टेन न्यूज नेटवर्क
नोएडा (16 फरवरी 2022): हम सभी जानते हैं कि दिल्ली एनसीआर एवं आस पास के शहरों के लिए प्रदूषण एक बड़ी समस्या है,अगर हम आंकड़े की बात करें तो आए दिन देखते हैं कि एयर इंडेक्स की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।सरकार , प्रशासन , प्राधिकरण , नगर निगम आदि इस समस्या से निजात पाने के लिए कई प्रयास कर रही है लेकिन वो प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।ऐसे में वीर चक्र विजेता, फ्लैट ओनर्स फेडरेशन गाजियाबाद के अध्यक्ष कर्नल तेजेन्द्र पाल त्यागी ने राज्य एवं केंद्र के सम्बंधित सभी आला अधिकारियों को पत्र लिखकर प्रदूषण की समस्या से निजात पाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
सबसे पहले उन्होंने कहा कि प्रदूषण के लिए पराली या सड़क के धूल, ईंट भट्ठे नही बल्कि स्थानीय कारण बेतरतीब विकास जिम्मेदार है, नगर निगम द्वारा खुले में कचड़ा डंप करना ,प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय में बेलगाम भ्रष्टाचार और औद्योगिक क्षेत्र में पौधारोपण ना होना जिम्मेदार है।
साथ ही उन्होंने अपने पत्र में आगे लिखा है कि वायु प्रदुषण में सबसे ज्यादा खतरनाक कण पी एम् 2.5 (वो कण जो 2.5 माइक्रोमीटर से कम साइज़ के होते हैं ) हैं I ये कण मनुष्य की नाक के बालो से रुकते नही हैं और फेफड़ो में जाकर जम जाते हैं जिससे फेफड़े की केपेसिटी कम हो जाती है | वर्तमान में दुनिया में ऐसा कोई इलाज नही है जो फेफड़े की केपेसिटी को पुन : ठीक कर सके | इतना ही नही , अभी हाल में अमेरिका की एक शोध में पाया गया है की यदि PM 2.5 में एक माइक्रोग्राम की वृधि होती है तो कोरोना से मरने वालों की संख्या में 8 प्रतिशत की वृधि होती है | इटली की एक शोध में भी ये खुलासा हुआ था की जिस शहर में कोरोना से मरने वालों की संख्या अत्याधिक थी वहाँ पी एम् 2.5 भी अत्याधिक था |
पी एम् 2.5 मुख्यत : वाहनों के धुएं और बायोमॉस के जलाने से पैदा होता है | एक शोध में यह भी खुलासा हुआ है की वर्तमान में बायोमॉस के जलाने से वायु प्रदूषण के AQI में केवल चार प्रतिशत का योगदान है | ओसतन यह मात्रा करीब 15 प्रतिशत है | अर्थात वायु प्रदूषण में पी एम 2.5 मुख्यत : वाहनों के धुएं से पैदा होता है | ऐसे में यह कह देना की लुधियाना में पराली जलाने के कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का प्रदूषण स्तर बढ़ गया , तर्क संगत नही हैं।
क्या है प्रदूषण से निजात के मुख्य सुझाव
अधिकतर उद्योग अपने कचड़े का उचित प्रबंधन नही करते है, जिस कारण से यह समस्या हो रही है। यदि हम ईटीपी का निरीक्षण करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में शामिल हो जाते हैं, तो पाया जाता है की सूचना संबंधित उद्योग को अग्रिम में ही लीक कर दी जाती है। यदि सिविल सोसाइटी को ई.टी.पी का औचक निरिक्षण करने का केवल एक वर्ष तक अधिकार दे दिया जाये तो उद्योगों से पैदा होने वाला प्रदुषण कम हो जायेगा।
सभी बड़े शहरों में सीएनजी की बसें चलाई जाए एवं बड़े शहरों की मुख्य सड़क पर 2000 सीसीटीवी कैमरे लगाये जाएँ ।
श्मशान घाटों पर मोक्षदा प्रणाली को लागू करें
लगभग 7 फीट लम्बे 3 फीट चोडे और 3 फीट ऊँचे लोहे के बक्से की कल्पना करें जिसके दोनों तरफ खुले पल्ले हों और ऊपर चिमनी लगी हो । जब इस बॉक्स के अंदर मृत शरीर जलाया जाता है तो दो तिहाई गर्मी चिमनी में ही रह जाती है और अंतिम संस्कार एक तिहाई लकड़ी में हो जाता है। यह दो तिहाई पेड़ों को बचाता है। खुले पल्ले होने के कारण , अंतिम रीती रिवाज भी पूरी तरह निभाए जा सकते हैं | श्मशान ग्राउंड्स पर यह व्यवस्था लागू करनी चाहिए I
साथ ही उन्होंने कहा कि शहर में कार फ्री डे मनाया जाए एवं अन्य जागरूकता अभियान चलाया जाए। कचड़े का पुनरावृत्ति (रिसायकल) कर भी प्रदूषण फैलने से बचाया जा सकता है।
ई-कचरे के लिए संग्रह केंद्र :-
भारत में प्रति वर्ष करीब 20 लाख मैट्रिक टन ई वेस्ट पैदा होता है | इसका 10 प्रतिशत औपचारिक रिसाइकलिंग सेंटर्स पर जमा होता है और 90 प्रतिशत अनौपचारिक तरीके से निस्तारित किया जाता है |
वर्टीकल गार्डनिंग : वायु प्रदूषण कम करने के लिए भारत Standard VI वाली गाड़िया ही इस्तेमाल करनी चाहिए चूँकि उनके धुएं में सल्फर और नाइट्स आक्साइड कम होता हैं,पैड़ी को नही जलाना चाहिए,व्यक्तिगत सवारी का कम से कम उपयोग करना चाहिए , निर्माण कार्य बंद कर देने चाहिए अथवा कम कर देने चाहिए , ईट भट्टे बंद कर देने चाहिए , डीजल जनरेटर सेट हटा दिए जाने चाहिए ,पराली नहीं जलानी चाहिए-ये सब बाते नकारात्मक हैं चाहे सही भी हो |परन्तु इनका असर आने तक बहुत लोग अपने जीवन के स्वस्थ वर्ष खो चुके होंगे।
उन्होंने कहा कि इन उपायों को सुचारू ढंग से कार्यान्वित करने के लिए ना तो हमें बहुत अधिक बजट की आवश्यकता है और ना ही बहुत बड़े तंत्र की, और आसानी से हम प्रदूषण की समस्या से निजात पाने में सफल हो पाएंगे।।