टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (01/03/2023): भारतीय सेना के कर्नल अशोक तारा ने टेन न्यूज नेटवर्क से खास बातचीत के दौरान एक ऐसा वाकिया साझा किया जिसे पढ़कर आपको भी गर्व की अनुभूति होगी। भारतीय सेना के एक जाबांज अफसर ने किस तरह बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी फैमिली को बचाया।
फौज में भर्ती होने के संबंध में बताते हुए कर्नल अशोक तारा ने कहा कि “फौज में भर्ती होने का शौक बचपन से था क्योंकि मेरे पिता सेकंड वर्ल्ड वॉर में लड़ाई लड़ी थी और वह चाहते थे कि उनका बेटा फौज में जाए। मेरे माता-पिता दोनों की ही इच्छा थी इसलिए उन्होंने मेरा नाम बचपन में फौजी बेटा रखा था। मैं स्कूल और कॉलेज के समय भी एनसीसी में रहा और 1963 के अंदर मैंने कमीशन ली और इंडियन आर्मी के अंदर भर्ती लिया।”
बांग्लादेश के साथ आप कैसे जुड़ गए? जवाब में उन्होंने कहा कि कमीशन के बाद मेरी पोस्टिंग नागालैंड में हुई थी। वहां से फिर 1965 का लड़ाई और फिर दूसरी जगह मेरी पोस्टिंग हुई। 9 पैरा कमांडो, इंडियन आर्मी की पहली कमांडो मटेरियल थी मैंने उसमें हिस्सा लिया। फिर 1970 में मेरी पोस्टिंग न्यूजीलैंड में हो गई। उस समय ईस्ट पाकिस्तान था और भारत का बॉर्डर था उस पोस्ट पर मेरी पोस्टिंग हुई थी। जब मैं उस पोस्ट पर था तो मार्च के अंदर बांग्लादेश के अंदर पॉलिटिकल प्रॉब्लम शुरू हो गई थी और 7 मार्च को बंगबन्धु ने यह घोषणा किया था कि आप जो बांग्लादेशी, भक्त अपनी आजादी के लिए कुर्बान हो जाए त्याग हो जाए। 25 मार्च 1971 को बंगबन्धु ने ईस्ट पाकिस्तान को बांग्लादेश का नाम देकर आजादी का नाम दिया। तब से मेरी इंवॉल्वमेंट कमीशन वार के अंदर हो गई। पहले जब मैं बॉर्डर पर था तब जो भी रिफ्यूजी बांग्लादेश से आते थे उनको हमने सेल्टर दिया। उसके अंदर जो जवान था उनको मैंने ट्रेनिंग दी।
उन्होंने बताया कि ईस्ट पाकिस्तान की फौज पर भी हमने दो बार फायर किया। लेकिन जैसे-जैसे लड़ाई बढ़ती चली गई जो पॉलिटिकल और मिलिट्री प्रॉब्लम बांग्लादेश में बढ़ती चली गई और लड़ाई की हालत बन गई। फिर मेरी पोस्टिंग अगरतला में हो गई। उस समय भारत और बांग्लादेश के बॉर्डर के पास काफी फायरिंग हुई थी और इसमें भी मैंने दो या तीन बार हिस्सा लिया था। 10 नवंबर के आस-पास लग रहा था कि यह लड़ाई बांग्लादेश और पाकिस्तान से होने वाली है। दोनों तरफ हालात काफी गर्म हो चुके थे। एक या दो दिसंबर को मुझे हुकुम मिला कि आप यूनिट के साथ बांग्लादेश में जाएंगे और वहां पर एक रंगा साहब रेलवे स्टेशन है जो बांग्लादेश के 5-6 किलोमीटर अंदर है और उन्हें हमें पकड़ना है और कब्जा करना है क्योंकि वह बेस था जिससे कि बड़ी संख्या में फौज आकर बाद में हमला करेंगे। 3 दिसंबर को हम रंगा साहब की ओर चले गए और और सुबह-सुबह हमने हमला किया और कब्जा किया। यह आम लड़ाई नहीं थी दूसरी लड़ाई से अलग थी।
