टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (10 फरवरी 2023): उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं DMK के राज्यसभा सांसद P. Wilson ने केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू से मुलाकात की और उच्चतम न्यायालय के क्षेत्रीय बेंच की स्थापना, उच्च न्यायालयों की आधिकारिक भाषा, जजों की नियुक्ति संबंधी कई मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा।
ज्ञापन में उल्लेखित मुख्य अंश
•चेन्नई, मुंबई, कोलकाता और नई दिल्ली में उच्चतम न्यायालय के क्षेत्रीय बेंच की स्थापना ।
• उच्चतम न्यायालय में जजों की संख्या में वृद्धि ।
• उच्चतम न्यायालय में जजों की नियुक्ति में समाजिक न्याय एवं सामाजिक विविधता को सुनिश्चित करना ।
• मद्रास उच्च न्यायालय एवं मदुरै बेंच में तमिल भाषा समेत संबंधित उच्च न्यायालय के आधिकारिक भाषा के रूप में राज्य की क्षेत्रीय भाषाओं की घोषणा।
• न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम के तहत कानून मंत्रालय को नोडल मंत्रालय के रूप में नामित करना ।
उपरोक्त मांग को लेकर क्या है कानून के विद्वानों की राय
इस खास मुद्दे पर टेन न्यूज से बातचीत करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ओंकार सिंह ने कहा कि ” ये सभी खयाली पुलाव हैं। जो बातें संभव ही नहीं है, उसकी मांग करना व्यर्थ है। उच्चतम न्यायालय में हाल में ही जजों की संख्या में वृद्धि की गई है।”
आगे उन्होंने कहा कि ” जहां तक बात रही उच्च न्यायलयों में आधिकारिक भाषा के तौर पर क्षेत्रीय भाषाओं की घोषणा तो ये संभव नहीं है। मान लीजिए दक्षिण भारत भारत के किसी न्यायधीश की नियुक्ति हिंदी भाषी या अन्य भाषा के प्रदेश में हो जाए तो उस परिस्थिति में क्या यह संभव है कि जज सभी भारतीय भाषाओं को सीखे। उस परिस्थिति में केवल अंग्रेजी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसमें न्यायिक सुनवाई एवं फैसला संभव है।”
साथ ही वरिष्ठ अधिवक्ता ओंकार सिंह ने कहा कि ” राज्यों में उच्चतम न्यायालय की क्षेत्रीय बेंच की स्थापना का क्या उपयोगिता है, सभी राज्यों में उच्च न्यायालय मौजूद हैं। ये सभी मांगे केवल खयाली पुलाव हैं।”
इस पूरे मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्व जज न्यायमूर्ति विजय लक्ष्मी ने टेन न्यूज नेटवर्क से बातचीत में कहा कि ” कुछ मांगे ठीक हैं, जैसे उच्चतम न्यायालय में जजों की संख्या में वृद्धि की बात। उच्चतम न्यायालय के जजों पर काफी दवाब है, ऐसे में उच्चतम न्यायालय में जजों की संख्या में वृद्धि आवश्यक है।”
आगे उन्होंने कहा कि ” जहां तक बात करें क्षेत्रीय बेंच के स्थापना की तो सभी राज्यों में हाईकोर्ट हैं।” और भाषा को लेकर बात करते हुए कहा कि ” क्षेत्रीय भाषाओं न्यायिक कार्यवाही संभव नहीं है, एक जज आखिर कितनी भाषाओं को सीखेगा, और फिर जब मामला उच्चतम न्यायालय में जाता है तो फिर एक नई समस्या होगी कि आखिर उच्चतम न्यायालय में कितने भाषा में कार्यवाही की जाए और कितने अनुवादक का व्यवस्था किया जाए, ऐसे में उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही और धीमी हो जाएगी।”
कुल मिलाकर इस पूरे मामले पर कानून के विद्वानों का मत अलग अलग है। जहां एकतरफ कुछ विद्वानों का मत है कि यह मांग केवल खयाली पुलाव है, और ये कहीं से तर्कसंगत नहीं है। तो वहीं दूसरी तरफ कुछ विद्वानों का मत है कि वर्तमान समय एवं परिस्थिति के हिसाब से इनमें से कई मांग हैं जो जरूरी हैं।
अब देखना यह है की कानून मंत्री पी. विल्सन द्वारा संसद में उठाये मुद्दों पर क्या कार्यवाही करते है । टेन न्यूज टीम क़ानून मंत्री से इस विषय में विचार जानने की कोशिश कर रही है, तदनुसार यह खबर अपडेट कर दी जाएगी ।।