मेरा देश है अनुपम भारत : प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत

प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत – ( पूर्व) कुलपति, एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर, ( पूर्व) कुलपति, कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल, ( पूर्व) अध्यक्ष, उतर प्रदेश राज्य उच्च शिक्षा परिषद, वरिष्ठ वैज्ञानिक ( भौतिकी)

वेदों में भारत -भूमि, भारत देश और भरतखंडे शब्दो का प्रयोग देवभूमि भारत देश के लिए अनेक ऋचाओं में हुवा है। महाभारत में भी महान शब्द के साथ भारत शब्द का प्रयोग किया गया है। गीता तथा महाभारत में अनेक स्थानों पर अर्जुन और अन्य पांडवों के लिए भारत संबोधन का प्रयोग किया गया है। अन्य अनेक प्राचीन ग्रंथो में तीन ओर से समुद्रों से और एक और से हिमालय से घिरे समृद्धिशाली विशाल भूभाग को भारत देश के रूप में परिभाषित किया गया है। अखंड भारत की ये ही सीमाएं थी। इस महान देश में जन्म लेने वालों को बहुत भाग्यशाली माना जाता था। इस देश की सनातन संस्कृति सारस्वत है जो सदा से है और सदा तक रहेगी। विदेशी आक्रांताओं तथा अंग्रेजो ने इस संस्कृति तथा भारत के नाम और गौरवशाली इतिहास को प्रदूषित करने और नष्ट करने के अनेक षड्यंत्र किए और असफल प्रयास किए। उसी षड्यंत्र के एक कुत्सित प्रयास के रूप में हमारे महान देश के नाम भारत को बदल कर इंडिया कर दिया था जिस से भारत की प्राचीन विज्ञान संगत परंपराओं और अति उज्ज्वल गौरवशाली इतिहास को भारत के जनमानस से हटाया जा सके।

अनेक देश भक्तो के वन्देमातरम और भारत माता की जय घोष के साथ प्राणों के बलिदान स्वरूप मिली स्वतंत्रता को भारत को खंडित करके तत्कालीन तथाकथित स्वघोषित सेकुलर सतालोलुप राजनेताओं ने कलंकित कर दिया था और खंडित भारत को इंडिया और स्वयं को इंडियन घोषित कर दिया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के गुलामी के प्रतीक इस आयातित नाम को तुरंत हटा कर उसके महान सांस्कृतिक एवम ऐतिहासिक नाम भारत को ही सभी उल्लेखों में रखना चाहिए था। पर तत्कालीन सताधारी नेताओं को ना महान भारतीय परंपराओं का ज्ञान था और न ही इस देश के नाम भारत के गौरव का। इन्ही नेताओं के दबाव में भारत के संविधान को अंग्रेजी में कांस्टीट्यूशन ऑफ भारत ना लिख कर कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया लिखा गया। जब कि हमारे राष्ट्र गान में भारत भाग्य विधाता शब्द का प्रयोग होता है।
आजादी के बाद के प्रारंभिक वर्षों में ( आदरणीय सरदार पटेल के ग्रह मंत्री रहते) स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की प्रभात फेरियों में बच्चे गाते थे:
झंडा ऊंचा रहे हमारा
विश्विजयी तिरंगा प्यारा।
और बोलते थे:
भारत माता की जय ।
और इस गीत को भी सामूहिक रूप से गया जाता था:
भारत स्वदेश तेरी मैं आरती उतारूं।
कुल देवता तुझे ही अपना सदा विचारूं ।।

आज यह देख कर बहुत पीड़ा होती है कि कई मूढमती राजनेता भारत माता की जय ना बोलना चाहते है और न ही सुनना चाहते हैं। उन्हे स्वयं को इंडियन और अपने भानमती के कुनबे को इंडिया कहने में बड़ा गर्व होता है। इस ऊबड़ खाबड़ चौकड़ी का नामकरण I.N.D.I. A एक षड्यंत्र के तहत रखा गया ताकि इसे इंडिया घोषित करके देश के नाम को बदनाम किया जा सके । उसी कुत्सित मानसिकता के वशीभूत ये सारे मतिभ्रम राजनेता इस बात से बहुत पीड़ित, कुंठित और अक्रोशित हो रहे हैं कि भारत की महामहिम राष्ट्रपति ने निमंत्रण पत्र में स्वयं को प्रेसिडेंट ऑफ भारत क्यों लिखा। भारत देश को भारत लिखने पर इनके आक्रोशित अनर्गल बयान देशद्रोह के प्रतीक हैं जिसके लिए इन को दंडित किया जाना चाहिए। इन बघिरों के कान खोलने के लिए आओ हम सब आई स्वर में बोले
भारत माता की जय।