टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (03/03/2023): इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ फाइनेंस के प्रोफेसर डॉ. अमन अग्रवाल और प्रोफेसर अंकुर शर्मा ने ‘अमृतकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था के मुद्दे और चुनौतियों’ पर टेन न्यूज़ नेटवर्क से खास बातचीत की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश।
*अर्न्स्ट एण्ड यंग ने एक अपनी रिपोर्ट रिलीज की थी, जिसका नाम इंडिया एट 75 एंड इंडिया एट 100 रखा था। इंडिया एट 100 में इन्होंने बोला था कि 25 साल बाद ये देश एक 26 ट्रिलियन की इकोनॉमी हो जाएगी। आज हम करीब साढे 3 ट्रिलियन की इकोनॉमी है और हम एक डेवलप्ड इक्नॉमी के तौर पर आ जाएंगे इस विश्व में। आजकल डेवलप्ड और अंदर डेवलप्ड इकोनॉमी ज्यादातर यूज नहीं होता है। यही एक गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट थी जिसमें उन्होंने यह बोला था कि शायद हम 2050 तक जो हमारी पर कैपिटा इनकम है वह करीब $12000 हो जाएगी और इंडियन इकोनॉमी 18 ट्रिलियन की हो जाएगी। सीआईआई ने भी एक एस्टीमेट दिया है जिसमें उन्होंने बोला है कि 2047 तक इंडियन इकोनॉमी 13 ट्रिलियन डॉलर को पार कर जाएगी। पीडब्ल्यूसी ने भी बोला है कि हमारी जो इकोनॉमी है उसमें पर कैपिटा इनकम करीब $26000 हो जाएगी। इन रिपोर्ट्स को देखने के बाद एक चीज़ समझ आता है कि आने वाले समय जो है वो बहुत एक्साइटिंग है। आने वाले वक्त को हम इकोनॉमी आउटलुक से कैसे देख सकते हैं? जो स्टूडेंट्स अपने करियर को शुरू कर रहे हैं उनका क्या रोल रहेगा? ऐसी कौन सी चीजें हैं जो हमें इस तेजी से इस इकोनॉमी को आगे ले जाएंगी? आप आने वाले समय को आज के परिपेक्ष में कैसे देखते हैं? आज हमारी इकोनॉमी की क्या कंडीशन है? और आपके अनुमान से हमारी कमी किस डायरेक्शन में जा रही है? इसके जवाब में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ फाइनेंस के प्रोफेसर डॉ. अमन अग्रवाल ने कहा कि यह कोई अचंभा जनक आंकड़ा नहीं है। जो पहला माइल होता है वह हमेशा डिफिकल्ट माना जाता है चाहे वह किसी भी मामले में हो। पहला ग्रोथ कॉम्पोनेंट बहुत स्लो चलता है उसके बाद जो ग्रोथ होता है और उसमें जो मल्टीप्लिकेटिव फैक्टर आता है तो वह बहुत तेजी से ग्रो करता है इसलिए यह कहना कि हम 18, 26 या 30 ट्रिलियन की इकोनॉमी हो जाएंगे ये कोई बड़ी चीज नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि यह जो आंकड़े होते हैं उसमें हमें ज्यादा चौंकने की जरूरत नहीं है। इसमें यह देखने की जरूरत है कि जो आम लोगों की जिंदगी है क्या उसकी फैसिलिटी बढ़ रही है या नहीं बढ़ रही है। पर कैपिटा बेसिस बहुत महत्वपूर्ण होता है हमें यह बताता है कि हमारे ₹1 में क्या माल खरीदा जा सकता है। अगर हम पर कैपिटा बेसिस के ऊपर से देखें तो हम टॉप के 3 इकोनॉमी में आते हैं। हम इस स्टेटस पर