पाकिस्तान से निर्वासित लोगों का मोहल्ला कैसे बना स्टूडेंट्स का मक्का | मुखर्जी नगर की कहानी

टेन न्यूज नेटवर्क

विशेष रिपोर्ट: रंजन अभिषेक, संवाददाता, दिल्ली

नई दिल्ली (05 जुलाई 2023): दिल्ली का मुखर्जी नगर इलाका, आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है। भारत के दूर -दराज ग्रामीण इलाकों में भी मुखर्जी नगर का नाम लिया जाए तो सहसा छात्रों के चेहरे पर खुशी आ जाती है। मुखर्जी नगर आज छात्रों और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों का मक्का माना जाता है। इस इलाके में आप जहां भी देखेंगे आपको छात्र ही मिलेंगे। इस इलाके की पूरी अर्थव्यवस्था छात्रों पर टिकी हुई है। लेकिन, क्या आप जानते हैं यह इलाका कभी खुला -खुला रिहायशी इलाका हुआ करता था, तो ये कैसे बन गया इतना बड़ा कोचिंग संस्थानों का हब?

क्या है मुखर्जी नगर का इतिहास

भारत -पाकिस्तान बंटवारे के समय पाकिस्तान से निर्वासित हुए लोग यहां आकर बसने लगे। उन्हें 175 यार्ड का प्लॉट मिला था, फिर साल 1975 के आसपास वो लोग यहां से सस्ते में अपनी जमीन बेचकर जाने लगे। तभी इस इलाके पर बिल्डरों की नजर पड़ी और वे सस्ते दामों पर जमीन खरीदते और उसपर बिल्डिंग बनाकर चार -पांच करोड़ रुपया में बेचने लगे। यह कारोबार लंबे समय तक चला, मुखर्जी नगर खुला इलाका था। बत्रा सिनेमा के आसपास काफी खाली-खाली था, लोग यहां आकर बौद्धिक बहस करते और बैठते थे। धीरे-धीरे ये सिलसिला जारी रहा और आज मुखर्जी नगर बन गया कोचिंग संस्थानों का हब।

कैसे बना कोचिंग का हब

रिहायशी और खुला इलाका होने की वजह से साल 1996-97 के आसपास यहां छोटे- छोटे कोचिंग संस्थान खुले। धीरे-धीरे छात्रों का आगमन हुआ। साल 2000 में यहां चाणक्य आईएएस ने अपना सेंटर खोला। जिसके बाद इलाके में छात्रों का आवागमन बढ़ा, और फिर एक से एक संस्थान यहां खुलते चले गए।

दिल्ली विश्वविद्यालय की भूमिका

मुखर्जी नगर की एक और खास बात यह है कि यह इलाका दिल्ली विश्वविद्यालय से सटा हुआ है। पहले सिविल सर्विसेज की परीक्षा का जो पैटर्न था, उसमें अकादमी का सपोर्ट था, दो वैकल्पिक पेपर हुआ करते थे और साथ ही मानविकी विषयों और साहित्य का विशेष महत्व होता था। इस कारण से अच्छे महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों से स्नातक करने वाले छात्र आसानी से यूपीएससी की परीक्षा में सफलता हासिल करते थे। दिल्ली विश्वविद्यालय से सटे होने के कारण भी यहां छात्रों की चहलकदमी तेज हुई। लेकिन समय के साथ यूपीएससी के पाठ्यक्रम में बदलाव हुए और मानविकी विषयों एवं स्नातक पृष्ठभूमि के छात्र -छात्राओं के अपेक्षा जो लोग डॉक्टर, इंजिनियर आदि की पढ़ाई करते थे उनका चयन अधिक होने लगा।

मुखर्जी नगर क्यों बना कोचिंग संस्थानो का पसंदीदा गंतव्य

दरअसल पहले नियम सख्त हुआ करते थे, आप प्राइवेट बिल्डिंग में कोचिंग संस्थान नहीं चला सकते थे। ऐसे में मुखर्जी नगर खुला इलाका था और कमर्शियल प्लेस होने के कारण यहां संस्थानों को किसी प्रकार की रोक टोक नहीं थी। इसीलिए यहां धडल्ले से कोचिंग संस्थान आते गए, दूसरी बात यह कि चुकी ये इलाका दिल्ली विश्वविद्यालय से सटा था तो यहां छात्रों का भी जमावड़ा बढ़ता चला गया।

साल 2006 के बाद आई कोचिंग की बाढ

साल 2005-06 के आसपास इस इलाके में एसएसी की तैयारी कराने वाले संस्थानों का आगमन हुआ। उस समय पैरामाउंट लीड कर रहा था और फिर धीरे धीरे कोचिंग संस्थानों की बाढ़ आ गई। एसएससी, बैंकिंग, रेलवे सभी परीक्षाओं के छात्र यहां मौजूद हैं। समय के साथ कई बदलाव भी हुए और अब 2 टन की AC की जगह 32 टन की AC ने ले ली है।

रहने और खाने की व्यवस्था

अब छात्रों की तादाद इतनी बढ़ गई है कि मुखर्जी नगर के आलावा आसपास के इलाकों में भी भारी संख्या में छात्र रह रहे हैं। आउट लेन, विजय नगर, इंदिरा विहार, परमानंद, नेहरू विहार, वजीरपुर गांव, गांधी विहार, संत नगर, निरंकारी और बुराड़ी में भी भारी संख्या में छात्र रहते हैं। छात्रों के रहने के लिए किराए का मकान और पीजी की सुविधा उपलब्ध है वहीं खाने के लिए कई सारे मेस हैं।

एक छोटा हिंदुस्तान है मुखर्जी नगर

IAS -PCS, SSC, रेलवे, बैंकिंग की तैयारी करने के लिए देश के अलग अलग राज्यों, जनपदों और गांव कस्बों से छात्र यहां आते हैं। भारत के दूर दराज इलाकों से युवाओं के आने के कारण लोग इसे छोटा हिंदुस्तान कहते हैं । क्योंकि मुखर्जी नगर का स्वरूप कुछ ऐसा ही जहां सभी जाति, धर्म, मत, संप्रदाय, क्षेत्र, भाषा के छात्र आपको मिल जाएंगे। इन छात्रों की पृष्ठभूमि भले ही अलग हो लेकिन इन सबों का लक्ष्य एक होता है सरकारी सेवाओं में जाना और समाज के लिए, देश के लिए कुछ करना।

स्टूडेंट्स का मक्का कहा जानेवाला मुखर्जीनगर की कहानी पर आधारित यह आलेख टेन न्यूज की टीम संवाददाता रंजन अभिषेक ने विशेष रिपोर्ट के रूप में प्रस्तुत किया है। आपको पूरी रिपोर्ट कैसी लगी प्रतिक्रिया अवश्य साझा करें।।