उन्होंने आगे कहा कि अटैक से पहले मुझे ग्रुप के साथ भेजा गया कि कैरना सैटरडे है और उसका जो एरिया है और उसके आगे पीछे जो डिफेंस है उस पर हमला कैसे किया सकता है और टारगेट को कैसे पूरा किया जा सकता है। फिर हमने वहां का निरीक्षण किया और हमारे जो सीनियर थे उसको सलाह दी कि आप सिंगल फायर के साथ रेलवे लाइन के अंदर से फायर करें। सिंगल फायर के अंदर हमला ना कभी स्कूल और ना ट्रेनिंग के अंदर पढ़ाया गया था इसलिए हमारे सीनियर इसे मानने को तैयार नहीं थे। काफी समझाने के बाद हमारे सीनियर इस पर मानें। हम प्लानिंग के साथ जा रहे थे तो वह ऐसी जगह थी जहां दुश्मन भी नहीं सोच सकता था कि हम इधर से हमला कर सकते हैं। पाकिस्तानी को उम्मीद नहीं थी कि रात के अंधेरे में धूल के अंदर हम इस साइड से हमला करेंगे। जब यह हमला हुआ तो वह बिल्कुल हैरान हो गए। मुझे इस लड़ाई के अंदर वीर चक्र मिला।
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बताई थी कि वो अपनी जिंदगी, करियर और वर्तमान के बांग्लादेश के लिए आप पर बहुत आभारी हैं। शेख हसीना बंगबन्धु की सुपुत्री वह आप पर इतना खुश और आज के बांग्लादेश के आप कारण है इसके पीछे क्या कहानी है?
जवाब में उन्होंने कहा कि बीच-बीच में कई जगह लड़ाई होती रही और भारतीय फौज 14-15 दिसंबर को ढाका के पास पहुंच गई और मुझे हुकुम था कि आप ढाका का जो एयरपोर्ट है उस पर कब्जा करेंगे। 15 दिसंबर की रात को हमने उस पर हमला किया। पाकिस्तानी थोड़े से डर गए थे और पीछे हट रहे थे लेकिन दोनों साइड से फायरिंग हुई, उसके बाद वह पीछे हट गए।
उन्होंने आगे बताया कि हमने 6 बजे तक ढाका एयरपोर्ट को अपने कब्जे में ले लिया। 16 दिसंबर को शाम 4 बजे पाकिस्तानी आर्मी ने भारत और बांग्लादेश के आर्मी को सरेंडर कर दिया। उसके बाद मुझे हुकुम मिला कि आप एयरपोर्ट की सुरक्षा कीजिए। जब मैं सुबह 9 बजे अपने जवानों को उसमें लगा रहा था तो इतने में एक मुक्ति योद्धा मेरे सीईओ के पास आया और कहने लगा कि शेख मुजीबुर्रहमान और उसकी फैमिली पाकिस्तानी फौज के कैद में है और वो उनकी फैमिली को मार देंगे क्योंकि पाकिस्तानी फौज सरेंडर कर चुकी थी इसलिए हमारी सीईओ भी ऐसा सोच रहे थे कि शायद ऐसा ना हो इसलिए मुझे वहां बुलाया गया और कहा कि आप इसके साथ जाओ और देखो कि क्या प्रॉब्लम है और उसे दूर करो। फिर मैं भी दो जवान और मुक्ति योद्धा के साथ चला गया।
उन्होंने आगे बताया कि मुझे वहां पहुंचने से पहले कई लोकल लोग और मीडिया के लोगों ने वहां जाने से मना किया। एक घर के अंदर वो लोग बंद थे और पाकिस्तानी फौज उसे बाहर से घेरे हुए थे अगर वह कोई भी हरकत करते हैं तो पाकिस्तानी फौज उसे मार देते। फिर मैंने सोचा कि मुझे उसे बचाना है और मुझे हर चीज से रिस्क लेना पड़ेगा क्योंकि मेरे पैरंट्स ने बचपन में और बाद में भी ये बताया गया है कि ‘जो डर है वह आपके दबाव में आता हैं’ अगर आप उस डर को दिमाग से बाहर रखो तो डरने की कोई जरूरत नहीं है उसी चीज को सोचते हुए मैंने उस वक्त अपनी हिम्मत के साथ और जो भी ट्रेनिंग है उसके साथ चला गया और मैंने अपना हथियार 2 जवान को दे दिया और बिना हथियार के मैं आगे चलने लगा। मुझे कुछ लोगों ने दोबारा बोला कि यहां पर थोड़ी देर पहले फायरिंग की गई फिर मैं