पिछले 15 साल से दूसरे या तीसरे नंबर पर फॉरवर्ड करते आ रहे हैं। यह जो हमारी पर कैपिटा इनकम के ऊपर जीडीपी ग्रोथ फिगर जो इस समय 13 ट्रिलियन के करीब है। वो जो इकोनॉमी स्टेटस है हमारा इंटरनल ग्रोथ की वजह से है। अमेरिका जैसे देश में जो नंबर वन पर है पीपीपी के बेसिस पर उनको यहां इंड्यूज़ लो कॉस्ट फैक्टर हैं। मतलब जो माल वह दुनिया भर से खरीदते हैं वह इतना सस्ता होता है क्योंकि डॉलर बहुत स्ट्रॉन्ग है इस वजह से उनकी पर कैपिटा जो कंजप्शन है, पीपीपी के बेसिस पर ज्यादा आता है इसलिए वह नंबर वन पर है। उनका डोमेस्टिक ओरिएंटेशन नहीं है यदि कल को उसे दुनिया भर से काट दिया जाए तो वहां का महंगाई एकदम से इतना बढ़ेगा जो अभी भी बढ़ रहा है कि वो पहली दूसरी, तीसरी तो छोड़ दें वो दसवीं आने की भी क्षमता में नहीं रहते हैं। हिंदुस्तान एक कंसिस्टेंट ग्रोथ की ओर चलता है।
उन्होंने कहा कि डिमोनेटाइजेशन और जीएसटी से फायदे हुए हैं। डिमोनेटाइजेशन की वजह से ऐसा कोई मेजर शिफ्ट इकोनॉमी ग्रोथ पैटर्न में नहीं आया है। डिस्टेबलाइजेशन की बात करते हुए उन्होंने कहा कि बड़ी-बड़ी क्रेडिट कार्ड कंपनी 1970 में अपनी बैलेंस शीट में लिखती थी और कहती थी कि हम कैश को गायब कर देंगे, हम एक डिजिटल क्रेडिट कार्ड के बेसिस पर लेकर आएंगे इसको कार्ड इकोनॉमी बनाएंगे। वह पिछले 40 से 50 सालों में नहीं बना पाएं पर डिमोनेटाइजेशन ने ऐसा वर्ग जो बिल्कुल लोअर तबके का है उस तबके के लोगों को अचानक एक झटके में डिजिटल एंपावर्ड बना दिया। डिमोनेटाइजेशन और डिजिटल इंपैक्ट से लोगों को एक सुरक्षा मिली है।
उन्होंने कहा कि उद्योगपतियों के बड़े-बड़े घर बन गए लेकिन जो ऑफिस थी वह बहुत छोटा था। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि उन्हें कैश में दिया जाता था और गरीब आदमी गरीब ही रहता था और आगे बढ़ने की उसकी इच्छा नहीं होती थी और क्षमता नहीं होती थी। अब जीएसटी लागू किया गया, उनके अकाउंट खुलवाए गए और ट्रांजैक्शन को ट्रैक किया जाता है तो उस वजह से उसको भी पेमेंट अकाउंट में मिलती हैं। इससे उसका अब एक स्ट्रक्चर बन रहा है जिससे कि वह शिक्षा लोन या हाउस लोन भी ले सकता है। जहां हम यह कहते थे कि इन चीजों की वजह से हमारी इकोनॉमी ग्रोथ नहीं करेगी। इसी से हमें जीडीपी ग्रोथ और इकोनॉमी ग्रोथ भी देखने को मिली। साथी ही साथ जो एक लोअर तबका था जिसको हम इतने सालों से मौका नहीं दे पा रहे थे उसको भी हमने एंपावर्ड करने के लिए मौका दिया है।
