प्राचीन भारत की विश्वविद्यालय शिक्षा पर अधिकांश चर्चा तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालयों के गौरव के इर्द-गिर्द केंद्रित रही है। हालांकि यह दोनों विश्वविद्यालय बौद्ध काल के बाद निस्संदेह वैश्विक स्तर पर प्रमुख थे, लेकिन इनमें से कोई भी इस बात का संकेत नहीं देता कि प्राचीन भारत वास्तव में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की उन्नति के मामले में कैसा था, जो आज भी आधुनिक वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तकों के लिए एक रहस्य बना हुआ है। तक्षशिला और नालंदा निस्संदेह दुनिया भर के विद्वानों के लिए बहुत आकर्षण के केंद्र रहे हैं, लेकिन वे किसी भी तरह से विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उस श्रेष्ठता को मापने का प्रवेश द्वार नहीं थे, जो वैदिक काल के भारतवर्ष के विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्रों ने हासिल की थी, जिसने भारतवर्ष को पथप्रदर्शक विज्ञान और प्रौद्योगिकी नवाचारों में गहन शिक्षा और विद्वता के लिए विश्व गुरु के रूप में सदेव के लिए विकसित किया था।
प्राचीन भारतवर्ष के विज्ञान और प्रौद्योगिकी कौशल की प्रशंसा के लिए व्यापक अंतर तब और भी स्पष्ट हो गया जब बौद्ध काल के बाद के इन शिक्षा और विद्वत्ता के केंद्रों को विदेशी आक्रमणकारियों और लुटेरों ने नष्ट कर दिया। यह लुटेरे शिक्षा के महत्व और विद्वत्ता के कट्टर दुश्मन थे।
प्राचीन भारत के उन्नत विज्ञान और प्रौद्योगिकी के रामायण और महाभारत युग:
वैज्ञानिक रूप से उन्नत और तकनीकी रूप से सशक्त प्राचीन भारत के गौरव को देखने के लिए हमें कमसे कम रामायण और महाभारत काल तक वापस जाना होगा ताकि प्राचीन भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी में शिक्षा के केंद्रों, एवं प्राचीन भारत के विश्वविद्यालयों द्वारा किए गए सुपर-विज्ञान और आश्चर्यचकित कर देने वाले तकनीकी नवाचारों की झलक मिल सके।
इस श्रृंखला मे महर्षि विश्वामित्र का विश्वविद्यालय आश्रम जहाँ भगवान राम और उनके भाई लक्ष्मण को महर्षि विश्वामित्र ने ‘मन से मन की कनेक्टिविटी’ के सुपर-विज्ञान में प्रशिक्षित किया था और इसके अनुप्रयोगों को ब्रह्मास्त्र और अग्नि अस्त्र जैसे घातक मिसाइलों को दूर-दराज के स्थानों से फायर करने के लिए ना केवल प्रशिक्षित किया था, वरन इन हथियारों के गुप्त डिजिटल कोड को दिमाग में याद करके श्री लंका में राम रावण युद्ध में माइंड टू मशीन कनेक्टिविटी द्वारा फायर करने में सफलता प्राप्त की।
इसके अलावा, जैसा कि रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने उल्लेख किया है, इंटर्नशिप पूरी होने पर एक सुबह महर्षि विश्वामित्र ने भगवान राम से कहा कि वे उनके सामने अठारह इंच की दूरी पर बैठें और सबसे उन्नत संचार तकनीक, अर्थात् “मन से मन की कनेक्टिविटी” का उपयोग करके घातक हथियारों को फायर करने के लिए इन गुप्त डिजिटल कोड को स्थानांतरित करें, जो कि आधुनिक समय के ब्लूटूथ के माध्यम से एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में डेटा और फ़ाइलों के संचरण के समान है। यह भगवान राम के लिए रावण के साथ युद्ध के दौरान दूरदराज के स्थानों से मिसाइलों को फायर करने में काम आया, जिसका वर्णन राम-रावण युद्ध क में रामचरित मानस में किया गया है।
इसी तरह, उज्जैनी में महर्षि संदीपनी विश्वविद्यालय आश्रम जहाँ भगवान कृष्ण ने मित्र सुदामा के साथ अध्ययन किया और गुरुग्राम में द्रोणाचार्य विश्वविद्यालय आश्रम जहाँ पांडवों को महान गुरु द्रोणाचार्य द्वारा प्रशिक्षित किया गया था, वास्तव में उन्नत विज्ञान और प्रौद्योगिकी में शिक्षा के प्राचीन भारत के विश्व प्रसिद्ध केंद्र थे। इन प्राचीन भारत के विश्वविद्यालयों में विकसित विजयन एवं प्रौद्योगिकी आज भी आधुनिक विज्ञान को एक चुनौती बनी हुई है। प्राचीन भारत के वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी नवाचारों की महान क्षमताओं को देखने से आज भी यह अहसास होता है कि जबकि आज हम AI और स्मार्ट और बुद्धिमान मशीनों और उपकरणों के युग में हैं !
