किसी भी देश की प्रगति का व्यक्तियों की आवाजाही और माल की ढुलाई से संबंधित उसकी दक्षता से गहरा संबंध है। अच्छी परिवहन व्यवस्था उपलब्ध संसाधनों, उत्पादन केन्द्रों और बाजार के बीच अनिवार्य संपर्क उपलब्ध कराते हुए आर्थिक वृद्धि में सहायता प्रदान करती है। यह देश के एकदम दूरदराज के क्षेत्र में अंतिम व्यक्ति तक वस्तुओं और सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करते हुए संतुलित क्षेत्रीय प्रगति की दिशा में महत्वपूर्ण कारक भी है।
दुनिया के सबसे विशाल परिवहन नेटवर्क्स में से एक होने के बावजूद, भारत का परिवहन नेटवर्क लंबे अर्से से यात्रियों की आवाजाही और माल ढुलाई के क्षेत्र में बहुत धीमी रफ्तार और अकुशलता से ग्रसित रहा। इस क्षेत्र के समक्ष कई चुनौतियां रहीं। दूरदराज के क्षेत्रों और दुर्गम स्थानों पर परिवहन नेटवर्क की पर्याप्त पहुंच का अभाव रहा। राजमार्ग संकरे, भीड़भाड़ वाले और खराब रख-रखाव वाले रहे, जिनकी वजह से यातायात की गति धीमी रहती थी, बहुमूल्य समय की हानि होती थी और प्रदूषण का भारी दबाव रहता था। इनकी वजह से आये दिन सड़क दुर्घटनाएं होती हैं और हर साल लगभग 1.5 लाख लोगों को जान गंवानी पड़ती हैं। बहुत अधिक मात्रा में माल ढुलाई सड़क मार्ग के जरिये होती है, हालांकि यह साबित हो चुका है कि यह माल ढुलाई का सबसे महंगा साधन हैं और इससे प्रदूषण भी ज्यादा फैलता है। रेल परिवहन, सड़क परिवहन की तुलना में ज्यादा किफायती और पर्यावरण के अनुकूल साधन है, लेकिन उसका नेटवर्क धीमा और अपर्याप्त है। जबकि जल मार्ग, जो परिवहन के तीनों साधनों में से सबसे किफायती और पर्यावरण के अनुकूल साधन है, बड़े पैमाने पर अल्प विकसित है। इस घाटे वाले मॉडल मिक्स के परिणामस्वरूप लॉजिस्टिक्स की लागत बहुत अधिक है, जिसकी वजह से हमारी वस्तुएं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गैर प्रतिस्पर्धी बन जाती है।
हालांकि पिछले तीन-चार वर्षों से इस स्थिति में बदलाव आना शुरू हुआ है। सरकार ने देश में ऐसी विश्वस्तरीय परिवहन अवसंरचना का निर्माण करने को प्रमुख रूप से प्राथमिकता दी है, जो किफायती हो, सभी को आसानी से सुलभ हो सके, सुरक्षित हो और ज्यादा प्रदूषण फैलाने का कारण भी न बने और जहां तक हो सके अधिक से अधिक स्वदेशी सामग्री पर निर्भर हो। इसमें विश्वस्तरीय प्रौद्योगिकी का लाभ उठाते हुए उपलब्ध मौजूदा ढांचे को मजबूती प्रदान करना, नई बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करना और इस कार्य में सहायक विधायी फ्रेमवर्क को आधुनिक बनाना शामिल है। इसमें निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी तथा ऐसी साझेदारी के लिए समर्थ बनाने वाले वातावरण का निर्माण करना और उसे प्रोत्साहन देना भी शामिल है।