इकोनॉमी ग्रोथ पर प्रोफ़ेसर अंकुर शर्मा ने अपनी राय रखते हुए कहा कि किसी भी देश का इकोनॉमी एक पूरा ग्लास पानी होता है जिसमें आधा ग्लास भरा हुआ होता है और आधा ग्लास खाली होता है। अब यह हम पर होता है कि हम उसे कैसे देखते हैं खाली ग्लास पानी को आप देखना चाहते हैं उसको और भरना चाहते हैं या जो ग्लास भरा हुआ है उसमें आप खुश हैं। इंडिया फास्टेस्ट ग्रोइंग मेजर इकोनॉमी है इसमें कोई शक नहीं है। इंडिया जो है वह राइट त्रिजिटरी पर है। फंडामेंटल स्ट्रांग है, फिस्कल डेफिसिट अंडर कंट्रोल है और महंगाई 6.8% है। वर्ल्ड सिनेरियो के अकॉर्डिंग इक्नॉमीज वेल अंडर कंट्रोल है। यह बात मैंने उसकी की जो ग्लास आधा भरा हुआ है। जो ग्लास भरा हुआ नहीं है उसके बारे में बताते हुए कहा कि क्लासिकल इकोनॉमी में ग्रोथ इंपॉर्टेंट होता है। ग्रोथ इंपॉर्टेंट है पर सफिशिएंट नहीं है। जो लास्ट माइल पर व्यक्ति खड़ा है उसको ग्रोथ कितना एंपावर्ड करती हैं उसके कितना पूरा करती हैं यह जरूरी है।
उन्होंने आगे कहा कि अगर हमें ग्रोथ स्टोरी कंटिन्यू करनी है तो हमें तो कहीं ना कहीं लीडरशिप लेनी पड़ेगी। सर्विसिस में हमें कहीं ना कहीं कॉम्पिटेटिव एडवांटेज है। ये एडवांटेज हमें मैन्युफैक्चरिंग में लेनी पड़ेगी। हमें कहीं ना कहीं वर्ल्ड की थॉट लीडरशिप लेनी पड़ेगी। एक मैन्युफैक्चरिंग हब बनना पड़ेगा। अगर आप ग्रोथ स्टोरी यूएस और चाइना की देखेंगे तो ये वर्ल्ड के लिए प्रोड्यूस करते हैं इकोनॉमी के लिए प्रोड्यूस नहीं करते हैं। जब तक हमारी पॉलिसी उस दिशा में नहीं चलेगी तब तक तक डोमेस्टिक फ्यूलड इकोनॉमी को मैं बहुत अच्छा नहीं मानता थीक है क्योंकि अगर साइज बढ़ेगा तो गुड एंड सर्विसेज आप प्रोड्यूस करेंगे लेकिन आपको सही में वर्ल्ड लीडर बनना है और वह मुकाम पाना है जो हम चाहते हैं तो कहीं ना कहीं किसी सेक्टर में लीडरशिप लेनी पड़ेगी।
एंकर ने सवाल करते हुए कहा कि क्या आप मानते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग में हम थोड़ा पीछे हैं? और हमें आगे आने की जरूरत है? क्या हम कर सकते हैं? क्या हम मैन्युफैक्चरिंग को कॉन्पिटिटिव बना सकते हैं? क्या इंडिया के पास वह इकोनॉमी स्ट्रैंथ है जो चाइना से कर पाए? इस पर आपका क्या राय है? इसके जवाब में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ फाइनेंस के प्रोफेसर डॉ. अमन अग्रवाल ने कहा कि इस सरकार ने मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत हिंदुस्तान में ग्रोथ लाने की कोशिश की है। नेचुरल ग्रोथ मॉडल को समझाते हुए उन्होंने एक फिल्म का उदाहरण दिया और कहा कि कुछ समय पहले एक फिल्म आई थी जहां पर एक बड़ा मॉडल परिवार होता है और डिसिप्लिन तरीके से अपने बच्चों को पढ़ाता है और दूसरा उन्हीं के बराबर में एक परिवार होता है जो कोई रिस्ट्रिक्शन नहीं लगाता है फ्रीडम देता है ग्रोथ देता है। क्या चीज सस्टेनेबल हैं? जब हम यूएन की सस्टेनेबल ग्रोथ की बात करते हैं तो क्या चीज सस्टेनेबल हैं? चाइना में पिछले 10-12 सालों से सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है कि उन्हें पता ही नहीं है कि नेक्स्ट लेवल पर कैसे जाया जाएं। वो कहते हैं कि हम यहां से यहां तक तो पहुंच गए और हमें एक लीडर चाहिए कि जो हमें आगे लेकर जाएं लेकिन हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारी मैन्युफैक्चरिंग जरूर स्लो ग्रो की है लेकिन कोरोना के समय में भी सप्लाई चेन रिसेप्शन नहीं हुई है। उस समय सारे सेक्टर चल रहे थे काम बंद नहीं हुए थे पूरी तरह से इसलिए हिंदुस्तान की इकोनॉमी को कोविड के बाद एकदम से निकाल पाए और ग्रोथ हो पाया। अगर चाइना जैसी इकोनॉमी होती, हमें जरूर पिछले 40 से 50 सालों में ग्रोथ होने देखने को मिली है पर हम उस अकॉर्डिंग आगे ग्रोथ नहीं दे सकते थे। मैन्युफैक्चरिंग बहुत स्लो ग्रो करती है।
उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने कोशिश कि एमएसएमई सेक्टर को ना केवल फाइनेंसिंग दी जाए बल्कि स्टार्टअप के जरिए माइक्रो सेक्टर को ग्रो किया जाए, मेक इन इंडिया प्रोग्राम के द्वारा मैन्युफैक्चरिंग को बूस्ट किया जा सके और बाहर के लोगों को कहा कि तुम यहां आकर निवेश करो।आज बड़े-बड़े कंपनियां हिंदुस्तान में आकर काम कर रहे हैं और हिंदुस्तानियों के लिए और अपने देश लिए भी पैसा कमा रहे हैं। उन्होंने बताया कि हमारे यहां एक डिफेंस ऑफिसर ने 2002 के अंदर एक रिपोर्ट बनाई थी। उस रिपोर्ट में उन्होंने साफ लिखा है कि हमारे डिफेंस कैपेबिलिटी है कि हम उनको एक्सपोर्ट करें। उसमें बड़ा क्लियर इंडिकेशन दिया गया था कि पहले हम डेवलपिंग देश को और उसके बाद डेवलप देश को एक्सपोर्ट करें। अब इस सरकार ने पिछले चार-पांच सालों में राजनाथ सिंह के अंदर पहली बार डिफेंस को एक्सपोर्ट करना शुरू किया। कितना पैसा कमाया जा रहा है। डिफेंस के जो अंदरूनी लोग थे वह अब कहीं ना कहीं सीखा है कि हम आगे कर सकते हैं। बच्चों को मोटिवेशन मिल रहा है कि हम यहां पर प्रोडक्शन सेंटर बन सकते हैं सिर्फ कंजम्पशन सेंटर नहीं है। पहली बार हिन्दुस्तान में पिछले 7 सालों में सैटेलाइट हिंदुस्तान की धरती से लॉन्च हुआ है। बनाते तो पहले भी थे लेकिन लॉन्च कभी रसिया अमेरिका या अन्य देश करते थे। यह मैन्युफैक्चरिंग नहीं है तो क्या है। हिंदुस्तान में पहले विदेशी कहते थे कि यहां पर सुई से लेकर हाईएस्ट लेवल ऑफ चीजें बनती है। जरूर है क्योंकि हिंदुस्तान पूरे हिंदुस्तान में फैला हुआ है चाइना की तरह दो कोने में बटा हुआ नहीं है। हिंदुस्तान में कोई ऐसा इलाका नहीं है जहां पर हिंदुस्तान के नागरिक या बाहर के नागरिक को विजिट करने के लिए रिस्ट्रिक्शन है लेकिन चाइना और अमेरिका में है। यहां पर कोई रिस्ट्रिक्शन नहीं है चाहे आप मैन्युफैक्चरिंग, सेवाएं या खेती करना चाहे। पिछले 40-50 सालों से कोई भी अंतरराष्ट्रीय देश हिंदुस्तान के साथ मिलकर इन सब सेक्टर में काम कर रहे हैं। मेरे हिसाब से मैन्युफैक्चरिंग में क्षमता है और उसका पोटेंशियल ग्रो कर रहा हैं। इसलिए बहुत सारी बाहर की कंपनियां निवेश कर रही है। जो हिंदुस्तानी हिंदुस्तान को छोड़कर चला गया वह भी अब वापस आकर कह रहा है कि हमारा करियर हिंदुस्तान में बनेगा और वह हिंदुस्तान आकर काम कर रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि कल बनाने के लिए यहां पर ग्रोथ और लाइवलीहुड है।