भारतीय विज्ञान कांग्रेस को सर्कस कहना आधुनिक वैज्ञानिक समुदाय की एक बड़ी गलती थी:
नेचर में मई 2024 में प्रकाशित एक लेख में मस्तिष्क की आंतरिक वाणी को डिकोड करने के लिए ब्रेन रीडिंग डिवाइस को विकसित करने पर बताया गया है कि “वैज्ञानिकों ने एक ऐसा मस्तिष्क प्रत्यारोपण विकसित किया है जो आंतरिक वाणी को डिकोड कर सकता है – दो लोगों द्वारा अपने मन में बोले गए शब्दों को पहचान सकता है, बिना होंठ हिलाए या आवाज निकाले”। यह वास्तव में, भाषण या संचार के अन्य माध्यमों के रूप में संप्रेषित होने से पहले ही किसी व्यक्ति के मन में चल रहे विचारों और भावों को पकड़ने की एक अच्छी शुरुआत है।
लेकिन अत्याधुनिक ब्रेन रीडिंग डिवाइस अभी भी टेलीपैथी, “मन से मन की कनेक्टिविटी” के सुपर साइंस, जिसे वैदिक विज्ञान में वर विज्ञान कहा गया है, की बराबरी नहीं कर सकती है, लेकिन उसके करीब पहुंच रही है। आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति के माध्यम से एक दिन मन से मन के बीच संचार को संभव किया जा सकेगा, आधुनिक ब्रेन मैपिंग इसी दिशा में एक कदम है।
टेलीपैथी और अन्य वैदिक विज्ञानों का वर्ष 2016 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस मै कुछ लोगों द्वारा उपहास किया गया था, जिसमें विज्ञान के एक नोबेल पुरस्कार विजेता भी शामिल थे। इस भारतीय विज्ञान कांग्रेस मै आयुर्वेद के विश्व व्यापी उपयोग और वैदिक गणित सहित वैदिक विज्ञानों का भव्य प्रदर्शन प्रस्तुत किया गया था। भारतीय विज्ञान कांग्रेस में उपस्थित विज्ञान के एक नोबेल पुरस्कार विजेता, जो भारतीय मूल के थे, ने इन वैदिक विज्ञानों को ना केवल गैर-विज्ञान करार दिया वरन यहां तक कि भारतीय विज्ञान कांग्रेस को एक सर्कस तक कह दिया!
दिल्ली में उसी नोबेल पुरस्कार विजेता द्वारा बाद में आयोजित एक सेमिनार में वैदिक विज्ञानों का उपहास और भी मुखर हुआ और वैदिक विज्ञानों के प्रति भारत के प्रेम को “प्लेसबो इफ़ेक्ट” कह दिया गया। मुझे याद है कि मैंने उन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार विजेता से यह कहते हुए सवाल किया था कि “यदि वर्तमान विज्ञान टेलीपैथी या वैदिक गणित की व्याख्या करने में असमर्थ है, तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि टेलीपैथी विज्ञान नहीं है और वैदिक गणित का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है ? हो सकता है कि वर्तमान विज्ञान अभी इतना उन्नत न हो कि “मन से मन की बात” प्रसारण प्रणाली जो सही अर्थों में वर विज्ञान है को समझ सके । माननीय नोबेल विजेता वैज्ञानिक ने यह कह कर कि यह प्लेसिबो इफेक्ट है, विज्ञान नहीं मेरे प्रश्न को तल दिया।
मैने पुनः दोहराया कि टेलीपैथी भी विज्ञान है जो एक व्यक्ति के मन को दूसरे व्यक्ति के मन को कनेक्ट कर सूचना का संचारण करता है। मैंने यहां तक कहा कि उस समय गुरुग्राम के एमिटी विश्वविद्यालय में युवा अन्वेषकों ने बिना तार के मस्तिष्क संकेतों को संचारित करने के लिए माइक्रो पल्स सेंसर और टेलीमेट्री का उपयोग करके एक उपकरण बनाया था, जिससे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को बिना एक दूसरे को देखे इशारों को दोहराया जा सकता था। लेकिन जो लोग वैदिक विज्ञान को विज्ञान नहीं मानते, उनके लिए यह भारतीय वैदिक विज्ञान नहीं है ऐसी अवधारणा बन की गई है।