आज पूरे संसार में ” कोरोना ” का आतंक छाया हैं, हमारा देश भी इस भीषण आपदा से जूझ रहा हैं.. आज हम एक अजब से संघर्ष में फंसे हैं.. यह संघर्ष कई मुद्दों पर हैं.. कहीं मानवता का चरम शिखर दिखता हैं तो कहीं ” तार – तार ” होती मानवता और मानवीय मूल्यों की वीभत्स तस्वीर दिखती हैं, यह तो सच हैं हमने अपने वर्तमान से बहुत कुछ खो दिया हैं.. लेकिन विचार करें तो लगेगा कुछ पाया भी हैं.. अनुभव.. सीख.. कुछ भूले “सबक”.. आँखों पर पड़े कुछ पर्दो का हटना.. अपने धैर्य.. सहन शक्ति.. जुझारू प्रवृत्ति का आकलन.. अपनी संघर्ष क्षमता आदि के आकलन पर अद्भुत.. अकल्पनीय परिणाम आज हमारे समक्ष आये हैं..
इस कोरोना काल में हमने क्या खोया..क्या पाया..?
इसी विषय पर एक परिचर्चा गूगल मीट पर आनलाईन काव्यसृजन परिवार द्वारा दिनाँक -२०-५-२०२१ दिन गुरुवार को शाम ६ बजे से रखी गई|
जिसमें देश के कई लब्धप्राप्त विद्वानों ने अपने विचार रखे, साथ ही अच्छी संख्या में देश के अनेक स्थानों से समाज के अन्य प्रबुद्ध बन्धु श्रोता गणों के रूप में भी उपस्थित रहे
अपने विचार रखने वाले विद्वान सर्वश्री पं.शिवप्रकाश जौनपुरी,आनंद पाण्डेय “केवल” ,अरुण दीक्षित,मनिंदर सरकार,रमेश महेश्वरी “राजहंस”,डॉ श्रीहरि वाणी,हौंसिला प्रसाद अन्वेषी,डॉ भावना दीक्षित,इंदू मिश्रा,रश्मिलता मिश्रा,छोटेलाल कुंटे,श्रीधर मिश्र,सुरेन्द्र दूबे,मुकेश कबीर,सौरभ दत्ता जयंत,प्रा.अंजनी कुमार द्विवेदी आदि रहे|
डॉ श्रीहरि वाणी जी के मार्गदर्शन, डॉ भावना दीक्षित जी की अध्यक्षता में आयोजित परिचर्चा का सौरभ दत्ता “जयंत” जी ने सुन्दर और संतुलित संचालन किया| सभी विद्वानों ने अपने अनुभव साझा किये| क्या खोया..? जहाँ इस पर विचार रखे तो वहीं क्या पाया…? इस पर भी खुलकर अपने विचार रखे| लगभग तीन घंटे से अधिक चले इस आयोजन की समीक्षा जब डॉ भावना दीक्षित जी अपने अध्यक्षीय उद्वोधन में की तो मानो जैसे पूरे आयोजन का सार अंश मिल गया, उन्होंने एक – एक विद्वानो की मुख्य बातों को इंगित करते हुए अपना सुन्दर – सारगर्भित वक्तव्य देकर काव्य सृजन परिवार के सफल आयोजन पर जैसे मुहर लगा दीं |
अंत में प्रवक्ता आनंद पाण्डेय “केवल” जी ने सभी विभूतियों का आभार प्रकट करते हुए आने वाले आयोजनों में सबसे सहयोग का निवेदन किया|