किसान आंदोलन और सियासी आरोप -प्रत्यारोप के बीच कांग्रेस नेता ने MSP को लेकर कही ये बातें

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (15 फरवरी 2024): किसान आंदोलन को लेकर अब देश में सियासत भी गरमा गई है। पक्ष -विपक्ष के बीच आरोप -प्रत्यारोप का दौड़ भी शुरू हो गया है। इसी कड़ी में कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने केंद्र की मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने MSP को लेकर भी कई बातें कही है।

सुप्रिया ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर ट्वीट करते हुए कहा कि कल शाम से – सरकार द्वारा एक भ्रामक और खतरनाक तर्क दिया जा रहा है और हमेशा की तरह मीडिया का एक बड़ा वर्ग इसे हवा दे रहा है। तर्क यह है कि MSP के लिए ₹11 लाख करोड़ की आवश्यकता होगी, जो कि वित्तीय रूप से अव्यवहारिक है! साथ ही उन्होंने MSP को लेकर कुछ बातें साझा की है।

 

सुप्रिया श्रीनेत ने MSP को लेकर कही ये बातें

• सर्वप्रथम, सरकार कृषि उपज का केवल एक अंश ही खरीदती है जो उसके बफर स्टॉक के लिए होता है। MSP यह सुनिश्चित करता है कि अधिकांश खरीद बाजार के उचित मूल्य पर हो।

• भारत का कृषि बाजार बेहद खंडित और असममित (asymmetrical) है और इस तरह के अपूर्ण (imperfect) बाजार में, मूल्य निर्धारण को स्थिर करने के लिए MSP जैसे हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

• यह मूल्य हस्तक्षेप बाज़ार सुधार के लिए और कीमतों को स्थिर करने के लिए आवश्यक है। MSP न्यूनतम मूल्य है और इसकी गारंटी ही बाजार मूल्य को न्यूनतम मूल्य से ज़्यादा पर सुनिश्चित करती है।

• MSP यह सुनिश्चित करता है कि कीमत में गिरावट के कारण कोई भी अनाज भारी नुक़सान पर न बेचा जाए। यह किसानों को मूल्य में ज़बरदस्त आयी गिरावट से बचाता है।

• इसका मतलब है कि किसानों को बड़े स्टॉकिस्टों को कम कीमत पर बेचने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा, जो किसानों से कम क़ीमत पर ख़रीद कर, उपज की जमाखोरी करते हैं और कीमतें बढ़ने पर इसे बाज़ार में बेच कर बड़ा मुनाफ़ा कमाते हैं।

• असल में मोदी सरकार को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि अनुचित कीमतों की वजह से किसानों पर कर्ज का बोझ बढ़ता है और बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या करते हैं।

• बाज़ार में प्रभावी ढंग से हस्तक्षेप करके ना सिर्फ़ मूल्य स्थिर बल्कि मजदूरी के दाम को भी बेहतर किया जा सकता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण मनरेगा है।

• 2005 से 2011 के बीच मनरेगा की कुल धनराशि में साल दर साल गिरावट आई क्योंकि श्रमिकों के लिए ग्रामीण मजदूरी दर मनरेगा के कारण ऊपर बढ़ी। जिसके परिणामस्वरूप श्रमिकों को ज़्यादा आय वाले अन्य तरह के काम करने का मौक़ा मिला।पर यह मनरेगा द्वारा न्यूनतम मज़दूरी की दर तय होने से ही संभव हुआ।।

 

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