टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (22/07/2022): श्री सत्य साई मानव अभ्युदय विश्वविद्यालय द्वारा अधिक श्रेष्ठ समाज के लिए वैदिक विचारों पर आयोजित एक वैश्विक सम्मेलन में सद्गुरु श्री मधुसूदन साई के वैश्विक स्तर पर आयुर्वेद के ज्ञान को सम्पुटित और विस्तारित करने के प्रयासों को मान्यता प्रदान करते हुए भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के सलाहकार डॉ मनोज नेसारी ने कहा कि आयुर्वेद के विषय में जनसामान्य को शिक्षित करना अनिवार्य है। इस दो दिवसीय सम्मेलन का उद्देश्य वैदिक विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में विशेषज्ञों और शिक्षाविदों के एक दल को अगोचर रहे वैदिक विचारों की खोज करने और उन्हें समाज की समकालीन आवश्यकताओं से सम्बद्ध करने के लिए एकत्रित करना है।
ब्रह्मांड के पारलौकिक रहस्यों में गहन शोध करने और सम्पूर्ण सृजन के गहरे सत्य को उजागर करने वाले वेद ज्ञान और प्रज्ञान के कोष हैं, जो कला और वास्तुकला से लेकर विज्ञान, चिकित्सा, स्वास्थ्य संरक्षण और आध्यात्मिकता तक के विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को आच्छादित करते है। वैदिक विचारों के क्षेत्र की खोज एक समग्र जीवन शैली जीने में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है जो अस्तित्व की हमारे आंतरिक और बाह्य शरणस्थलियों का ध्यान रखती है। वेद एकाधिक रीतियों से समाज के लिए हितकारी हैं; चाहे वे उनके स्वर हों, शब्द हों, ध्वनि हो, अर्थ हों और उनके प्रभाव हों, यह तीन पक्षों – शंकर का सिर, बुद्ध का हृदय और जनक के हाथ के संकुल के रूप में आते हैं। दूसरे शब्दों में, यह ज्ञान का संग्रह और करुणा का कोष है जो भेदभाव रहित, सभी की सेवा की उदारता में परिवर्तित हो जाता है।
भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के सलाहकार डॉ मनोज नेसारी ने आगे कहा कि, “आयुर्वेद जीवन का ज्ञान है, और इसलिए यह मात्र एक विज्ञान से बढ़कर है। वेदों के समान आयुर्वेद भी अपौरुषेय है। वस्तुतः आयुर्वेद सिखाता है कि कल्याण स्वास्थ्य से परे है, और यह कल्याण सत्य, दान, समभाव और क्षमा का अभ्यास कर रहे किसी सुखी मनुष्य में प्रकट होता है। इस तरह के स्वास्थ्य और कल्याण को प्रोत्साहित करने के लिए आयुर्वेद के विषय में लोगों को शिक्षित करना अनिवार्य है। एक ओर, जहाँ सरकार सभी के लिए अच्छे स्वास्थ्य की दिशा में कार्य कर रही है, व्यक्तिगत भागीदारी और इस प्रकार के संगठनों का समर्थन प्रमुख रूप से महत्वपूर्ण है। मैं एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए वैदिक विचारों पर सम्मेलन आयोजित करने के लिए श्री सत्य साई मानव अभ्युदय विश्वविद्यालय की सराहना करता हूं।”
इस सम्मेलन का उद्देश्य शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आध्यात्मिक स्वास्थ्य और कल्याण पर वैदिक विचारों को समझना और समेकित करना; स्वस्थ समाज के लिए आयुर्वेदिक स्वास्थ्य प्रथाओं के बारे में सीखना तथा शिक्षा के वैदिक दृष्टिकोण, इसके सिद्धांतों, उद्देश्य और विद्यालयी शिक्षा प्रणाली में अंतर्दृष्टि प्राप्त करना था।
विश्वविद्यालय के संस्थापक, सद्गुरु श्री मधुसूदन साई ने अपने उद्बोधन में कहा कि, “मेरे लिए, संसार को मुक्त करने के लिये वैदिक ज्ञान को पृथ्वी पर प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाने के अतिरिक्त कोई और उपाय नहीं है। संसार में अच्छाई फैलाने के लिए; वेदों का ज्ञान, जो हमारे स्वयं के परम-आत्म का ज्ञान है, उसे प्रत्येक मनुष्य तक पहुँचाना है। भारतीय होने के कारण, हमारे पास यह वैदिक ज्ञान होने से हम सौभाग्यशाली हैं, जो हमें उन संतों और ऋषियों से प्राप्त हुआ है, जिन्होंने स्वयं इस ज्ञान का अनुभव किया था। हमारे दैनिक जीवन में वेदों के ज्ञान का अभ्यास करना निश्चित रूप से संसार की सभी समस्याओं को हल करने का एकमात्र उपाय है”।
यह समय की आवश्यकता है कि वेदों के सत्यों को न केवल सीखें, अपितु उन्हें उचित रीति से समझें और व्याख्या करें, उन्हें अपने दैनिक जीवन में लागू करें और इस प्रकार वैदिक ज्ञान को आधुनिक समाज के लिए प्रासंगिक बनाएं।