महाराष्ट्र सदन में गूंजा मराठाओं का गौरवशाली इतिहास और शौर्य की गाथा | दिल्ली विजयोत्सव 2023

टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (12 फरवरी 2023)

दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में हिंदवी स्वराज की स्थापना के 252वीं वर्षगांठ एवं महान क्रांतिकारी, वीर पुरुष, श्रद्धेय महादजी सिंधिया की स्मृति में मराठा साम्राज्य के गौरवशाली कालखंड एवं शौर्यगाथा को उल्लेखित करते हुए “दिल्ली विजयोत्सव” का भव्य आयोजन हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय उड्डयन एवं इस्पात मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं मुख्य वक्ता के रूप में राज्यसभा सांसद एवं प्रखर वक्ता सुधांशु त्रिवेदी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मंच पर उपस्थित अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर हुआ। कार्यक्रम में प्रसिद्ध लोक गायक संतोष साल्हुके ने अपने शानदार “पवार गायन” से चार चांद लगा दिए।

इस अवसर पर केंद्रीय उड्डयन एवं इस्पात मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अतिथियों को संबोधित करते हुए ओजस्वी भाषण दिया। केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने मराठा साम्राज्य एवं गौरवशाली इतिहास का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि मराठा प्रबोधन, सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करने, भारत का प्राचीन इतिहास, भारत की विरासत और भारत का वर्तमान एवं भविष्य के लिहाज से यह दिन बहुत महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक दिवस है। वो तारीख भारत माता की हजारों वर्षों की पुरानी इतिहास, भारत माता की एकता और अखंडता को कायम रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। आज का दिन मेरे लिए निजी रूप से एक भावनात्मक दिवस भी है। भारत के स्वर्णिम इतिहास और विरासत को देखें तो तमाम भारतीयों के लिए आज का दिन गर्व का दिन है। इस अवसर पर छत्रपति शिवाजी महाराज को नमन करते हैं, उन सभी वीर योद्धाओं को नमन करते हैं जिन्होंने हिंदवी स्वराज का सपना देखा था।

केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने अपने शानदार और ओजस्वी संबोधन में कहा कि लालकिले की एक एक ईंट का वो लाल रंग भारत माता के उन सपूतों का रंग है, जिसने भारत माता के लिए अपनी बलिदानी दी है। लालकिले का वो लाल रंग उनके शौर्य का प्रतीक है। शास्त्रों में लिखा है कि “वीर कभी मरते नहीं” महादजी सिंधिया का योगदान, सदाशिव भाव का योगदान सदैव अमर रहेगा। भारत के वर्तमान एवं भविष्य में भी उनका योगदान अमर रहे उनके पुण्यतिथि पर यही कामना करते हैं।

केंद्रीय मंत्री सिंधिया ने कहा कि यह कहानी शुरू हुई 1758 में , 1758 में पेशावर और लाहौर में एक योद्धा थे दत्ताजी सिंधिया, जो मराठाओं के ध्वजवाहक थे। जब इस बात की सूचना अहमद शाह अब्दाली को मिली तो बदले में अहमद शाह अब्दाली 10लाख की फौज के साथ निकलने का निर्णय लिया। जब इन आक्रांताओं ने पंजाब में सिखों का नरसंहार किया तो उस समय भी सिखों के साथ मराठा की फौज खड़ी थी। जब अहमद शाह अब्दाली पानीपत पहुंचा तो सदाशिव भाव और मराठा सैनिकों ने अहमद शाह अब्दाली की फौज को चट्टान की भांति रोक दिया।

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आखिरी में कहा कि हां हम पानीपत के तीसरे युद्ध में परास्त हुए लेकिन मराठाओं के एक लाख की फौज और अहमद शाह अब्दाली की 15 लाख फौज के बीच घमासान युद्ध हुई। उस युद्ध में सिंधिया परिवार के 16 दीपक बुझ गए थे। उस लड़ाई में परास्त होने के बावजूद महादजी सिंधिया को दुबारा जन्म मिला। विश्व इतिहास में विरले ही ऐसे कहानी है हैं जहां सबकुछ हार कर शौर्य नहीं हारा। दिल्ली का विकास, आधुनिक दिल्ली का निर्माण, सैनिकों की छावनी, पानी के लिए नहर या फिर यमुना से पहली बार पानी उपलब्ध कराने का काम हो मराठा साम्राज्य के वीरों ने किया, ये है मराठाओं का इतिहास।

