अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण की मांग वाली याचिका को माकपा ने कहा अनुचित

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (29 नवंबर 2024): मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण की मांग करने वाली याचिका को स्थानीय अदालत द्वारा विचार के लिए स्वीकार किए जाने को अनुचित और कानूनी रूप से आधारहीन बताते हुए उच्चतम न्यायालय से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करने की अपील की है। अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा करते हुए यह याचिका स्थानीय अदालत में दायर की गई थी।

अदालत ने बुधवार को इस वाद को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए अजमेर दरगाह समिति, अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। माकपा ने एक बयान में कहा कि “अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने का निर्णय अनुचित और गलत है।” पार्टी ने यह भी कहा कि यह याचिका उस पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों का उल्लंघन है, जो कहता है कि 15 अगस्त, 1947 से पहले मौजूद किसी धार्मिक स्थल पर कोई कानूनी विवाद नहीं उठाया जा सकता है।

अजमेर दरगाह के खादिमों (सेवकों) के संगठन ने इस याचिका की कड़ी निंदा करते हुए आरोप लगाया कि यह याचिका सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने और मुसलमानों को अलग-थलग करने की एक साजिश है। दरगाह के खादिमों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था ‘अंजुमन सैयद जादगान’ के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा, “यह याचिका समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने के लिए जानबूझकर की जा रही कोशिश है।” उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के मामलों को उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद के सर्वेक्षण की मांग से जोड़ते हुए यह संदेश दिया कि ऐसे विवादों से धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान हो सकता है।

सैयद सरवर चिश्ती ने कहा, “अजमेर की ख्वाजा गरीब नवाज की पवित्र दरगाह एक धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण है, जहां न केवल मुसलमान बल्कि हिंदू भी आते हैं। यह दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक है, और विविधता में एकता को बढ़ावा देती है।”

यह याचिका हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर की गई है, जिन्होंने दावा किया कि जहां दरगाह बनाई गई, वहां पहले एक शिव मंदिर था। गुप्ता ने अपने शोध के आधार पर दावा किया कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने उस शिव मंदिर को नष्ट किया और बाद में वहां दरगाह बनाई। उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि एएसआई को उस स्थान का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया जाए और दरगाह को शिव मंदिर घोषित किया जाए।

गुप्ता ने अपनी याचिका में कहा कि उन्होंने दो साल तक इस स्थान पर शोध किया है, और उनके निष्कर्षों के मुताबिक, यह स्थान पहले एक शिव मंदिर था। इसके साथ ही, गुप्ता ने दरगाह संचालन से जुड़े अधिनियम को रद्द करने और पूजा करने का अधिकार देने की भी मांग की।

‘यूनाइटेड मुस्लिम फोरम राजस्थान’ (यूएमएफआर) के अध्यक्ष मुजफ्फर भारती ने भी इस याचिका को उपासना स्थल अधिनियम 1991 का उल्लंघन बताया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया कि इस तरह के मामलों पर ध्यान दिया जाए, क्योंकि इससे देश में सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान हो सकता है।

दरगाह के खादिमों और मुस्लिम संगठनों ने इस याचिका को न केवल कानूनी रूप से गलत बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द को प्रभावित करने वाली भी बताया है। उनका कहना है कि इस प्रकार के विवादों से धार्मिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचेगा और यह देश की एकता और भाईचारे के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।

 

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