किसी चीज का जवाब ना देते हुए आहिस्ता आहिस्ता चलता गया। जब मैं गेट के पास पहुंचा तो ऊपर से पंजाबी भाषा में आवाज दिया गया कि आप रुक जाओ और उसने मुझे डराया कि आप अगर अंदर जाएंगे तो हम आपको गोली मार देंगे। मैं पंजाबी जानता था और फिर मैंने उसे पंजाबी में समझाया कि पाकिस्तानी फौज ने सरेंडर कर दिया है और आप भी सरेंडर कर दीजिए लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थे और कह रहे थे कि पाकिस्तानी फौज सरेंडर नहीं करते। मैंने फिर समझाया फिर दोनों ने काफी एक-दूसरे को डराया और गेट खुला और मैं अंदर चला गया तो एक गोली उसने पब्लिक पर चलाते हुए मुझे डराया। फिर मैंने उन्हें कहा कि आपकी फौज सरेंडर कर चुकी हैं और अगर आप सरेंडर नहीं करेंगे तो भारतीय फौज आपको मार देगी और आपकी फैमिली जो पाकिस्तान में इंतजार कर रही है वह आपको नहीं मिलेंगी। फिर इन्होंने कहा कि मैं अपने कमांडर से मिलूंगा तो अंदर से आवाज आई कि आप इस पर विश्वास मत करो। ये बहुत खतरनाक आदमी है और कभी भी फायरिंग कर सकते हैं। मुझे भी यही शक था इसलिए मैं उन्हें बार-बार कह रहा था कि आपके फौज ने सरेंडर कर चुका है और आप भी कर दीजिए मैं आपको आपके हेडक्वार्टर तक पहुंचा दूंगा। जब वो सरेंडर को तैयार हुए तो मैंने कहा कि शेख मुजीबुर्रहमान को छोड़ दिया जाए। जब उसने गेट खोला और मैं अंदर गया तो शेख मुजीबुर्रहमान ने मुझे गले लगाया और कहा कि कि तुम मेरे बेटे समान हो तुमको खुदा ने हमें बचाने के लिए भेजा है। मैंने उसकी फैमिली को बचाया। उन्होंने कभी उम्मीद भी नहीं की थी कि उनकी फैमिली शायद यहां से बच कर निकल जाएं यह बात मुझे खुद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बताई थी।
कर्नल अशोक तारा की पत्नी आभा तारा से पूछा गया कि इनको कैसे पता चला कि उनकी शादी एक वीर से हुई है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मेरी फैमिली में कहीं दूर-दूर तक कोई फौजी नहीं था। मेरी शादी एक फौजी से हुई थी और हमें कुछ नहीं पता था कि क्या होता है? कहां रहते हैं? कैसे होते हैं? 16 दिसंबर को पाकिस्तानी ने सरेंडर कर दिया था और 17 दिसंबर की रात को एक पड़ोसी ने बताया कि अशोक की खबर टीवी पर आई है और उन्होंने कुछ नहीं बताया कि क्या खबर है। जब हमने टीवी खोला तो देखा कि कैसे उन्होंने शेख मुजीबुर्रहमान की फैमिली को बचाया है ये खबर चल रहा था। खबर में यह नहीं बताया गया था कि वह ठीक है या नहीं है। यह नहीं पता चला कि वह जिंदा है या नहीं है।
आपको कब पता चला कि आपके पति जिंदा है और कब आपके पास वापस आए? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि तब इन्होंने मुझे फोन किया था कि मैं आ रहा हूं। यह 23 या 24 जनवरी को वापस आए थे। फिर मैंने पूछा क्या हुआ था इसके जवाब में इन्होंने कहा कि मैं जिंदा आ गया हूं इतना ही काफी है बस भूल जा उसको।
