नई दिल्ली. निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के साथ ही आधार पर इसके पड़ने वाले असर की चर्चा शुरू हो गई है. भारतीय संविधान सभी नागरिकों के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से कुछ बुनियादी अधिकार देता है. इन मौलिक अधिकारों की 6 व्यापक श्रेणियों के रूप में संविधान में गारंटी दी जाती है जो न्यायोचित और न्यायालय में वाद योग्य हैं. हालांकि इन अधिकारों की भी कुछ सीमाएं होती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार पर फैसला अनुच्छेद 21 के तहत दिया गया है. अनुच्छेद 21 में प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का सरंक्षण है जिसके तहत किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रकिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.
आधार पर क्या होगा असर?
वरिष्ठ वकील अशोक अरोड़ा ने उदाहरण देकर बताया कि मौलिक अधिकार हमेशा उचित प्रतिबंधों के साथ होता है. अगर किसी पुरुष का किसी महिला से अफेयर है और उस पुरुष की पत्नी का मर्डर हो जाता है तो पति और उसकी प्रेमिका के शारीरिक संबंधों की भी जांच होगी, भले ही वो निजता के अधिकार के दायरे में आए. हां, ये पूछताछ कोई भी आते जाते नहीं कर सकता सिर्फ जांच अधिकारी ही कर सकता है.
आधार पर कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. ऐडवोकेट अरोड़ा ने कहा कि आधार के बायोमेट्रिक सिस्टम की मदद से सरकार 20 करोड़ लोगों को भोजन देने की योजना चलाती है तो ये उन 20 करोड़ लोगों के अधिकार से जुड़ा भी है. इसलिए सोशल वेलफेयर स्कीम के लिए अगर बायोमेट्रिक सिस्टम की मदद सरकार लेती है तो उसपर कोई असर नहीं पड़ेगा. हालांकि निजी चीजों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकेगा.
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट के फैसले के बाद कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आधार पर किसी तरह की टिप्पणी नहीं की है. कोर्ट ने कहा है कि राइट टू प्रीवेसी मौलिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने आधार के बायोमेट्रिक पर कोई टिप्पणी नहीं की है. हालांकि प्रशांत भूषण ने इसे सरकार के लिए झटका बताया.