कविराज लल्लू सिंह हैरा का एतिहासिक सम्मान

लेखक: प्रोफेसर प्रीतम शर्मा

यह कथा लगभग 1961 की है। मैं विदिशा नगर में अपने मां पिता के साथ रहता था और नवमी में एक सरकारी स्कूल में पढ़ता था। नगर में उस समय के प्रतिष्ठित कवि श्री लल्लू सिंह जी हैरा हमारे नगर में रहते थे। बह छोटी छोटी कविताएं लिखते थे जो सटीक होती थी और जन जागरण में उपयोगी भी।

यह वह समय था जब समाज में सबसे बड़ी उपाधि कविराज होती थी। अपनी बात को चंद शब्दों में कविता के रूप मे कह देना ही विद्वता की पहचान थी।

श्री लल्लू सिंह हैरा जी साठ वर्ष के होने वाले थे परन्तु उनकी कविताओं का संग्रह कोई नहीं छप पाया था। नगर के सम्मानित बुद्धिजीवियों, जिनमे डॉ जमुना प्रसाद मुखरैया जी, श्री निरंजन वर्मा, डॉ विश्वबंधु शास्त्री एवं प्रबुद्ध नौजवान नगर पालिका अधिकारी श्री प्रभुदयाल तिवारी और मुझ जैसे विद्यार्थियों ने यह निर्णय लिया कि कविराज लल्लू सिंह जी हेरा का साथ वा वा जन्मदिन एक इनोवेटिव तरीके से मनाया जावे। जन्मदिन पर कविराज हैरा को फूलों के एक बढ़े हार से विदिशा नगर के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों एवं सामाज के गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में सम्मानित किया जाए और उसी समय उस फूलों के हार को इस प्रकार नीलाम किया जावे कि जो जितनी बोली बढ़ाए उतने रुपए ग्रन्थ को छपवाने के लिए भेट करेगा। अंतिम बोली 1101 रुपए की जो बोलेगा उसी के गले में यह अनमोल हार सम्मान के साथ डाल दिया जाएगा। और इकट्ठा की गई राशी माननीय कविराज लल्लू सिंह हैरा जी को अपनी कविताओं के ग्रन्थ को छपवाने के लिए भेंट कर दी जावेगी। यह आइडिया सबको पसंद आया।

नगर में कार्यक्रम की खबर ढोल और नगाड़ों द्वारा प्रसारित की गई।

निर्धारित तिथि पर सुबह नौ बजे प्रातः सभी लोग कविराज लल्लू सिंह हैरा जी के घर के पास एक पंडाल में एकत्रित हुए। सम्मान के साथ कविराज को जन्म दिन की शुभकामनाएं गणमान्य नागरिकों ने भेंट की । एक फूलों के बढ़े हार से कविराज को सम्मानित किया गया और इसके बाद उनकी सहमति से हार की नीलामी प्रारंभ हुए।

उपस्थित नागरिकों ने बड़े उत्साह से नीलामी में भाग लिया। श्री प्रभुदयाल जी तिवारी बोली बोल रहे थे। प्रारंभ में तो बोली तेजी से बढ़ी। जिसने जितनी बोली बढ़ाई उतने रुपए तिवारी जी के पास रखी थाली में भेंट स्वरूप डाल दिए।

तिवारी जी थोडी देर बाद हैरान हो गए कि बार बार बोलने के बाद भी फूलों के हार की बोली 360 या 361 रुपए पर जाकर अटक गई। तिवारी जी वार बार बोली दोहरा रहे थे परन्तु बोली आगे बढ़ने को तैयार नहीं। मैने डॉ जमना प्रसाद मुखरैया जी से पूछा अब क्या किया जावे। डॉ साहब बोले पंडाल में दूर बैठे सरदार जीता सिंह जी ने अबतक बोली नहीं बढ़ाई क्यों ना उनसे निवेदन किया जावे।

सरदार जीतसिंह विदिशा नगर के प्रतिष्ठित ठेकेदार थे और अपनी ईमानदारी और किए गए उत्कृष्ट कार्यों के लिए जाने जाते थे। बड़े बड़े भवनो को बनाने वाले ठेकेदार सरदार जीतासिंह स्वयं एक किराए के छोटे मकान में रहते थे। ऐसे नेक एवं ईमानदार ठेकेदार थे सरदार जीता सिंह जी।

हिम्मत कर मैं सरदार जीता सिंह जी के पास गया। वह बैठे बैठे पाठ कर रहे थे। मुझे पास आए देख बोले बताइए क्या करना है। मैने बताया कि डॉ मुखरैया जी चाहते है कि आप भी इस सम्मानित फूलों के हार की बोली लगाएं। मुझसे पूछा क्या बोली चल रही है। मैने उन्हें बताया कि 361 रुपए पर रुकी हुए है। वह उठे और डॉ मुखरैया जी की और देख मुस्काए और बोले 1101 रुपए। फिर क्या था तालियों की गढ़ गढ़ाहट बढ़ गई। कविराज लल्लू सिंह जी हैरा जी का सम्मानित फूलों का हार मैने, तिवारी जी , डॉ मुखरैया जी आदि ने बड़े सम्मान के साथ सरदार जीता सिंह जी के गले में डाल दिया। कविराज लल्लू सिंह हैरा एवं सरदार जीता सिंह की जय हो के नारे गूंजने लगे। सरदार जीता सिंह ने अपने गले से हर निकला और पूरे सम्मान के साथ कविराज हैरा जी के गले में पहना दिया। यह दृश्य अत्यन्त ही भावुक था। हम सब की आंखें गीली हो गई थीं।

