नई दिल्ली. नोटबंदी और अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के ही एक वरिष्ठ नेता ने सरकार और वित्त मंत्री को आइना दिखा दिया है. अर्थव्यवस्था के हालात लेकर विपक्ष सरकार पर पहले से हमलावर था लेकिन अब यशवंत सिन्हा जैसे नेता के वार ने सरकार को परेशान कर डाला है. यशवंत सिन्हा एनडीए सरकार में वित्त मंत्री भी रह चुके हैं. यशवंत सिन्हा ने लिखा कि ‘निजी निवेश में आज जितनी गिरावट है उतनी दो दशक में नहीं हुई, औद्योगिक उत्पादन का बुरा हाल है, कृषि क्षेत्र परेशानी में है, बड़ी संख्या में रोजगार देने वाला निर्माण उद्योग भी इस वक्त संकट में है.’
सिन्हा ने कहा कि नोटबंदी ने सिर्फ आग में घी डालने का काम किया है. यशवंत सिन्हा ने अरुण जेटली पर हमला बोलते हुए अपने लेख में कहा है कि ‘प्रधानमंत्री ये दावा करते हैं कि उन्होंने काफी करीब से गरीबी देखी है. उनके वित्त मंत्री इस बात के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं कि देश का हर नागरिक भी गरीबी को करीब से देखे.’ यशवंत सिन्हा ने यह कहकर माहौल और गरमा दिया है कि बीजेपी के भीतर भी बहुत सारे नेता उन्हीं की तरह सोच रहे हैं, लेकिन, डर से जुबान नहीं खोल पा रहे.
यशवंत सिन्हा का बयान क्या सचमुच सरकार के लिए आंखे खोल देने वाला है. विपक्षी दलों से लेकर अपनों के इस हमले से एनडीए को क्या सच में नुकसान हो सकता है. हम उन 5 बिंदुओं पर बात करेंगे जिनपर या तो सरकार का रुख साफ नहीं है या बीते कुछ महीनों से इन्हीं बिंदुओं पर सरकार को निगेटिव मार्किंग मिली है. 2019 में एनडीए सरकार के लिए अगर खतरे की घंटी बजी तो ये कारक अहम होंगे.
जीएसटी का जख्मः जीएसटी के फैसले ने अर्थव्यवस्था को राहत दी या नहीं ये तो दीर्घकालीन विषय है लेकिन वर्तमान समय में देश के व्यापारियों को सरकार के इस कदम ने औंधे मुंह गिरा दिया है. छोटे बड़े सभी व्यापारी इस फैसले से दुखी हैं. जीएसटी के लिए अप्लाई करना भी बेहद जटिल विषय है. कई व्यापारियों का पूरा पूरा दिन सीए के पास ही बीत रहा है. सीए फीस बढ़ाकर अधिक पैसे वसूल रहे हैं. व्यापार चौपट हो रहा है. एक हिंदी टीवी चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दिवाली से पहले मुंबई के कालबादेवी इलाके में स्थित स्वदेशी बाजार में लोगों की भीड़ लगी रहती है. 100 साल से भी पुराने इस बाजार में से पूरे देश भर में कपड़े निर्यात की जाती है लेकिन कपड़े पर 5 फीसदी जीएसटी लगने के बाद से बाजार फीका पड़ता दिख रहा है.
दुकानदारों ने बातचीत करते हुए बताया कि उन्होंने सोचा था कि जीएसटी के लागू होने के बाद चीज़ें सस्ती हो जाएंगी और व्यवसाय करना और भी सरल हो जाएगा लेकिन कपड़े पर पांच फीसदी जीएसटी लगने के बाद से कपड़े की मांग लगभग आधी हो गई है. यह हाल केवल स्वदेशी बाजार का ही नहीं है. मुंबई से सटे भिवंडी के पॉवरलूम का भी यही हाल है. जीएसटी के लागू होने के बाद से कई लोगों ने अपनी हैंडलूम बंद कर दिए हैं जिसका असर मजदूरों पर पड़ रहा है.
