आज कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी की अध्यक्षता में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस दिवस मनाया गया। इस उपलक्ष्य में इस विश्वविद्यालय के विविध राज्यों में अवस्थित परिसरों ने भाग लिया।
इस उपलक्ष्य में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, मुख्यालय, दिल्ली में नेशनल हार्ट इन्स्टीट्यूट, दिल्ली के जाने माने वरिष्ठ हृदय रोग चिकित्सक डा हरीश द्विवेदी ने इस योग दिवस के एक संगोष्ठी में व्याख्यान देते कहा कि योग की ऐतिहासिकता गीता में श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के संवाद में भी स्पष्टत: पढ़ा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा है महर्षि पतंजलि ने इसकी दार्शनिक स्थापना की। उनका मानना था कि अपने कार्यों को कुशलता पूर्वक करना ही योग है और यह उत्तम जीवन शैली है। इससे मनुष्य का जीवन बहुत ही अच्छा बनाया जा सकता है। उन्होंने योग दर्शन के प्रणायाम तथा अनुलोम – विलोम यौगिक क्रियाओं के महत्त्व को बताते हुए कहा कि इसने कोविड-19 महामारी में भी जीवनोपयोगी प्रमाणित हुआ है। डा द्विवेदी के अनुसार योग से न्यूरांस अर्थात चेतना अंश प्रखर हो उठता है। उन्होंने विशेष कर युवा वर्ग को संबोधित करते कहा कि गीता में जो युक्ताहारविहार की बात की गयी है, उसका संदर्भ शाकाहार से भी है और यह जानने की बात है कि मांसाहार से लगभग सात प्रकार के कैंसर की पूरी संभावना बनी रहती है। ध्रुमपान में लगभग सात हजार तरह के विष छुपे होते हैं ।उसमें एक पदार्थ तारकोल (जो सड़क निर्माण के प्रयोग में लाया जाता है) जैसा भी है।
उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम तथा मैट्रो मैन ई. श्रीधरन जैसे अनेक नामों को बताते कहा कि इन लोगों ने अपने जीवन में योग क्रिया के लिए सदा सक्रिय रहे। अतः उनके जीवन से हमें सीख लेनी चाहिए। इसका भी ध्यान रहे कि जो व्यक्ति अपने जीवन में योग का महत्व नहीं देता उसके जीवन में बहुत ही अधिक तनाव तथा अवसाद बना रहता है। उस कारण वे कभी कभी अपने जीवन से भी खिलवाड़ कर बैठते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारतवर्ष में प्रत्येक छियानवें मिनट पर एक भारतीय की मृत्यु हृदय रोग से होती है। अतः जरुरी है कि हमें योग पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए जैसे हम अपना एलआईसी किस्त चुकाना नहीं भूलते हैं।
कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने इस अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर अपनी हार्दिक शुभकामना व्यक्त करते कहा कि योग आज दुनिया की मांग है। अतः इस विद्या के माध्यम से हम उत्तम वैश्विक स्वास्थ्य चिन्तन को साकार कर सकते हैं। साथ ही साथ इसके बल पर भी संस्कृत की जीवन उपयोगिता को विश्व पटल पर फिर से रख सकते हैं। कुलपति प्रो वरखेड़ी ने डा द्विवेदी को उनके महत्त्वपूर्ण व्याख्यान के लिए धन्यवाद देते स्पष्ट किया कि वर्तमान सरकार ने योग विद्या को वैश्विक बनाने के लिए सार्थक पहल किया है। विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो रणजीत कुमार बर्मन ने कहा कि इस तरह के व्याख्यान से योग को लेकर जनमानस में और लोकप्रियता बढ़ेगी।
प्रो बनमाली बिश्वाल, डायरेक्टर एकेडमिक अफेयर्स ने संगोष्ठी तथा डा द्विवेदी के विषय में परिचय दिया। डा मधुकेश्वर भट्ट, प्रभारी उपनिदेशक वित्त विभाग ने मंच संचालन किया तथा प्रो पवन कुमार, प्रभारी परीक्षा नियंत्रक के धन्यवाद ज्ञापन के साथ व्याख्यान का समापन हुआ ।
ध्यातव्य है कि यह बैठक प्रत्यक्ष तथा आभासी दोनों माध्यमों से आयोजित किया गया। डा मन्था श्रीनिवासु, परियोजना अधिकारी तथा उनके आई.सी.टी. के तकनिकि सहयोगियों के द्वारा संगोष्ठी के आभासी माध्यम को संपन्न किया गया।