राष्ट्रीय राजमार्ग देश के सड़क नेटवर्क का महज दो प्रतिशत अंश है, लेकिन वह यातायात के 40 प्रतिशत भार का वहन करता है। सरकार राजमार्गों की लंबाई और गुणवत्ता, दोनों के संदर्भ में इस बुनियादी ढांचे में वृद्धि करने की दिशा में कड़ी मेहनत कर रही है। वर्ष 2014 में 96,000 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग से शुरूआत करते हुए अब हमारे पास 1.5 लाख किलोमीटर राजमार्ग हैं और जल्द ही इनके 2 लाख किलोमीटर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। आगामी भारतमाला कार्यक्रम सीमा और अंतर्राष्ट्रीय सम्पर्क सड़कों को जोड़ेगा, आर्थिक गलियारों, अन्तर-गलियारों और फीडर रूट्स का विकास करेगा, राष्ट्रीय गलियारों के सम्पर्क में सुधार लाएगा, तटीय और बंदरगाह सम्पर्क सड़कों और ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवेज का निर्माण करेगा। इसका आशय है कि देश के समस्त क्षेत्रों की राष्ट्रीय राजमार्गों तक सुगम पहुंच होगी।
सड़क सम्पर्क का निर्माण करने के संदर्भ में पूर्वोत्तर क्षेत्र, नक्सल प्रभवित क्षेत्र, पिछड़े और आंतरिक क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। असम में ढोला सादिया सेतु जैसे पुल और जम्मू कश्मीर की चेनानी नाशरी सुरंग जैसी अत्याधुनिक सुरंगें, दुर्गम स्थानों की दूरियों को कम कर रहे हैं और दूरदराज के इलाकों तक पहुंच को ज्यादा सुगम बना रहे हैं। वडोदरा-मुम्बई,बेंगलूरू-चेन्नई और दिल्ली-मेरठ मार्ग जैसे यातायात के अधिक दबाव वाले गलियारे विश्वस्तरीय, एक्सेस कन्ट्रोल्ड एक्सप्रेसवेज की इंतजार में हैं, जबकि चार धाम और बौध सर्किट जैसे धार्मिक और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्रों तक यात्रा त्वरित और ज्यादा सुविधाजनक हो जाएगी।
राजमार्गों के किलोमीटर बढ़ाने के अलावा, हम उन्हें यातायात के लिए सुरक्षित बनाने के लिए भी संकल्पबद्ध हैं। इसके लिए, एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया गया है, जिसमें सड़कों के डिजाइन में सुरक्षा की विशेषताएं शामिल करना, दुर्घटना की आशंका वाले क्षेत्रों को दुरुस्त करना, सड़कों पर उचित संकेतक, ज्यादा प्रभावी कानून, वाहनों से संबंधित सुरक्षा के बेहतर मानक,चालकों का प्रशिक्षण, बेहतर ट्रामा केयर और जनता में जागरूकता बढ़ाना शामिल हैं। सेतु भारतम कार्यक्रम के अंतर्गत सभी रेलवे फाटकों को ओवर ब्रिज या अंडर पास से बदला गया है और राष्ट्रीय राजमार्ग पर सभी पुलों पर ढांचागत रेटिंग सहित एक इन्वेन्ट्री तैयार की जा रही है, ताकि उनकी मरम्मत और पुनर्निर्माण का कार्य समय पर किया जा सकें।
मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक को लोकसभा में पारित कर दिया गया है और राज्यसभा द्वारा पारित किया जाना है। विधेयक में सख्त जुर्माना, वाहनों की उपयुक्तता के प्रमाणीकरण और वाहन चालकों को लाइसेंस देने जैसे विषयों को कम्प्यूटर द्वारा पारदर्शी बनाना, मानव हस्तक्षेप न्यूनतम करना, कानूनी प्रावधानों और सूचना प्रौद्योगिकी प्रणालियों का समावेश किया गया है।
प्रदूषण की समस्या को कम करने के मुद्दे पर भी विचार किया गया है। इसके तहत पुराने वाहनों को हटाना, 01 अप्रैल, 2020 से बीएस-6 उत्सर्जन नियमों को अपनाना, स्थानीय आबादी के सहयोग से राजमार्गो पर वृक्षारोपण तथा इलेक्ट्रनिक टोल क्लेक्शन प्रक्रिया को लागू करना शामिल है ताकि टोल प्लाजा के ऊपर वाहनों को कम समय तक इंतजार करना पड़े। इथेनॉल, बायो-सीएनजी, बायो-डीजल, मीथेनॉल और बिजली के इस्तेमाल जैसे वैकल्पिक ईंधनों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। प्रायोगिक स्तर पर इन वैकल्पिक ईंधनों को कुछ शहरों में इस्तेमाल किया जा रहा है।
