शारीरिक चोट अलग-अलग तरह की हो सकती है। कुछ चोट बाहरी वस्तुओं से लगती हैं, जो शरीर से जोर से टकराती हैं, और अत्यधिक तेज दर्द उत्पन्न करती हैं। दूसरी तरह की चोट में कोई वस्तु शरीर में गहराई तक घुस जाती है और ऐसा घाव कर देती है, जिसके भरने में लंबा समय लगता है। स्ट्रोक जैसे अनुभवों में भी शरीर गहरी चोट की अवस्था में आ जाता है, और आघात का असर बाद में भी काफी लंबे समय तक महसूस होता है।
डॉ फैसल बारी, सलाहकार – आपातकालीन चिकित्सा, मणिपाल अस्पताल, गाजियाबाद बताते हैं, “बीमारियों/असर के अलावा ट्रॉमा की वजह से गंभीर साईड इफेक्ट भी हुआ करते हैं। इनके असर बार-बार और रुक-रुक कर महसूस होते हैं, जो काफी लंबे समय तक चलते हैं। ट्रॉमा के पीड़ितों को अक्सर अत्यधिक डर, पेट में दर्द, सरदर्द, चिंता, घबराहट आदि महसूस हुआ करते हैं। इन कारणों से ट्रॉमा के मरीजों की देखभाल करना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।“
इमरजेंसी ट्रॉमा की स्थिति में डॉक्टर मरीज की हालत स्थिर बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय करते हैंः
1. सबसे पहले घाव से निकल रहे खून को रोकने के लिए टाँके और बैंडेज लगाए जाते हैं। यदि वस्तु घाव से शरीर के अंदर चली गई है, तो उसे सावधानीपूर्वक बाहर निकाला जाता है, और फिर उस हिस्से का इलाज किया जाता है।
2. मरीज को गर्म कंबल, और पानी दिए जाते हैं, ताकि उसे सुरक्षित महसूस हो। ऐसे मरीजों पर विशेष ध्यान दिया जाता है क्योंकि वो लंबे समय तक सदमे में हो सकते हैं।
3. डॉक्टर मरीज की बड़ी चोटों का ध्यान से परीक्षण करके उसके आधार पर फर्स्ट एड (प्राथमिक चिकित्सा) प्रदान करते हैं। यदि चोट रीढ़ की हड्डी में लगी है, तो मरीज की स्थिति के आधार पर उन्हें सवाईकल कॉलर दिया जाता है, अन्यथा उनके पूरे शरीर में लकवा मारने का जोखिम हो सकता है।
दुर्घटना के मामले में मरीज को डॉक्टर तक पहुँचने में कुछ समय लग सकता है। इसलिए जो व्यक्ति दुर्घटनास्थल पर सबसे पहले पहुँचता है, उसे कुछ क्रिटिकल केयर के उपाय करने जरूरी होते हैं। उस स्थान से भीड़ हटाकर, यदि उन्हें जानकारी है, तो गंभीर चोटों का इलाज करके और मेडिकल सहायता आने तक मरीज के साथ बने रहकर वो मरीज की मदद कर सकते हैं।