16 जुलाई – “भारतीय ज्ञान प्रणाली के अभिन्न अंग गीता-आधारित योग को कर्म में उत्कृष्टता के रूप में समझने की आवश्यकता है”I ये शब्द तीन बार कुलपति रहे प्रो. मदन मोहन गोयल, जिन्हें नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट के प्रवर्तक और कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ने कहे ।
प्रो. गोयल ने यह विचार मालवीय मिशन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र (एमएमटीटीसी) गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा आयोजित ‘भारतीय ज्ञान प्रणाली: गीता-आधारित नीडोनॉमिक्स और अनु-गीता की प्रासंगिकता’ विषय पर ऑनलाइन एनईपी ओरिएंटेशन और सेंसिटाइजेशन कार्यक्रम में व्यक्त किए। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर सुनीता, निदेशक एमएमटीटीसी ने की।
कार्यक्रम के बैच समन्वयक डॉ. अनुराग सागवान सहायक प्रोफेसर ने स्वागत भाषण दिया और प्रोफेसर एम.एम.गोयल की उपलब्धियों पर प्रशस्ति पत्र प्रस्तुत किया।
प्रो. गोयल ने बताया कि अपने काम को कुशलता से करना (कर्म योग), एकाग्रता के साथ करना (ध्यान योग) और बिना परिणाम की चिंता किए करना (ज्ञान योग) ही वास्तविक योग है।
उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान समय में ग्रीडोनॉमिक्स (लालच का अर्थशास्त्र) के कारण होने वाली समस्याओं का सरल समाधान गीता-आधारित नीडोनॉमिक्स में निहित है, जिसे नीडो-हेल्थ, नीडो-वेल्थ और नीडो-प्रसन्नता के साथ नीडो-उपभोग, नीडो-सेविंग, नीडो-इंवेस्टमेंट, नीडो-प्रोडक्शन और नीडो-गवर्नेंस के रूप में समग्र रूप से समझा जा सकता है।
प्रो. गोयल ने भारतीय ज्ञान प्रणाली पर आधारित शिक्षा की एक नई कहानी लिखने हेतु, हमें स्ट्रीट स्मार्ट (सरल, नैतिक, कार्य-उन्मुख, उत्तरदायी और पारदर्शी) बनने पर जोर दिया।