जैन धर्म का पालन यदि मजबूरी में किया तो मजदूर बनोगे, और मजबूती से किया तो महावीर बनोगे: प्रज्ञासागर मुनिराज

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (09/04/20223): जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की 2622वीं जन्म जयंती के शुभ अवसर पर विज्ञान भवन नई दिल्ली में भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव समिति, नई दिल्ली द्वारा भगवान महावीर स्वामी के 2550 वें निर्वाण महोत्सव “शंखनाद कार्यक्रम” का भव्य आयोजन किया। यह कार्यक्रम राष्ट्रगुरू परंपराचार्य 108 प्रज्ञासागर मुनिराज जी की उपस्थिति में संपन्न हुआ।

जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में श्री श्री रविशंकर, श्री चिदानंद स्वामी और भारत सरकार के मंत्रियों, समस्त जैन समाज के विशिष्टजनों की उपिस्थिति रहे । साथ ही जिसमें अतिथियों एवं उपस्थित जनसमूह द्वारा भगवान महावीर स्वामी जयंती के 2550वें निर्वाण महोत्सव को 2023 दिवाली से अगले वर्ष 2024 तक देश और विश्वभर में उत्साहपूर्वक मनाने का संकल्प लिया। कार्यक्रम का उद्घाटन ध्वजारोहण एवं शंखनाद के साथ प्रारंभ हुआ साथ ही कार्यक्रम में उपस्थित सभी संतो ने बारी-बारी से अपने विचार प्रस्तुत किए।

राष्ट्रगुरू परंपराचार्य 108 प्रज्ञासागर मुनिराज ने अपने वक्तव्य में कहा सुख शांति में जिओ यदि हम अच्छे से जिएं तब ओर लोगों को जीने दोगे। आप रो पिटकर जीते हो, आप ईर्ष्या में जीते हो,आप जलन में जीते हो, आप बुराईयों में जीते हो, आप दूसरे को ठगने में जीते हो जब आप ऐसे में जिओगे तो फिर दूसरे को कैसे जीने दोगे। भगवान महावीर कहते हैं ऐसा जीवन जीयो जिससे दूसरों का जीवन कष्टमय न हो। इसलिए सुख शांति से जीओ और दूसरे को जीने दो।

आगे राष्ट्रगुरू परंपराचार्य 108 प्रज्ञसागर मुनिराज ने कहा कि महावीर का धर्म मजबूरी नहीं बल्कि मजबूती का धर्म है। इसलिए आप जैन धर्म को मजबूरी में न अपनाएं। यदि आपने मजबूरी में जैन धर्म का पालन किया तो आप आगे चलकर मजदूर बनोगे। यदि जैन धर्म का पालन मजबूती में किया तो आप आगे चलकर महावीर बनोगे। दुनिया के सामने दो ही विकल्प है एक तो महावीर और दूसरा महाविनाश। महाविनाश विश्व की समस्या है जबकि महावीर उसके समाधान है। विश्व समस्या का समाधान मात्र महावीर से हो सकता है।

बता दें कि भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान हैं, महावीर जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पूर्व बिहार के कुंडलपुर के राज घराने में हुआ था। महावीर का बचपन का नाम वर्धमान था। लगभग 30 वर्ष की आयु में महावीर ने अपना सब राजपाट त्यागकर संन्यास धारण कर लिया था। संन्यास धारण करने के बाद महावीर आध्यात्म के मार्ग पर चले गए थे। 12 वर्ष कठोर तप के बाद महावीर ने जिससे अपनी सभी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर और दिगंबर स्वरूप को स्वीकार कर महावीर स्वामी निर्वस्त्र रहकर मौन साध लिया था। प्रतिवर्ष हर 4 अप्रैल को महावीर स्वामी की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है।