50 इयर्स ऑफ बांग्लादेश रिवोल्यूशन वार की सेलिब्रेशन हो रहा था तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के साथ कर्नल अशोक तारा की फैमिली को भी बुलाया गया था। तब शेख हसीना ने अशोक तारा को सबसे बहु कीमती अवॉर्ड ‘फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वॉर’ के अवार्ड दिए हैं। साथ ही उन्होंने ‘फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वॉर ऑनर’ अवॉर्ड से सम्मानित किया। ये मुक्ति मैत्री सम्मान है जो कि बांग्लादेश की सबसे बड़ा अवॉर्ड है। जब आप प्रधानमंत्री के साथ वहां गए थे तो आपको कैसा लगा और कैसे सम्मान हुआ? इसके जवाब में कर्नल अशोक तारा ने कहा कि अक्टूबर में हमें मैसेज मिला कि आप ढाका आएंगे और आपको यह अवार्ड दिया जाएगा। जब मैं वहां गया तो काफी लोग मुझे रिसीव करने के लिए आए थे। उसके बाद जहां पर अरेंजमेंट किया गया था वहां पर गए। 20 अक्टूबर को वहां पर जो इंटरनेशनल हाल है वहां पर इनवाइट हुआ और वहां पर प्रधानमंत्री शेख हसीना, राष्ट्रपति, फॉरेन मिनिस्टर और कई अन्य मिनिस्टर मौजूद थे। जब उन्होंने अवॉर्ड के लिए बुलाया और प्रधानमंत्री मुझे अवॉर्ड दे रही थी तो राष्ट्रपति भी खड़े हुए और उन्होंने राष्ट्रपति को बताया कि यह किस चीज का अवॉर्ड है और उन्हें कैसे मैंने बचाया। इसके बाद मुझे संदेश दिया गया कि उन्हें और उनकी वाइफ को प्रधानमंत्री के घर पर बुलाया गया। शाम को मैं और मेरी वाइफ उनके घर पर गए और वह मुझे रिसीव करने के लिए प्रधानमंत्री शेख हसीना खुद बाहर खड़ी थी। वह मुझे ऐसे मिली जैसे कि वह घर की ही कोई आदमी हो। ऐसा नहीं लग रहा था कि प्रधानमंत्री से मिल रहे हैं। साथ ही उन्होंने बताया कि जब मैंने इनको आजाद कराया था तब उस घर के ऊपर पाकिस्तान का झंडा लगा हुआ था और उन्होंने मुझे बांग्लादेश का झंडा दिया और कहा कि इस घर पर लगाओ और मैंने पाकिस्तानी का झंडा निकालकर फेंक दिया और बांग्लादेश का झंडा लगाया। मुझे बाद में बताया गया कि मैं पहला आदमी हूं जो कि उनके घर पर पहला झंडा फहराया है।
आप बांग्लादेश गए क्या आप बांग्ला भाषा सीखे? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि जहां भाषा और कल्चर की बात है। जब बचपन में मेरे पिता रिटायर्ड हुए तब दिल्ली में एक जगह था जिसे बंगाली एरिया माना जाता था उस वक्त हम वहां पर खेलते थे और और उनके फैमिली के साथ बातचीत करते थे। उसके बाद हम चले गए वक्त के साथ और समय के साथ बांग्लादेश के चलते शब्द रह गए है और बाकी हम भूल गए हैं। हो सकता है समय के साथ या मिलाप होने के बाद याद आ जाए।
इनके जीवनी पर कई बुक लिखे गए हैं और कौन सी किताब आने वाली है। इसके जवाब में उन्होंने बताया कि ‘द टाइगर डोंट ब्लिंक’ किताब कभी भी आ सकती हैं। इसके अलावा दो किताबें बांग्लादेश में एक पब्लिश हो गई और दूसरी होने वाली है। पहली किताब का नाम है ‘द ग्रैंड रेस्क्यू’ है जो कि बांग्ला और इंग्लिश दोनों भाषाओं में हैं और दूसरी किताब ‘बंगबन्धु एंड अशोक तारा’ है जो कि बांग्ला और इंग्लिश दोनों भाषाओं में हैं जो कभी भी आ सकती है।
उन्होंने आखिर में कहा कि मैं उनके फैमिली का बहुत शुक्रगुजार हूं और उन्होंने मुझे बहुत सम्मान दिया है। मैं उनका सम्मान करता हूं। मैं और मेरी फैमिली हमेशा उनके साथ है।