टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (13/09/2022): सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की एक डिवीजन बेंच ने कर्नाटक राज्य द्वारा पारित एक सरकारी आदेश के खिलाफ चुनौती पर सुनवाई जारी रखी, जिसमें कॉलेज विकास समितियों को सरकारी कॉलेजों में हिजाब पर बैन लगाने की प्रभावी अनुमति दी गई थी। इस मामले में अगली सुनवाई अब 14 सितंबर को की जाएगी।
इस मामले में कुल 23 याचिकाएं दायर की गई है, जिनमें से कुछ रिट याचिकाएं है जो सीधे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दाखिल की गई थी। और अन्य याचिकाएं विशेष अनुमति द्वारा अपील की गई थी, जो कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखने के फैसले के खिलाफ हैं। इस बेंच में जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया शामिल हैं।
सीनियर एडवोकेट युसूफ मुछाला ने अनुच्छेद 19(1)(ए) में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अनुच्छेद 21 के तहत जीने और स्वतंत्रता के अधिकार में पढ़े जाने वाले निजता के अधिकार और अंत: करण की स्वतंत्रता और स्वतंत्र पेशे, अनुच्छेद 25 के तहत धर्म के अभ्यास और प्रचार के बीच परस्पर क्रिया के बारे में विस्तार से दलील दी है।
इसके बाद, एडवोकेट युसूफ मुछाला ने अनुच्छेद 25 में निहित दो संबद्ध, लेकिन अलग-अलग अवधारणाओं अर्थात् अंत: करण की स्वतंत्रता और धर्म की स्वतंत्रता की पूरकता पर प्रकाश डाला। एडवोकेट युसूफ मुछाला ने यह भी तर्क दिया कि चूंकि अनुच्छेद 26, जो धार्मिक संप्रदायों के लिए प्रदान करता है, कुछ मौलिक अधिकारों का आह्वान नहीं किया गया है। आवश्यक धार्मिक अभ्यास के सिद्धांत को व्यक्तियों द्वारा माने जाने वाली प्रथाओं के संबंध में सेवा में नहीं लगाया जाएगा। एडवोकेट युसूफ मुछाला ने धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या करने के लिए न्यायालय की क्षमता पर भी यह दावा करते हुए सवाल उठाया कि न्यायिक ज्ञान के नियमों के अनुसार, कर्नाटक हाईकोर्ट को एक विशेष क्षेत्र को छूने से बचना चाहिए था जिसमें इसकी कोई विशेषज्ञता नहीं थी।
मामले में न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद को भी सुना, जिन्होंने लंबे समय तक तर्क दिया की हिजाब पहनना पवित्र कुरान द्वारा निर्धारित किया गया था। उनका तर्क था कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यह दावा करते हुए निषेधाज्ञा की प्रकृति की गलत व्याख्या की थी यह केवल सिफारिश है जबकि वास्तव में यह ईश्वर के वचन में प्रकट एक फरमान है।