वहीं कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित सुधांशु त्रिवेदी ने मंच से सभी अतिथियों को संबोधित करते हुए कहा कि 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए गुलामी की मानसिकता से मुक्ति चाहिए। महादजी सिंधिया ने एक पैर पर खड़े होकर मुगल को पराजित कर ध्वजारोहण किया उसकी कभी चर्चा नहीं की गई। उसे बताया गया कि यह रिजिनल हिस्ट्री ( क्षेत्रीय इतिहास) है, क्या पानीपत का युद्ध किसी व्यक्तिगत साम्राज्य के लिए लड़ा जा रहा था नहीं, वो पूरे राष्ट्र के लिए लड़ा जा रहा था।

राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि हमें इतिहास में क्या पढ़ाया जाता है कि ” जो जीता वही सिकंदर” और सोचिए कितने मजे की बात है कि जीतकर सिकंदर यहां से भाग गया। जो जीता वही सिकंदर के बजाय होना चाहिए कि ” जो भागा वही सिकंदर”। महादजी सिंधिया के मातहत हो गया शाह आलम, लेकिन उसे बताया गया क्षेत्रीय इतिहास और शाह आलम को बताया गया राष्ट्रीय इतिहास। जबकि शाह आलम के सल्तनत को लेकर कहावत थी कि ” सल्तनत-ए-शाह आलम, लालकिले से पालम” वो हो गया राष्ट्रीय इतिहास।

सुधांशु त्रिवेदी ने आगे कहा कि आज दिल्ली में प्रतीक चिन्ह के रूप में क्या दिखाया जाता है इंडिया गेट, लाल किला, कुतुबमीनार, लेकिन वहीं 2300 साल पुराना महरौली का लोह स्तंभ जिसमें इतने सौ सालों बाद भी जंग नहीं लगा, उसकी चर्चा तक नहीं की जाती है। मतलब, कमाल है कि लूटने वाले को हम पढ़ते हैं लेकिन संवारने वाले का नाम भी नहीं जानते हैं। लाल किला उन्होंने बनाया जिनके अपने यहां एक झोपड़ा भी नहीं है। हमारा इतिहास पराजित होने का नहीं है, हमारा इतिहास विजित होने का है।

अटल जी की पंक्तियों को उद्धरित करते हुए कहा कि” दुनिया का इतिहास पूछता रोम कहां, यूनान कहां है? घर घर में शुभ अग्नि जलाता वह उन्नत ईरान कहां है? दीप बुझे पश्चिमी गगन के व्याप्त हुआ बर्बर अंधियारा, किंतु चीड़कर तम की छाती चमका हिंदुस्तान हमारा।”

उन्होंने कहा कि विकसित देश भी हमें कैसा बनाना है, अमेरिका जैसा जो विकसित हो गया और कोई आता है गोली चला जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि विकसित हो गए संस्कार नहीं आया।

कार्यक्रम में मराठा साम्राज्य का गौरवशाली इतिहास, विरासत, परंपरा और वीरों की गाथाओं पर आधारित महाराष्ट्र की लोकगीत “पवार” का गायन प्रसिद्ध लोक गायक संतोष साल्हुके ने किया। संतोष साल्हुके ने अपने शानदार गायन के माध्यम से माराठाओं का इतिहास और वीर छत्रपति शिवाजी महाराज, महादजी सिंधिया की वीरगाथा को भी प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में शामिल सभी दर्शक एवं श्रोता मराठाओं के गौरवशाली इतिहास से अवगत हुए और अपनी संस्कृति, अपने विरासत और इतिहास पर गौरवान्वित हुए।।