नोटबंदी की मारः यशवंत सिन्हा ने कहा कि इकोनॉमी में तो पहले से ही गिरावट आ रही थी, नोटबंदी ने तो सिर्फ आग में घी का काम किया. पूर्व पीएम और अर्थशास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी हाल में चेताया कि देश की जीडीपी में तेज गिरावट होगी. सिंह ने कहा कि जीएसटी और नोटबंदी का जल्दबाजी में क्रियान्वन आर्थिक प्रगति पर नकरात्मक असर जरूर डालेगा. चालू वित्त वर्ष की जून में खत्म हुई तिमाही के दौरान देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की गई और यह वित्त वर्ष 2016-17 की चौथी तिमाही के 6.1 फीसदी से घटकर 5.7 फीसदी पर आ गई. पिछले साल इसी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 7.9 फीसदी थी.
पूर्व प्रधानमंत्री ने पिछले साल नोटबंदी के बाद संसद में भविष्यवाणी की थी कि जीडीपी में दो प्रतिशत की गिरावट होगी. उन्होंने कहा था कि नोटबंदी एक ‘ऐतिहासिक आपदा, संगठित और कानूनी लूट’ है.
बैंकों का क्रेडिट रेट हुआ निगेटिवः नोटबंदी के बाद बैंकों का क्रेडिट रेट 60 वर्षों में सब से कम पर ही नहीं, बल्कि जुलाई में निगेटिव में चला गया था. ऐसा कहा गया कि उद्योग निवेश नहीं कर रहा है, इसलिए क्रेडिट ऑफ टेक कम हो गया. वजह यह है कि इंडस्ट्री में डिमांड कम है. कैपेसिटी यूटीलाइजेशन पर जो आरबीआई ने आंकड़ें पेश किए हैं, उसके अनुसार कैपेसिटी यूटीलाइजेशन 70 प्रतिशत पर पहुंच चुका है. अब इतनी नीचे स्तर पर निवेश नहीं होता है, तो क्रेडिट की डिमांड कम हो जाती है. इन सभी चीजों से संगठित क्षेत्र के साथ असंगठित क्षेत्रों में भी असर पड़ा है
मेक इन इंडिया को झटकाः जीएसटी और नोटबंदी ने मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को भी तगड़ा झटका दिया. विनिर्माण क्षेत्र की कई कंपनियां दिवालिया होने का कगार पर आ गई. ब्लूमबर्ग क्विंट के मुताबिक, बुनियादी ढांचा क्षेत्र में कंपनियों का एनपीए मार्च 2017 में 7.7 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया. अगस्त के अंत में एक अध्ययन में यह बात सामने आयी कि 2017 को समाप्त तिमाही में 2,726 गैर-सरकारी और गैर-वित्तीय कंपनियों का शुद्ध लाभ 6.9 प्रतिशत पर आ गया जबकि 25 करोड़ रुपए से कम का कारोबार करने वाली छोटी कंपनियों की बिक्री में 57.6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.
सरकार में उलझनः अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार ने एक हिंदी वेबसाइट से बातचीत में कहा कि अरुण जेटली ने नोटबंदी के बचाव में कहा था कि इसे सिर्फ एक योजना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि इसे जीएसटी और डिजिटलाइजेशन से जोड़ कर देखा जाना चाहिए. डिजिटलाइजेशन की जहां तक बात है, अगर आप लोगों को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लाना चाहते हैं तो इसे बिना नोटबंदी के भी किया जा सकता था. जीएसटी के लिए भी नोटबंदी की ज़रूरत नहीं थी. इसलिए सरकार इन दोनों को जोड़ कर न देखे.
जब इन्होंने देखा कि बहुत भारी संख्या में नोट वापस आ रहे हैं, तो उन्होंने तुरंत कैशलेस और डिजिटलाइजेशन की बात करनी शुरू कर दी. प्रधानमंत्री ने भी यह सभी बात 27 नवंबर वाले कार्यक्रम में बोलना शुरू किया, जबकि 8 नवंबर वाले भाषण में उन्होंने इस तरह का कोई जिक्र नहीं किया था. नोटबंदी के लिए इनको बड़ी तैयारी करनी चाहिए थी. हमने देखा किस प्रकार लोगों को दिक्कत आई और कई लोग परेशान हुए. अगर इन्होंने इसकी तैयारी की होती तो इस तरह नहीं होता जैसे उस समय हुआ था.