लेखक:
कृतिका खत्री
सनातन संस्था, दिल्ली
यह व्रत गतवैभव को प्राप्त करने के लिए किया जाता है । किसी के द्वारा बताने पर या अनंत का धागा मिलने पर किये जाने वाले इस व्रत के विषय में इस लेख में, हम अधिक जानकारी जानकर लेंगे ।
भाद्रपद शुद्ध चतुर्दशी वह तिथि है जिस दिन अनंत चतुर्दशी का व्रत किया जाता है (इस वर्ष यह 19 सितम्बर को है)। जिसका कभी अस्त नहीं होता और कभी अंत नहीं होता वो अनंत और चतुर्दशी अर्थात चैतन्य रुपी शक्ति ।
यह व्रत मुख्य रूप से गत वैभव को पुनः प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
इस व्रत की विधि यह है कि इस व्रत के मुख्य देवता अनंत यानी भगवान विष्णु हैं और अन्य देवता शेष और यमुना हैं। इस व्रत की अवधि चौदह वर्ष की होती है। किसी के द्वारा बताने पर या अनंत का धागा आसानी से मिल जाने पर यह व्रत शुरू करते हैं और फिर यह उस कुल में जारी रहता है। अनंत की पूजा में चौदह गांठों वाली लाल रेशमी धागे की पूजा की जाती है। पूजा के बाद मेजबान के दाहिने हाथ में धागा बांध दिया जाता है । चतुर्दशी पूर्णिमा युक्त होने से वो विशेष लाभकारी रहती है ।
अनंत व्रत के दिन का महत्व, साथ ही इस व्रत में दर्भ का शेषनाग कर के उसका पूजन करने का कारण – अनंत का व्रत करने का दिन अर्थात देह के चेतना स्वरूप क्रिया शक्ति, श्री विष्णु रुपी शेषगण के आशीर्वाद से कार्यरत करने का दिन, इसलिए इस व्रत को महत्व प्राप्त हुआ है । ब्रह्मांड में इस दिन श्री विष्णु के पृथ्वी, आप, तेज इस स्तर पर क्रिया शक्ति रुपी लहरें कार्यरत रहतीं हैं । श्री विष्णु की उच्च लहरें सामान्य भक्त को ग्रहण करना असम्भव होने के कारण कम से कम कनिष्ठ स्वरूप की लहरियों का सामान्य जन को लाभ हो इसलिए यह व्रत हिंदू धर्म में बताया गया है । शेष देवता को श्री विष्णु तत्व से संबंधित पृथ्वी, आप और प्रकाश की तरंगों का सबसे अच्छा वाहक माना जाता है; इसलिए इस अनुष्ठान में शेष को प्रमुख स्थान दिया जाता है।चूंकि इस दिन ब्रह्मांड में कार्यरत क्रिया शक्ति की तरंगें एक सर्पिल के रूप में होने से शेष रूपी देवता के पूजन से इन तरंगों को उसी रूप में जीव को प्राप्त करना संभव होता है।
यदि आप मानव शरीर से संबंधित क्रिया शक्ति के कार्य को जानना चाहते हैं, तो यह नीचे दिया गया है।
1. शरीर में क्रिया शक्ति, चेतना के रूप में, जीवित प्राणी के रूप में, पृथ्वी के स्तर पर स्थूल शरीर की जड़ता को बनाए रखती है। 2. आप तत्व के स्तर पर, यह स्थूल शरीर के आकार का प्रबंधन करती है। तेज के स्तर पर वही शक्ति चेतना की गति को बनाए रखती है।
इस अनुष्ठान में शेष देवता को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि यह क्रिया के स्तर पर उन तरंगों के रूप में मानव शरीर के चेतना की रक्षा करती है।
अनंत में 14 गांठों के धागे का महत्व
‘मानव शरीर में 14 प्रमुख ग्रंथियां होती हैं। इन ग्रंथियों के प्रतीक के रूप में, धागे में 14 गांठें होती हैं।
प्रत्येक ग्रंथि के एक विशिष्ट देवता होते है। इन गांठों पर इन देवताओं का आह्वान किया जाता है।
रस्सियों की गाँठ शरीर में एक ग्रंथि से दूसरी ग्रंथि में बहने वाली क्रिया शक्ति के रूप में चेतना के प्रवाह का प्रतीक है।
मंत्रों की सहायता से 14 गांठों की रस्सी की प्रतीकात्मक रूप से पूजा करके और श्री विष्णु रुपी क्रिया शक्ति के तत्व की धागे /रस्सी में स्थापित कर के ऐसे क्रिया शक्ति से परिपूर्ण रस्सी हाथ में बांधने से देह पूरी तरह शक्ति से भारित होता है।
यह चेतना के प्रवाह को तेज करने और शरीर की कार्य शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।
जीव के भाव के अनुसार यह कार्यबल टिकने की कालावधि अल्प-अधिक होती है। फिर अगले वर्ष पुरानी रस्सियों का विसर्जन कर दिया जाता है और क्रिया शक्ति से भारित नये धागे बांधे जाते हैं ।
इस प्रकार क्रियाशक्ति के रूप में भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में चेतना निरन्तर कार्य करती रहती है और जीवन निरोगी होने के साथ-साथ प्रत्येक कृती और कर्म में बलवान बनता है।’
अनंत व्रत में यमुना पूजन का महत्व
1. यमुना में भगवान कृष्ण ने कालिया रुपी जैसी क्रिया शक्ति के स्तर पर रज तमात्मक आसुरी तरंगों का नाश किया। यमुना के पानी में श्रीकृष्ण तत्व का प्रमाण अधिक है।
अनंत व्रत में यमुना के रूप में जल की पूजा का महत्व और उसके लाभ
1. इस व्रत में कलश में यमुना जी के जल का आह्वान कर श्रीकृष्ण तत्त्व स्वरूपी लहरियों को जागृत किया जाता है ।
2. इस लहरियों के जागृति करने से देह के कालिया रुपी सर्पिलाकार रज-तमात्मक लहरियों का नाश कर के आप तत्व के स्तर पर देह की शुध्दि कर के फिर आगे की विधि को प्रारंभ किया जाता है ।
3. इस कलश पर शेष रूपी तत्व की पूजा की जाती है और कृष्ण तत्त्व, जो कि भगवान विष्णु का रूप है, को जागृत रखा जाता है।’
अनंतपूजन में कद्दू की पूड़ी और वड़े का प्रसाद दिखाने का कारण
‘कद्दू में आप तत्वात्मक रसात्मकता यह क्रिया शक्ति को गति देने वाली रहती हैं । कद्दू में यह भी विशेषता है कि उससे जुड़ी जो सूक्ष्म वायु कोशिकाएं हैं वो ब्रह्मांड में ऊर्जा की तरंगों को स्वयं ही घनीभूत करती हैं। कद्दू की सहायता से बनी पूड़ी और वड़े में पूजा स्थल में कार्यरत क्रिया शक्ति की तरंगें अल्प कालावधी में स्थान बध्द होती है, ऐसे क्रिया शक्ति से भारित प्रसाद ग्रहण करने से देह में भी उस प्रकार का पूरक वायुमंडल निर्माण होने में सहायता होती है । इसलिए अनंत की पूजा में कद्दू की पूड़ी और वड़ा इसका भोग चढ़ाते हैं ।