एंकर ने सवाल करते हुए कहा कि आप एंटरप्रेन्योर और स्टार्टअप को कैसे देखते हैं? और आने वाले समय में यह कितना बड़ा रोल प्ले करेगा? इस पर आपकी क्या राय है? इसके जवाब देते हुए प्रोफेसर अंकुर ने कहा कि पिछले दो दशक से एंटरप्रेन्योर जो है वह बज वर्ड बन गए हैं, किसी देश को आगे एंटरप्रेन्योर ही लेकर जाते हैं और सरकार का काम गवर्नर करना है जो प्राइवेट प्लेयर है वही इकोनॉमी के ड्राइवर होने भी चाहिए। हम अगर एंटरप्रेन्योरशिप की बात करते हैं तो हमें यह भी देखना है कि हम किससे अपनी तुलना कर रहे हैं। तो हम कहीं लैक कर रहे हैं। अभी भी किसी देश में गवर्नर रीबन एंटरप्रेन्योरशिप नहीं चलती है, कल्चर रिबन एंटरप्रेन्योरशिप चलती है। जब तक कल्चर नहीं बनता है कि आप एंटरप्रेन्योरशिप बनिए, जब तक ऐसा नहीं बनता है कि लोग खुद रिस्क ले तो वो गवर्नर रीबन एंटरप्रेन्योरशिप नहीं हो सकती। कोई किसी को एंटरप्रेन्योरशिप नहीं बना सकता जब तक आपका मन नहीं करेगा। आप कितनी भी ट्रेनिंग, कोर्स और फंड दें दीजिए वो नहीं हो पाएगा तो कल्चर ऑफ इनोवेशन आपको डेवलप करना पड़ता है। पहली चीज ये है। और दूसरी चीज इंडियन स्टार्टअप की है। जो चीज मुझे इंडियन एंटरप्रेन्योर और स्टार्टअप की लैक करते हुए लगती है वो हाई रिस्क इनोवेशन है। ये चीज मुझे थोड़ी चिंता वाली लगती है। अगर मैं समय के अनुसार तुलना करूं तो जो ग्रोथ है वह चल रही है। लेकिन इस सेक्टर में अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।
क्या स्टार्टअप के लिए पर्याप्त फंड और कैपिटल उपलब्ध है इस पर आपकी क्या राय है? इसके जवाब में प्रोफेसर अंकुर ने कहा कि यह डिपेंड करता है कि हम अपनी तुलना किस देश से कर रहे है अगर हम पाकिस्तान और अफगानिस्तान से तुलना कर रहे हैं तो यहां फंड उपलब्ध है। अगर आप तुलना सिंगापुर या इजरायल से करेंगे तो यहां पर दिक्कत आएगी। इंटरेस्ट रेट और फाइनेंशियल सेक्टर बहुत बड़ा रोल प्ले करता है कि कैपिटल किस रेट पर उपलब्ध है और कितने आसानी से उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि किसी भी इमर्जिंग मार्केट में इंटरेस्ट रेट हाई होते हैं जो डेवलपिंग देश होते हैं उसमें इंटरेस्ट रेट कम होते हैं और वहां के जो हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल है और वह ऐसे ही रिस्की एवेन्यूज तलाश रहे होते हैं उन्हें पता होता है कि रिस्क है अगर एक लेजेंड स्टोरी बनी तो फिर हमको जो रिटर्न आएगा वह हम कभी भी बैंक में रखकर या किसी और चीज में इन्वेस्ट करके इतना पैसा नहीं ला पाएंगे। इंडिया में यह जो इशू है यह अभी मिसिंग है लेकिन धीरे-धीरे ऑर्गेनिकली आएगा और अचानक इसे हम बढ़ा नहीं सकते।