भारतीय विज्ञान कांग्रेस की विश्वसनीयता को नष्ट करने के लिए प्राचीन वैदिक विज्ञान की खिल्लियां उड़ाई गईं और यह मीडिया मै भी सुर्खियाँ बनीं। हम भारतीय यह भूल जाते हैं कि भारतीय विज्ञान कांग्रेस की स्थापना भारत के महानतम वैज्ञानिकों में से एक नोबेल पुरस्कार विजेता परम सम्माननीय सीवी रमन जी ने की थी। हां वही सुप्रसिद्ध सी वी रमन जिन्होंने प्रकृति के रहस्यों को समझने के लिए ‘रमन प्रभाव’ , Raman Effect की खोज की थी। आज भी रमन इफेक्ट आज भी आधुनिक वैज्ञानिकों को जीवन और सृष्टि की उत्पत्ति के रहस्य का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक उपकरणों और उपकरणों के विकास करने तथा अत्यन्त आधुनिक विज्ञान की खोज को सशक्त बनाने को प्रेरित करता है। लेकिन यह दुर्भाग्य ही कहा जावे कि अब भारतीय विज्ञान कांग्रेस की परंपरा ही नष्ट होती दिखाई दे रही है।
विकसित भारत के तेजी से विकास के लिए वैदिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के प्राचीन गौरव को पुनर्जीवित करने के लिए महर्षि विश्वामित्र, महर्षि भारद्वाज और महर्षि संदीपनी आश्रम गुरुकुल विश्वविद्यालयों की पुनर्स्थापना करने की आवश्यकता है:
अब जबकि विकसित भारत@2047 की दृष्टि वास्तविकता में तेजी से भारत के विकास का आधार बन गई है, ऐसे समय में हमारे प्राचीन भारत के वैदिक विज्ञान एवं प्रकृति आधारित, प्रकृति सम्यक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को पुनर्जीवित करने का सही समय है। अयोध्या के निकट तपोवन में महर्षि विश्वामित्र आश्रम (विश्वविद्यालय), चित्रकूट में महर्षि भारद्वाज आश्रम (विश्वविद्यालय), उज्जैन में महर्षि संदीपनी आश्रम (विश्वविद्यालय) और गुरुग्राम में द्रोणाचार्य आश्रम (विश्वविद्यालय) जैसे शिक्षा और वैदिक विज्ञान के अत्याधुनिक केंद्र प्राचीन भारत के गौरव और प्रतिष्ठा को पुनर्जीवित करने के लिए पुनः विकसित किए जावे।
सही अर्थों में प्राचीन भारत को विश्व गुरु बनाने में और प्राचीन काल में सही मायने में वैश्विक मानवता के लिए ज्ञान और सक्षम बुद्धि का सबसे उज्ज्वल प्रकाश इन्हीं आश्रम विद्यालयों से समूचे विश्व में प्रसारित होता था।
नए भारत की सरकार को सलाह दी जाती है कि वह वैदिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के खोए हुए गौरव को पुनर्जीवित करने और विश्व समुदाय को पथप्रदर्शक विज्ञान और आने वाले वरविज्ञान एवं impossible को possible बना देने वाली प्रौद्योगिकियों के विकास एवं भारत द्वारा नेतृत्व करने के लिए सक्षम बनाने की दिशा में सार्थक पहल की जावे।
प्राचीन भारत के वर विज्ञान को पुनर्स्थापित करने के लिए तक्षशिला और नालंदा से आगे बढ़कर रामायण और महाभारत काल तक जाने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के इतिहासकारों को मार्ग दर्शित किया जावे।
दुनिया भर से विज्ञान के सर्वश्रेष्ठ ज्ञानवान एवं प्राचीन भारत के वैदिक विज्ञान में रुचि रखने वाले प्रबुद्ध वैज्ञानिकों को भारत में आकर विश्व समुदाय की भलाई के लिए कार्य करने के लिए आमंत्रित किया जावे ताकि वैदिक विज्ञान के अब तक छिपे हुए खजाने को खोजा जा सके और इसे नए विज्ञान में बदला जा सके, जिसमें मानवता के व्यापक सामूहिक लाभ के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए एक अंतर्निहित आध्यात्मिक शक्ति होगी जो सही अर्थों में लोका समस्ता सुखीनो भवन्तु की हमारी वैदिक अवधारणा को विश्व कल्याण के लिए विकसित भारत को समर्थ एवं शक्तिमान बनाने में सार्थक सिद्ध होगी।
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लेखक प्रोफेसर पीबी शर्मा भारतीय विज्ञान कांग्रेस के इंजीनियरिंग प्रभाग के पूर्व अध्यक्ष, उच्च शिक्षा एवं विकास की विश्व अकादमी के अध्यक्ष और डीटीयू के संस्थापक कुलपति हैं तथा वर्तमान में एमिटी यूनिवर्सिटी गुरुग्राम के कुलपति हैं। इस लेख में दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।