इतने में देखा कि हीरालाल माली, जिसने यह सम्मानित हार बनाया था और जो बड़ी देर से यह सब दृश्य देख रहा था उसकि भी आंखें भर आई थी। उसने अपनी झोली में से एक और मेरीगोल्ड गेंदे का हार निकला जो बिल्कुल वैसा ही था जैसा कि पहला हार जिसकी नीलामी की गई थी। बोला श्रीमान, दानवीर जीत सिंह जी को यह हार हम सब उपस्थित लोगों की ओर से पहनाने की कृपा करें। धन्य हैं विदिशा वासी जहां सरदार जीता सिंह जैसे ऐसे समाज सेवी रहते है।

तिवारी जी थाली में आए दान के पैसे गिनने लगे पाया चला कि सरदार जीतासिंह जी ने पूरे 1101 रूपए थाली में अपनी जेब से निकलकर डाले थे। नियमानुसार उन्हें 361 रुपए वापिस किए तो यह कहने लगे कि इनका उपयोग आज के कार्यक्रम पर जो खर्च हुआ उसके लिए किया जाए। बोले मैं तो घर से संकल्प कर चला था कि इस पुण्य कार्य में मैं अपना पूरा पूरा सहयोग करूंगा।

हमारी मनसा पूर्ण हुए । 1101 रुपए में कविराज लल्लू सिंह हैरा जी का कविता संग्रह दिल्ली की एक प्रतिष्ठित प्रेस से प्रकाशित कराया गया।कविराज लल्लू सिंह जी हैरा को भेंट कर हमने अपना सम्मान एवं नागरिक कर्तव्य निभाया।

नगर विदिशा की बात करें तो विदिशा एक ऐतिहासिक नगर है। किवदंती को माने तो भगवान राम अपने परिवार के साथ स्वयं यहां पधारे थे । चरण तीर्थ के नाम प्रसिद्ध यह स्थल वेतवा नदी के बीच स्थित भीम कुंड के साथ आज भी भगवान राम के विदिशा पधारने की याद दिलाता है। उदयगिरी की पहाड़ियां महर्षि चहवन के प्रसिद्ध आयुर्वेदिक चहवन प्रास की याद दिलाती हैं। यहां आज भी आमला जयंती मनाई जाती है। उदयगिरी की प्राचीन गुफाएं और समीप में ही स्थित हैओलोड्रॉस स्तम्भ प्राचीन भारत में विदिशा के वैष्णव धर्म के केंद्र की प्रतिष्ठा को अंकित करता है। सम्राट अशोक की ससुराल के गौरव से प्रफुल्लित विदिशा नगर, सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा द्वारा देश एवं विदेश में भारत के संतान धर्म एवं बुद्ध धर्म के प्रसार के लिए इतिहास में गौरव से याद किया जाता है।

महाकवि कालिदास की जन्मस्थली विदिशा, सम्राट विक्रमादित्य के काल में एक समृद्ध एवं सात्त्विक नगरी के रूप में विकसित थी। स्वयं कालिदास जी ने अपने सुप्रसिद्ध मेघदूत में इसका वर्णन बहुत रोचक तरीके से किया है।

उच्च कोटि के स्टील एवं अति शुद्ध लोहे की तोपें एवं उच्च कोटि के साज सामान के निर्माण के साथ साथ कालांतर से विश्व भर में सर्वश्रेष्ठ गेहूं जिसे विदिशा सर्वती गेहूं के रूप में आज भी दुनिया भर में एक्सपोर्ट किया जाता है, के लिए यह नगर एवं इसके कृषक सम्मान के साथ मानव जाति की सेवा के लिए आज भी समर्पित हैं।

मुझे गर्व है कि इसी सुंदर एवं ऐतिहासिक नगरी में मुझे अपना बचपन बिताने, शिक्षा एवं दीक्षा लेने का सौभाग्य मिला।

सरदार जीता सिंह जी का एक कविराज के लिए दिल मै सम्मान और उनके कविता संग्रह छपवाने के लिए दिया गया योगदान आज भी हमें प्रेरणा देता है कि हम अपनी क्षमता के अनुरूप खुले हाथों से सामाजिक कार्यों के लिए अपना योगदान देवे।

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लेखक प्रोफेसर प्रीतम शर्मा एक सम्मानित शिक्षा शास्त्री है जो DTU एवं RGPV के संस्थापक कुलपति रहे है। भारतीय विश्वविद्यालय संघ के अध्यक्ष रहे है, शोध एवं नवाचार के जाने माने विशिष्ठ एक्सपर्ट है। पर्यावरण के प्रहरी है और सस्टेनेबिलिटी के प्रणेता है। वर्तमान में एमिटी यूनिवर्सिटी गुरुग्राम के कुलपति है। इस लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार है।