाई मजदूरों की बड़ी संख्या में नियुक्ति करता है. चीन और रूस को उस पर प्रत्यक्ष कार्रवाई करते हुए उसके लापरवाही भरे मिसाइल प्रक्षेपणों के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर करनी चाहिए.

अमेरिका की अपील अब तक असर नहीं दिखा पाई है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही कह चुके हैं कि रूस, उ. कोरिया के खिलाफ सख्त कार्रवाई के खिलाफ है. जबकि चीन ने पूरी तरह चुप्पी साध रखी है. उसके सरकारी मीडिया ने जरूर ये धमकी दी है कि अगर अमेरिका उ. कोरिया पर हमले जैसी कार्रवाई करता है तो चीन चुप नहीं रहेगा.

किम जोंग को कहां से मिल रही मदद?

सवाल ये उठ रहा है कि उ. कोरिया को परमाणु परीक्षण करने लायक साधन और सामग्री कहां से मिल रही है. इसके लिए सीधे तौर पर चीन पर ही उंगली उठ रही है. माना जाता है कि अमेरिका और जापान से सीधी भिड़ंत के चलते चीन, उ. कोरिया को भरपूर मदद मुहैया करवाता है. उसने शुरुआत से ही उ. कोरिया को न सिर्फ परमाणु सामग्री दी, बल्कि आर्थिक रूप से भी तानाशाह के देश को संभाला. सबूत तो इस बात के भी मिल चुके हैं कि पाकिस्तान ने उ. कोरिया की मदद से ही अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाया. यहां भी चीन ही सीधे तौर पर संदेह की नजरों में आया.