वास्तु जाने और सीखे – भाग १० वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल जी से

सेलिब्रिटी वास्तु शास्त्री डॉ सुमित्रा अग्रवाल
कोलकाता
सिटी प्रेजिडेंट इंटरनेशनल वास्तु अकादमी
यूट्यूब वास्तु सुमित्रा
किसी भी कार्यालय में सबसे अधिक ध्यान इस बात पर दिए जाने की आवश्यकता है कि कर्मचारी काम के पूरे घंटे दें व उनका मन काम में लगा रहे। ऐसा कार्यालय प्रभारी की प्रबंधकीय क्षमताओं के कारण संभव है, परंतु कई बार ऐसे प्रबंधक स्थान बदलते ही निष्फल हो जाते हैं। निश्चित ही इसका वास्तु से संबंध है। कार्यालय प्रबंधन से इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है।
कार्यालय प्रबंधन का मूल उद्देश्य ये होता है की –
१। किस प्रकार कर्मचारियों से निष्ठापूर्वक व पूरा कार्य लिया जाये।
२। कैसे अधिकारी वर्ग का नियंत्रण कर्मचारियों पर बना रहे।
३। कर्मचारी षड्यंत्रकारी नहीं हो जाएं ।
४। कर्मचारी कुछ रहस्य को जानने के पश्चात उच्चाधिकारियों को ब्लैकमेल नहीं करें।
इन बातों का समाधान वास्तु से किया जाना संभव है।
स्टेप बी स्टेप क्या करे –
१। सबसे पहले कार्यालय के बिल्कुल मध्य में खड़े होकर कम्पास से दिशा साधन कर लें।
२।  इसके बाद कार्यालय के नक्शे पर कम्पास के अनुरूप ही आठों दिशाओं के स्थान ज्ञात कर लें।
मुख्य बिंदु –
१। किसी भी वास्तु खंड में सर्वश्रेष्ठ स्थिति दक्षिण दिशा की मानी गई है।
२। वास्तु संबंधी किसी भी पुराने वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पश्चिम को प्रमुख स्थान नहीं दिया गया है।
३। प्राचीन योजनाओं में दक्षिण-पश्चिम में शस्त्रागार के लिए स्थान बताया गया है।
४। वास्तु खंड में दक्षिण दिशा तथा जन्मपत्रिका में दशम भाव (दक्षिण दिशा) को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। अत: स्वामी, मैनेजिंग डायरेक्टर, चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर या स्वामी की अनुपस्थिति में कार्यालय में द्वितीय स्थान रखने वाले अधिकारी को बैठाना चाहिए। उन्हें यदि उत्तर की ओर मुंह करके बैठाया जाए तो श्रेष्ठ रहता है, अन्यथा पूर्व में मुख करके भी बैठाया जा सकता है।
५। यदि गलती से मुख्य कार्यकारी अधिकारी अग्निकोण में बैठे व उसका अधीनस्थ अधिकारी दक्षिण में बैठे तो थोड़े दिनों में ही दोनों का अहम टकराने लगेगा और अधीनस्थ अधिकारी अपने वरिष्ठ की आज्ञा का उल्लंघन करने की स्थिति में आ जाएगा।
६। यदि मुख्य अधिकारी उत्तर, पश्चिम या पूर्व में बैठे तथा अन्य कनिष्ठ अधिकारी दक्षिण, दक्षिण-पूर्व या दक्षिण पश्चिम में बैठे तो भी वरिष्ठतम अधिकारी का नियंत्रण कार्यालय पर नहीं रह पाएगा तथा कार्यालय में अराजकता फैल जाएगी।
वास्तु में वायव्य कोण की ऐसी क्या विशेस्ता है की इसके उलंघन से कर्मचारी नहीं टिकते है और बार बार भाग जाते है –
वायव्य कोण में बैठने वाले कर्मचारी प्राय: थोड़े समय बाद  वहां कम बैठना शुरु कर देते हैं तथा कुछ अधिक समय बीत जाने के बाद वे अन्यत्र कहीं नौकरी पकडऩे की कोशिश करते हैं। उन्हें अधिक वेतन पर काम मिल भी जाता है। यह कोण मार्केटिंग करने वाले व्यक्तियों के लिए श्रेष्ठ है। कोई भी कार्यालय प्रभारी यह चाहेगा कि मार्केटिंग से संबंधित व्यक्ति हमेशा मार्केट में ही रहे। वायव्य कोण में कुछ गुण ही ऐसा है कि व्यक्ति के मन में उच्चाटन की भावनाएं पैदा होती है, इसीलिए मकान मालिक का पक्ष लेते हुए शास्त्रों में गेस्ट-रूम की व्यवस्था वायव्य कोण में किए जाने का प्रावधान है। इसीलिए विवाह योग्य कन्याओं के लिए भी यही जगह प्रशस्त बताई गई है। परंतु १०वीं, १२वीं में पढऩे वाली लड़कियों के लिए वायव्य कोण में सोना खतरनाक है, क्योंकि उनका मन घर में नहीं लगेगा।
अग्निकोण किन कर्मचारियों के लिए सर्वश्रेस्थ है –
अग्निकोण में उन कर्मचारियों को स्थान दिया जा सकता है जिनका दिमागी कार्य है तथा जो शोध कार्य करते रहते हैं। नित नवीन योजनाएं बनाने वाले कर्मचारियों को भी वहां स्थान दिया जा सकता है। टैस्टिंग लेबोरेटरी भी यहां स्थापित की जा सकती है। अग्निकोण में यदि अधिक वर्षों तक बैठना पड़े तो स्वभाव में आवेश आने लगता है। इसका नुकसान अधीनस्थ को तो झेलना पड़ेगा ही, संस्थान को भी झेलना पड़ सकता है। अग्निकोण में उन्हीं कर्मचारियों को बैठाया जाना चाहिए जिनसे पब्लिक रिलेशंस के कार्य नहीं कराए जाते हों। ऐसे कर्मचारियों को किसी बीम या तहखाने के ऊपर भी नहीं बैठाया जाना चाहिए।
ईशान कोण में किस कर्मचारी को बैठाये –
ईशान कोण में यदि वरिष्ठ अधिकारी बैठें तो भी उत्तम नहीं माना जाता क्योंकि आवश्यक रूप से अन्य शक्तिशाली स्थानों पर अधीनस्थ कर्मचारियेां को बैठना पड़ेगा। ईशान कोण में अपेक्षाकृत कनिष्ठ एवं उन लोगों को बैठाया जाना चाहिए जो वाक्पटु हों और मुस्कराकर अभिवादन कर सकें। प्राय: सभी स्थितियों में कर्मचारियों को उत्तराभिमुख बैठना चाहिए और ऐसा न हो सकते की स्थिति में पूर्वाभिमुख बैठना चाहिए।
क्या अलमारियों के स्थान का भी वास्तु से सम्बन्ध है –
अलमारियों के स्थान का भी वास्तु से सम्बन्ध है। भारी-भरकम अलमारियां या रैक्स नैऋत्यकोण में रखा जाना उचित होता है। ऊंचे या भारी सामान को उत्तर या ईशान कोण में रखने से कार्यालय में बाधाएं उत्पन्न हो जाती है। बीच में, मध्य स्थान में अर्थात ब्रह्मïस्थान में भी भारी-भरकम सामान या स्थायी स्ट्रक्चर नहीं बनाया जाना चाहिए। बीम या गढ़ा भी यहां नहीं होना चाहिए।