कहाँ से हुई कलियुग की शुरुआत

New Delhi (03/01/2022): पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ में महाभारत कालीन रहस्यों के अलावा और भी बहुत सारे ऐसे रहस्य व पौराणिक महत्व वाले स्थल छिपे हुए हैं जिनके बारे में शायद ही लोग जानते हैं , पौराणिक कथाओं के मुताबिक अधिकतर लोग जानते हैं कि द्वापर युग के बाद कलयुग की शुरुआत हुई लेकिन यह बहुत कम लोग जानतें हैं कि कलयुग की शुरुआत किला परिक्षितगढ़ मेरठ स्थित श्रृंगी ऋषि के आश्रम से हुई थी ..

द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने कौरवों को पराजित कर हस्तिनापुर(मेरठ) पर राज किया था वहीं अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र परिक्षित को नए राज्य का राजपाठ दिया गया था, राजा परिक्षित के नाम पर उस राज्य का नाम परिक्षितगढ़ पड़ गया था, जहां महाभारत काल की कई यादें आज भी देखी जा सकती है ।
बताया जाता है कि धर्म राज युधिष्ठिर राजपाठ परिक्षित को सौंपकर सभी पांडवों और रानी द्रोपदी के साथ महाप्रयाण के लिए हिमालय पर्वत पर चले गए, इसी दौरान धर्म भी बैल का रूप धारण कर सरस्वती नदी के किनारे गाय के रूप में बैठी पृथ्वी देवी से मिलने गए थे. पुराणों के मुताबिक बैल-गाय रूपी धर्म और पृथ्वी देवी के बीच बातचीत के दौरान पृथ्वी बहुत दुःखी थी उनकी आंखों से आंसू छलक रहे थे । धर्म ने आंसुओं का कारण पूछा तो पृथ्वी ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण के स्वधाम चले जाने के बाद कलयुग ने मुझ पर कब्जा कर लिया है ।

पृथ्वी ने कहा कि श्रीकृष्ण सत्य, संतोष, ज्ञान, दया, त्याग, शौर्य, तेज, ऐश्वर्य, धैर्य, साहस, कीर्ति, स्थिरता, निर्भीकता एवं अहंकार हीनता के स्वामी थे, जब भी भगवान श्रीकृष्ण के चरण मुझ पर पड़ते थे तो मैं अपने आपको शौभाग्यशाली मानती थी, लेकिन उनके स्वधाम जाने के बाद मेरा सौभाग्य भी समाप्त हो गया है
पौराणिक कथाओं में कलयुग की शुरुआत द्वापर युग के अंत से माना गया है,  अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र राजा परिक्षित का जब कलयुग से संवाद हुआ तो द्वापर युग अंत होने की बात कही और अपने आगमन के संकेत दिए ।

राजा परीक्षित ने कलयुग को असत्य, मदिरा, काम और स्वर्ण ये चार स्थान बताएं और कहा कि जिस जगह पर इन चारों की उपस्थिति हो वहीं कलयुग को रहने का आदेश दिया था, करीब 5000 साल पूर्व राजा परिक्षित की मृत्यु के बाद किला परीक्षितगढ़ की धरती से कलयुग का अवतरण हुआ था । जहां श्रृंगी ऋषि का आश्रम बना हुआ है वहीं हजारों वर्ष प्राचीन गूलर का विशाल वृक्ष आज भी श्रृंगी ऋषि के आश्रम में मौजूद है , सबसे पहले इस गूलर के पेड़ पर ही कलयुग आकर रुका था, जहां उसने द्वापर युग के अंत का इंतजार किया था , आश्रम के एक कोने में गूलर के उस वृक्ष पर ही कलयुग का उदय हुआ था ।

हज़ारों वर्ष बीत जाने पर भी किला परिक्षितगढ़ का न तो नाम बदला है और न ही लोगों की श्रद्धाभाव यह ऋषि मुनियों की पावन तपोभूमि है इसकी रज ने उनके तप का तेज पाया है श्रीकृष्ण के चरणकमलों से यह भूमि पावन हुई है कृष्ण द्वैपायन व्यास ने महाभारत महाग्रंथ के उत्तरार्द्ध की रचना कर इस भूमि का माहात्म्य बढ़ाया है ।

उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित महाभारत कालीन नगरी जिसका नाम किला परिक्षितगढ़ राजा परीक्षित के नाम पर पड़ा है,
यह कहानी राजा परिक्षित की सर्पदंश से हुई मृत्यु से शुरू होती है. राजा परिक्षित उत्तरा और अभिमन्यु के पुत्र थे जिनको कृष्ण ने अश्वत्थामा द्वारा चलाये गए ब्रम्हास्त्र से बचाया था ।

परिक्षित का पालन-पोषण भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण द्वारा किया गया था, परिक्षित का नाम परिक्षित इसीलिए पड़ा क्योंकि वह सभी के बारे में यह परीक्षण करते थे कि वह कहीं उस आदमी से अपनी मां के गर्भ में ही तो नहीं मिला था ।

सांप की कहानी की शुरुआत तब होती है जब राजा परीक्षित जंगल का भ्रमण करते हुए ऋषि शमीक की कुटिया में पहुंचे थे, परिक्षित प्यास से व्याकुल थे और उन्होंने ध्यान लगाये हुए ऋषि शमीक को कई बार बड़े आदर भाव से जगाना चाहा, पर ऋषि का ध्यान ना टूटा, अंत में उन्होंने एक मरे हुए सांप को ऋषि के ऊपर डाल दिया ।
इस घटना के बाद ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने राजा परिक्षित को श्राप दिया कि वह 7वें दिन ही एक सांप द्वारा दंश किये जायेंगे और उनकी मृत्यु हो जायेगी,

श्रृंगी ऋषि आश्रम में आज भी जो मूर्ति श्रृंगी ऋषि की है उसमें सांप लटका हुआ नजर आता है, यहां आज भी वह अलौकिक वृक्ष मौजूद है जिसके नीचे बैठकर श्रृंगी ऋषि तपस्या किया करते थे, यहां आज भी हवन कुंड मौजूद है जहां ऋषि तपस्या किया करते थे और यहां आज भी वह कुआं मौजूद हैं जिसका जल ऋषि गृहण करते थे ।
आज भी यह माना जाता है कि इस सरोवर के जल से यदि स्नान किया जाये तो चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है लेकिन जितना जल कोई सरोवर से ले जाता है तो उसे उतना ही दूध सरोवर में अर्पित करना का नियम प्राचीन काल से चला आ रहा हैं ,

मेरठ एक ऐसा स्थल है जिसके कण कण में प्राचीन इतिहास के साक्ष्य छिपे हुए है मेरठ परिक्षेत्र का गौरवशाली इतिहास सिंधु घाटी की सभ्यता, रामायण और महाभारत काल से जुड़ा हुआ है क्रांतिधरा साहित्य अकादमी अपने वार्षिक अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक आयोजन मेरठ लिटरेचर फेस्टिवल के माध्यम से इस गौरवशाली इतिहास को देश दुनिया से रूबरू कराने के लिए संकल्पबद्ध है ।

 

By डा विजय पंडित
मेरठ, उत्तर प्रदेश