सस्ते और हरित जल यातायात की संभावनाएं खोजी जा रही हैं। भारत की 7500 किलोमीटर लम्बी तटरेखा और 14 हजार से अधिक लम्बे जलमार्गों का सागरमाला कार्यक्रम के जरिये क्षमता का आकलन किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप में घोषित किया गया है। सागरमाला के तहत बंदरगाहों के विकास की रूपरेखा तैयार की जा रही है। 14 तटीय आर्थिक क्षेत्रों के विकास के जरिये बंदरगाहों के आसपास उद्योग लगाने का विचार है। इस विचार के तहत बंदरगाह संरचना का आधुनिकीकरण किया जाएगा और सड़क, रेल तथा जलमार्गों के जरिये अंदरूनी हिस्सों को बंदरगाहों से जोड़ा जाएगा। इसके साथ ही तटीय समुदायों का विकास किया जाएगा। उम्मीद की जाती है कि 35000- 40000 करोड़ रुपये की वार्षिक लॉजिस्टिक बचत के अलावा निर्यात लगभग 110 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ जाएगा तथा एक करोड़ नए रोजगार पैदा होंगे। अगले 10 वर्षों के दौरान सागरमाला द्वारा घरेलू जलमार्गों की हिस्सेदारी दुगनी हो जाएगी।
उपरोक्त के अतिरिक्त कई जलमार्गों पर काम चल रहा है। इनमें गंगा और ब्रह्मपुत्र की नौवहन क्षमता का विकास किया जाएगा। गंगा नदी पर विश्व बैंक द्वारा सहायता प्राप्त जलमार्ग विकास परियोजना का उद्देश्य हल्दिया से इलाहाबाद तक के क्षेत्र को विकसित करना है ताकि वहां 1500-2000 टन जहाजों का नौवहन हो सके। वाराणसी, साहेबगंज और हल्दिया में बहु-स्तरीय टर्मिनल बनाए जा रहे हैं। यहां अन्य आवश्यक संरचना का भी तेजी से विकास किया जा रहा है। इसके विकास से देश के पूर्वी और उत्तर पूर्वी हिस्सों में माल का आवागमन होने लगेगा, जिससे वस्तुओं की कीमतों में कमी आएगी। अगले तीन सालों में 37 अन्य जलमार्गो को विकसित किया जाएगा।
राजमार्ग और जलमार्ग क्षेत्रों का तेजी से आधुनिकीकरण किया जा रहा है। इसके अलावा एकीकृत यातायात प्रणाली का विकास किया जा रहा है, जो इष्टतम मोडल और निर्बाध अंतर-मोडल सम्पर्कता पर आधारित है। इस संबंध में लॉजिस्टिक एफिशियेन्सी इनहांसमेंट प्रोग्राम तैयार किया गया है ताकि देश में माल यातायात की क्षमता में बढ़ोतरी हो। इसमें 50 आर्थिक गलियारों, फीडर रूटों का उन्नयन, 35 मल्टीमोडल लॉजिस्टिक पार्कों का विकास शामिल है। इन पार्कों में भंडारण और गोदाम की सुविधाएं उपलब्ध होंगी। इनके अलावा विभिन्न यातायात माध्यमों के एकीकरण के लिए 10 अंतर-मोडल स्टेशनों का निर्माण भी किया जाएगा।
भारत में यातायात क्षेत्र बहुत तेजी से बदल रहा है और देश के विकास में वह बड़ी भूमिका निभाएगा। भारतीय परिदृश्य में यह क्रांति दृष्टिगोचर हो रही है। इसके प्रकाश में हम यह आशा करते हैं कि इससे न केवल देश का तेज विकास होगा, बल्कि अब तक वंचित रहे क्षेत्रों और लोगों तक विकास के लाभ पहुंचेंगे।
* लेखक केंद्रीय सड़क यातायात एवं राजमार्ग और नौवहन मंत्री हैं।