मोदी सरकार में क्या आईएएस अफसरों का वर्चस्व कमजोर पड़ने लगा है.
सरकार की ओर से उठाए गए हालिया कदम कुछ इसी तरफ संकेत करते हैं.
मोदी सरकार में आईएएस अफसरों का वर्चस्व कम होने लगा है. देश में सबसे मजबूत मानी जाने वाली आईएएस लॉबी भी कमजोर पड़ती नजर आ रही है. सरकार की ओर से उठाए गए हालिया कदम से कुछ ऐसे ही संकेत मिलते हैं. ताजा मामला है 33 संयुक्त सचिवों की नियुक्ति का. दो दिन पहले मोदी सरकार ने इस कार्यकाल में किए सबसे बड़े प्रशासनिक फेरबदल में अपने इरादे जाहिर कर दिए. मोदी सरकार ने जता दिया कि केंद्र में सिर्फ आईएएस की तूती नहीं बोलने वाली, बल्कि अन्य संवर्ग के अफसरों को भी महत्व मिलेगा. सियासी और प्रशासनिक गलियारे में कहा जा रहा है कि सरकारी कामकाज में आईएएस अफसरों का वर्चस्व तोड़कर सरकार बड़ा संदेश देना चाहती है.
सरकार ने जिन 33 संयुक्त सचिवों की नियुक्ति की, उसमें ज्यादातर इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट्स सर्विस, भारतीय डाक एवं संचार, भारतीय सैन्य अकाउंट सेवा, इंडियन रेलवे अकाउंट्स सर्विस, इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ सिग्नल इंजीनियर्स और इंडियन स्टैटिस्टिकल सर्विसेज के अफसर शामिल हैं. इन अफसरों को सचिव बनाए जाने का प्लान इस साल फरवरी में ही मोदी सरकार ने बनाया था. दूसरे कार्यकाल में प्लान को अमलीजामा पहनाया गया. कहा जा रहा है कि यह सारी कवायद मोदी सरकार की ओर से ब्यूरोक्रेसी को गति देने के मकसद से की जा रही है.
किसे कहां मिली तैनाती
केंद्र सरकार की ओर से 23 जुलाई को जारी सूचना के मुताबिक, इंडियन ऑडिट एंड एकाउंट्स सर्विसेज की 1995 बैच की अफसर पूजा सिंह मंडोल को सिविल एविएशन निदेशालय का ज्वाइंट सेक्रेटरी बनाया गया है. सिविल एविएशन मिनिस्ट्री में ही इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ मैकेनिकल इंजीनियरिंग( (IRSME) अफसर अंशुमाली रस्तोगी ज्वाइंट सेक्रेटरी बने हैं.1992 बैच के आईएएस पंकज अग्रवाल कैबिनेट सचिवालय में पांच साल के लिए ज्वाइंट सेक्रेटरी बने हैं. इसी तरह 1988 बैच की आईएफएस शोमिता बिश्वास एग्रीकल्चर कॉरपोरेशन एंड फॉर्मर्स वेलफेयर डिपार्टमेंट की ज्वाइंट सेक्रेटरी नियुक्ति की गई हैं.
इसी तरह IRS अफसर संदीप एम प्रधान को भारतीय खेल प्राधिकरण में महानिदेशक नियुक्त किया गया है. वहीं भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा की अधिकारी राधिका चौधरी और केंद्रीय सचिवालय सेवा की जी जयंती को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर नियुक्ति मिली है.
लेटरल एंट्री भी बनी IAS लॉबी के लिए सिरदर्द
नरेंद्र मोदी सरकार ने हाल में लेटरल एंट्री के जरिए ब्यूरोक्रेसी में प्राइवेट सेक्टर के लोगों के लिए भी दरवाजे खोल लिए. अब ज्वाइंट सेक्रेटरी वे भी लोग भी बन सकते हैं, जो सिविल सर्विसेज की परीक्षा से नहीं गुजरे हैं. सरकार विभिन्न मंत्रालयों मे निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को ज्वाइंट सेक्रेटरी बनाकर उनके अनुभव का लाभ लेना चाहती है. लेटरल एंट्री सिस्टम भी ब्यूरोक्रेसी में आईएएस अफसरों के वर्चस्व को चुनौती देने वाला करार दिया जा रहा है. हालांकि आईएएस एसोसिएशन या निजी तौर पर आईएएस अफसरों ने इस सिस्टम को लेकर कोई एतराज नहीं जाहिर किया है. मगर बताया जा रहा है कि आईएएस संवर्ग में अंदर ही अंदर इसको लेकर नाराजगी है.
निजी क्षेत्र के 9 विशेषज्ञ बन चुके हैं ज्वाइंट सेक्रेटरी
केंद्र सरकार कुछ महीने पहले लेटरल एंट्री के तहत निजी क्षेत्र के 9 विशेषज्ञों को विभिन्न विभागों में संयुक्त सचिव के पदों पर नियु्क्त कर चुकी है. इसमें सुजीत कुमार बाजपेयी (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन), अरुण गोयल (वाणिज्य), अंबर दुबे (नागरिक उड्डयन), राजीव सक्सेना (आर्थिक मामले), सौरभ मिश्रा (वित्तीय सेवाएं), दिनेश दयानंद जगदाले (नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा), सुमन प्रसाद सिंह (सड़क परिवहन और राजमार्ग), भूषण कुमार (शिपिंग) और काकोली घोष (कृषि, सहयोग और किसान कल्याण) शामिल हैं.
दरअसल, जुलाई 2017 में मोदी सरकार ने ब्यूरोक्रेसी में लेटरल एंट्री (Lateral Entry) से सीधी नियुक्ति का प्लान तैयार किया था. सरकार के प्लान के मुताबिक निजी क्षेत्र के अनुभवी विशेषज्ञों को उपसचिव, निदेशक और संयुक्त सचिव स्तर के पदों पर नियुक्त किया जा सकता है. सरकार ने यह कवायद नीति आयोग की एक रिपोर्ट पर की थी, जिसमें लेटरल एंट्री के तहत निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों की सेवाएं लेने का सुझाव दिया गया था. कहा गया था कि इसके प्रशासनिक सुधार के साथ ब्यूरोक्रेसी को गति भी मिलेगी.