एंकर ने सवाल करते हुए कहा कि भविष्य में आप एक्सपोर्ट को कैसे देखते हैं? एक्सपोर्ट ग्रोथ में बहुत महत्वपूर्ण भी होता है और आने वाले समय में एक्सपोर्ट का क्या रोल होगा? इसके जवाब में प्रोफेसर इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ फाइनेंस के प्रोफेसर डॉ. अमन अग्रवाल ने कहा कि एक्सपोर्ट उस देश के लिए बहुत क्रिटिकल है जिसकी वह नब्ज है। हिंदुस्तान की इकोनॉमी अभी डेवलपिंग है, हो सकता है आगे भी लंबे समय तक डेवलपिंग रहे। भारत सरकार को हो सकता ये सुनकर अच्छा ना लगे। क्योंकि हमारे यहां जो बेसिक नीड्स है वह पिछले 75 सालों में अभी तक पूरी नहीं हो पाई है। आज की स्थिति बेहतर है पर अभी बहुत बढ़िया नहीं है। इस समय जो हमारी हेल्थ, एजुकेशन, मैन्युफैक्चरिंग, एग्रीकल्चर और अन्य सेक्टर में इतनी नीड्स है अगर इस समय बाहर से भी हजार बड़े-बड़े कंपनियां आकर हिन्दुस्तान में देने लगे तो भी अगले 10 साल तक पूरी नहीं हो सकती। पापुलेशन ग्रोथ और रिक्वायरमेंट इस पार्ट से होकर गुजर रही है। इसलिए हमारे लिए एक्सपोर्ट इंपॉर्टेंट है लेकिन क्रिटिकल नहीं है। हम लोग कभी भी शुरू से एक्सपोर्ट लेट देश नहीं रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि पहले सामान की क्वालिटी मानी जाती थी दाम नहीं देखे जाते थे तो विश्व में आज भी क्वालिटी है तो दाम नहीं देखे जाते चाहे वह सामान सरकार बना रही हो या प्राइवेट कंपनी बना रही हो। अगर क्वालिटी नहीं है तो फिर वो दाम आगे मार्केट में नहीं चलते हैं। इसी चीज के द्वारा एक्सपोर्ट में हम कभी भी टॉप नहीं कर पा रहे हैं। एक्सपोर्ट लेट ग्रोथ हमारे लिए इंपोर्टेंट नहीं है क्योंकि हमारी अपनी क्षमता कंजम्पशन करने की बहुत ज्यादा है।
उन्होंने आगे कहा कि हम रुपए का स्तर बढ़ाकर एक हिंदुस्तानी का स्तर क्यों नहीं बढ़ा पा रहे हैं। जो किसान है ऑर्गेनिक खेती से एक्सपोर्ट कर रहा है उसे भी कम चीजें देकर ज्यादा पैसा मिलेगा, विद्यार्थी और शिक्षक की क्षमता बढ़ेगी, फैसिलिटी भी बढ़ेगा और जो हमारे सेक्टर है वो सीधा टॉप हंड्रेड वर्ल्ड के अंदर 80 लोग हमारे ही होंगे। अगर आरबीआई एक्सचेंज रेट नेचुरल तरीके से इंप्रूव कर दें। ये ग्रो करेगा, हिंदुस्तानी का स्तर भी बढ़ेगा और एक्सपोर्ट भी बढ़ेगा। नहीं तो अमेरिका जिसका डॉलर सबसे ज्यादा स्ट्रांग है वो सबसे बड़ा एक्सपोर्टर दुनिया का नहीं होता। अगर कमजोर करेंसी रखकर एक्सपोर्ट की जाती तो यह नहीं होता। अगर रुपया स्ट्रांग हैं तो सोचिए एक्सपोर्टर कितनी देश में जाकर अपना सामान बेच सकता है अगर नहीं है तो वह कितनी देश में जाकर अपना सामान बेच सकता है? इससे उसकी क्षमता और पोटेंशियल कम हो जाता है इसलिए वह कॉम्पिटिटिव नहीं रह पाता है।
उन्होंने आखिर में कहा कि इस समय विश्व में हिंदुस्तान की छवि और एक हिंदुस्तानी की छवि एक सोने की चिड़िया जैसी है और उसे उभारना हमारे हाथों में हैं। हिंदुस्तान का भविष्य वही लोग बनाएंगे जो समझ जाएंगे कि उनके अंदर क्षमता है।