नई दिल्ली| सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह जीवन एवं स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है. सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने एक मत से यह फैसला दिया. शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर आधार योजना को चुनौती दी गई थी और कहा गया था कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है.
निजता के अधिकार से जुड़ा इतिहास
निजता के अधिकार का मुद्दा काफी गम्भीर है. आजादी से पहले भी निजता के अधिकारों की वकालत जोरदार ढंग से होती रही है और सरकार बिना किसी ठोस कारण और कानूनी अनुमति के उसे भेद नहीं सकती. 1925 में महात्मा गांधी की सदस्यता वाली समिति ने कामनवेल्थ ऑफ इण्डिया बिल को बनाते समय इसी बात का उल्लेख किया था. मार्च 1947 में भी बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने निजता के अधिकार का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि लोगों को अपनी निजता का अधिकार है.
बाबा साहेब ने इस अधिकार के उल्लंघन को रोकने के लिए कई मापदण्ड तय करने की वकालत की थी, मगर उनका यह भी कहना था कि अगर किसी कारणवश उसे भेदना सरकार के लिए जरूरी हो तो सब कुछ न्यायालय की कड़ी देखरेख में होना चाहिए. 1895 में लाए गए भारतीय संविधान बिल में भी निजता के अधिकार की वकालत सशक्त तरीके से की गई थी. निजता के अधिकार का पूरा मामला आधार कार्ड के खिलाफ दायर याचिका की वजह से सामने आया क्योंकि लोगों को लगता है कि यह पूरी प्रक्रिया निजता के अधिकारों का अतिक्रमण है.
क्यों लगा सरकार को झटका
सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार के लिए तगड़ा झटका है. केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि निजता मौलिक अधिकार नहीं है. अब इस फैसले का सीधा असर आधार कार्ड और दूसरी सरकारी योजनाओं के अमल पर होगा. लोगों की निजता से जुड़े डेटा पर कानून बनाते वक्त तर्कपूर्ण रोक के मुद्दे पर विचार करना होगा. सरकारी नीतियों पर अब नए सिरे से समीक्षा करनी होगी. यानी आपके निजी डेटा को लिया तो जा सकता है, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता.
हालांकि, आधार की किस्मत इस फैसले से नहीं तय होगी. आधार पर अलग से सुनवाई होगी. बेंच को सिर्फ संविधान के तहत राइट टू प्राइवेसी की प्रकृति और दर्जा तय करना था. 5 जजों की बेंच अब आधार मामले में ये देखेगी कि लोगों से लिया गया डेटा प्रिवेसी के दायरे में है या नहीं. अब सरकार के हर कानून को टेस्ट किया जाएगा कि वो तर्कपूर्ण रोक के दायरे में है या नहीं. कुछ जानकारों का मानना है कि इस अधिकार के तहत सरकारी योजनाओं को अब चुनौती दी जा सकती है.