25-26 जून की वो काली स्याह रात, जब भारत में आपातकाल की घोषणा हुई | इनसाइड स्टोरी

रिपोर्ट: रंजन अभिषेक, संवाददाता, दिल्ली

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (30 जुलाई 2023): 25 जून 1975, भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में इस दिन को सबसे दुर्भाग्यपूर्ण और अशुभ दिन की संज्ञा दी जाती है। साल 1975 में जब देश के लोगों ने रेडियो पर यह ऐलान सुना कि भारत में आपातकाल लागू कर दी गई है। आज 48 साल बाद भले ही हिंदुस्तान ने पूरे वैश्विक पटल पर एक मजबूत और गरिमामयी लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में प्रशस्त हो लेकिन आज भी अतीत में 25 जून का दिन लोकतंत्र के एक दुर्भाग्यपूर्ण और काले दिन के रूप में दर्ज है।

21 महीने का आपातकाल

25 जून 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 के लगभग 21 महीने तक देश में आपातकाल लागू रहा। तत्कालीन राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के सिफारिश पर अनुच्छेद 352 के अधीन देश में आपातकाल लागू होने की घोषणा की थी। हिंदुस्तान के इतिहास में पहला आपातकाल लागू किया गया था।

सियासतदानों की गिरफ्तारी

गौरतलब है कि आपातकाल की घोषणा के पश्चात सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे। अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगो के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया था। जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नाडीस आदि तत्कालीन सभी बड़े सियासतदानों को जेल में डाल दिया गया था।

प्रेस पर अंकुश

आपातकाल के उस स्याह और दमनकारी दौर में प्रशासन और पुलिस के द्वारा भारी उत्पीड़न की कहानियां सामने आई थी। प्रेस की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगा दी गई थी। सभी अखबारों में सेंसर अधिकारी बैठा दिया गया था, उसकी अनुमति के बाद ही कोई समाचार छप सकता था। सरकार विरोधी समाचार छापने पर गिरफ्तारी हो सकती थी।

आपातकाल की पृष्ठभूमि

लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद देश के सत्ता की कमान इंदिरा गांधी के हाथों में थी। कुछ कारणों से न्यायपालिका से उनका टकराव शुरू हो गया। यही टकराव यही मतभेद आपातकाल की पृष्ठभूमि तैयार की। एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस सुब्बाराव के नेतृत्व वाली एक खंडपीठ ने सात बनाम छः जजों के बहुमत से सुनाए गए फैसले में यह कहा था कि संसद में दो तिहाई बहुमत के साथ भी किसी संविधान संशोधन के जरिए मूलभूत अधिकारों के प्रावधान को ना तो खत्म किया जा सकता है और ना ही इसे सीमित किया जा सकता है।

इसका प्रमुख कारण यह था कि साल 1971 में इंदिरा गांधी ने अपने पार्टी को अभूतपूर्व जीत दिलाई थी और खुद भी बड़े मार्जिन से जीती थी। और उनके जीत पर सवाल उठाते हुए उनके प्रतिद्वंदी राजनारायण ने 1971 में अदालत का दरवाजा खटखटाया था। मामले की सुनवाई हुई और इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया गया और इसी फैसले से नाराज होकर इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने का फैसला किया।

बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री की भूमिका

बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री एमएस राय ने जनवरी 1975 में ही इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी। और फिर तत्कालीन राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था।।