टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (25 मई 2022): भारतीय राजनीति में और खास तौर पर सियासी गलियारों में धर्म को लेकर एक नई विवाद छिड़ गई है। कभी आजान को लेकर तो कभी हनुमान चालीसा को लेकर , कभी हनुमान जयंती के शोभायात्रा तो कभी ज्ञानवापी को लेकर चर्चा और सियासत गरमाई रहती है।
इस पूरे चर्चा में एक पक्ष द्वारा कथित तौर पर यह भी दावा किया जा रहा है कि भारतीय इतिहास का ग़लत लेखन किया गया है, इसपर एक धर्मविशेष का प्रभाव है। इसका पुनर्लेखन आवश्यक है।
लम्बे अरसे के बाद न्यायालय के आदेश पर बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का विवाद अपने नतीजे पर पहुंचा था, लेकिन अब देश मे एक नई बहस शुरू हो गई है। अब मामला बाबा भोलेनाथ के धाम शिवनगरी वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद का है, जो न्यायालय में है।
इसी बीच दिल्ली के कुछ हिन्दू संगठनों ने कुतुबमीनार को विष्णु स्तम्भ बताया था और न्यायालय से इसमें पूजा करने की अनुमति मागीं थी। लेकिन सुनवाई के दौरान न्यायालय ने इसे स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है।
यह कोई धार्मिक स्थल नहीं है,इसकी मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने मंगलवार को दिल्ली की एक अदालत में कुतुबमीनार के अंदर हिन्दू और जैन के देवी-देवताओं के मूर्तियों को पुनर्स्थापित करने वाले याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह कोई धार्मिक स्थल नहीं है,बल्कि यह एक स्मारक है और इसकी मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता है।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता से कहा
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से न्यायालय ने कहा कि दक्षिण भारत मे। कई ऐसे स्मारक हैं जिसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है और उपासना स्थल नहीं है। न्यायाधीश ने पूछा”अब आप चाहते हैं कि स्मारक को एक मंदिर में बदल दिया जाए। मेरा सवाल यह है कि आप ऐसी किसी चीज की बहाली के लिए कानूनी अधिकार का दावा कैसे कर सकते हैं, जो 800 साल पहले हुई है।”
अतिरिक्त जिला न्यायाधीश निखिल चोपड़ा ने याचिका पर फैसला को नौ जून तक के लिए सुरक्षित रखा है।।