राजपथ का नाम कर्तव्य पथ करने पर मशहूर इतिहासकार इरफान हबीब ने जताया विरोध, कहा- ‘यह सरकार की सनक है…’

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (10/09/2022): राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ कर दिया गया है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को किया था। इसे लेकर प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब ने भारतीय जनता पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार इसे लेकर राजनीति कर रहे है। उन्होंने कहा कि इस सरकार को ऐसा कुछ करने की ‘सनक’ है जो यह छाप छोड़ सके कि यह एक ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया था जो एक महान नेता था।

मशहूर इतिहासकार इरफान हबीब ने शुक्रवार को एक इंटरव्यू में कहा कि “यह सब राजनीतिक है। इसे राजनीति कह सकते हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि आप अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं। आपको कोई खास नाम पसंद नहीं है। इसलिए किसी चीज का नाम बदलने के लिए औपनिवेशिक इतिहास को मिटाने का हवाला देने का कोई तुक नहीं है। इरफान हबीब ने कहा कि औपनिवेशिक काल में किंग्स-वे और क्वींस-वे थे। आजादी के बाद एक का नाम राजपथ और दूसरे का जनपथ रखा गया था।”

इरफान हबीब ने कहा कि “मुझे ऐसा लगता है कि सोच-समझ कर गलत व्याख्या किया जा रहा है क्योंकि सरकार दिखाना चाहती है कि वह वर्तमान भारत को औपनिवेशिक भारत से अलग करने की कोशिश कर रहे है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। इरफान हबीब ने कहा कि आजादी के बाद ही भारत ने औपनिवेशिक इतिहास को मिटा दिया। उन्होंने राज का मतलब बताते हुए कहा कि राज का अर्थ शासन है, न कि ब्रिटिश राज और जन का अर्थ लोग है और इसीलिए राजपथ और जनपथ नाम रखे गए।”

इरफान हबीब ने कहा कि “भारतीय पहले ही जाग चुके हैं। वे चाहते हैं कि सरकार उनके कष्टों-आर्थिक, सामाजिक संघर्ष और देश में हो रही हर तरह की चीजों से अवगत हो। सड़कों और भवनों के नाम बदलने का कोई अर्थ नहीं है।शासन शायद ही बदलता है। किसी सड़क या इमारत का नाम बदलने से शासन नहीं बदलेगा। ऐसा कभी नहीं हुआ है। मूल बात यह है कि आप हर चीज पर अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं। यह आपकी सनक, किसी की सनक, आज की सरकार की सनक या किसी अन्य सरकार की सनक हो सकता है।”

 

इरफान हबीब ने कहा कि “नामों में बदलाव शायद ही किसी ऐतिहासिक विमर्श में फिट बैठता है। यह सब काफी राजनीतिक है। यह सरकार कर रही है या पिछली सरकार ने किया। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि पिछली सरकारों ने जो किया, वह ठीक था। उन्होंने कई बड़ी गलतियां कीं। ज्यादातर राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को लेकर चिंतित हैं। यह सरकार राष्ट्रवाद से ग्रस्त है। वे हर किसी को महान राष्ट्रवादी बनाना चाहते हैं, जैसे हम पहले राष्ट्रवादी नहीं थे।”

इरफान हबीब ने कहा कि “जो लोग ‘अति-राष्ट्रवादी’ हैं, वे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नहीं दिखे। इरफान हबीब ने कहा कि देशभक्ति और राष्ट्रवाद के बीच अंतर करना होगा। देशभक्ति अनिवार्य है और हर किसी को देशभक्त रहने की जरूरत है। लेकिन राष्ट्रवाद कुछ और है। आज हमें देशभक्त, देश के प्रति निष्ठावान होने की जरूरत है। लेकिन अब हम राष्ट्रवादी बनने के लिए देश के भीतर ही दुश्मनों को ढूंढ रहे हैं और अपने ही लोगों को नक्सली और अति-नक्सली जैसे अलग-अलग नाम दे रहे हैं। यह सब राजनीति है। मुझे इसमें कोई गंभीरता नहीं दिखती।”