कोरोना महामारी के प्रकोप के बाद, कल भारत सरकार का पहला बजट घोषित हुआ। ज़ाहिर है, बजट से ख़ासी उम्मीदें थीं और कुछ बड़े फैसलों का इंतजार भी था। पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से लड़ाई की नज़र से देखें, तो इंतज़ार था एक ऐसे बजट का जिसमें इन विषयों को प्राथमिकता दी जाये और अब तक उपेक्षित जन स्वास्थ्य के क्षेत्र को वरीयता मिले।
बजट के बाद आज तसल्ली इस बात की है कि इन सभी विषयों पर सरकार ने संवेदनशीलता दिखाई और प्राथमिकता भी दी।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में रु 2,23,846 के आवंटन के साथ, पिछले साल के मुकाबले बजट में 137 फ़ीसद की बढ़ोतरी घोषित की गयी है जो की अभूतपूर्व है। साथ ही बात ऊर्जा क्षेत्र की करें तो वायु प्रदूषण में अपने योगदान के लिए मशहूर इस क्षेत्र में, डिस्कॉम रिवाइवल और स्ट्रेस्ड एसेट्स पर भी ध्यान केंद्रित किया है। केंद्रीय बजट में रिन्यूएबल्स से लेकर हाइड्रोजन और यहां तक कि उपभोक्ता के पास अपनी बिजली कम्पनी चुनने का विक्प देने की भी बात की गयी है। इससे विद्युत वितरण कंपनियों के बीच प्रतिस्पबर्धा बढ़ेगी और सीधे तौर पर उपभोक्ताहओं को फायदा मिलेगा।
आगे, जहाँ सौर ऊर्जा निगम को 1,000 करोड़ रुपये मिले, वहीँ नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी को 1,500 करोड़ रुपये का बजट मिला।
भारत पर वायु प्रदूषण का कहर जग ज़ाहिर है। इस समस्या से निपटने के लिए 10 लाख से अधिक जनसंख्या, वाले 42 शहरी केन्द्रों के लिए 2,217 करोड़ रुपये की राशि मुहैया कराने का फैसला लिया गया है। यही नहीं, सरकार ने गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए पुराने और अनुपयुक्त वाहनों को हटाने के लिए एक स्वैयच्छिक वाहन स्क्रैपिंग नीति की बात भी की है।
वैश्विक ट्रेंड्स की तर्ज़ पर 2021-22 में एक वृहद हाइड्रोजन एनर्जी मिशन शुरू करने का भी फैसला हुआ है।
इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए, क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक, आरती खोसला, कहती हैं, “बजट में अनेक ऐसे संकेत हैं जो इशारा करते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा पेश किया गया बजट वैश्विक रुझानों के अनुरूप है। भारत में ग्रीन हाइड्रोजन से संबंधित एक नई नीति जल्द ही जारी होने की घोषणा बेहद स्वागत योग्य है। जर्मनी तथा यूरोपीय संघ के अन्य अनेक देश पहले ही महत्वाकांक्षी ग्रीन हाइड्रोजन नीति तैयार कर चुके हैं। यहां तक कि जलवायु संबंधी कार्यवाही में परंपरागत रूप से पिछड़े माने जाने वाले संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने भी ग्रीन हाइड्रोजन की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। बजट में कोयला खनन के लिए आवंटित होने वाले धन में कमी किया जाना भी एक अच्छा संकेत है। इस बार बजट में पिछले बजट की तुलना में कोयला खनन के लिए आवंटित धन में 30% की कटौती की गई है।”
लेकिन आईईईएफए की सीनियर एनर्जी इकानमिस्ट, विभूति गर्ग, की नज़र में ये बजट पर्यावरण संबंधी प्रावधानों के लिहाज़ से मिला-जुला है। वो कहती हैं, “ऊर्जा के क्षेत्र में सरकार ने जहां एसईसीआई और आईआरईडीए को और अधिक धन देने का ऐलान किया है, वहीं सौर लालटेन और इनवर्टर पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाई है, ताकि घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को मजबूती मिल सके। साथ ही नेशनल हाइड्रोजन मिशन भी शुरू करने का ऐलान किया है। मगर बजट में दक्षतापूर्ण तरीके से काम नहीं कर रहे कोयला बिजलीघरों को बंद करने के बारे में किसी योजना का जिक्र नहीं है।”
विभूति आगे कहती हैं, “परिवहन क्षेत्र में सार्वजनिक बस सेवा को मजबूती देने के लिए धन तो आवंटित किया गया है लेकिन इस बात का जिक्र नहीं है कि वह वाहन इलेक्ट्रिक होंगे या नहीं।”
आगे, सार्वजनिक परिवहन के बारे में डब्ल्यूआरआई इंडिया के सीईओ डॉक्टर ओ पी अग्रवाल कहते हैं, “विनिर्माण और समावेशी विकास बजट 2021-22 के छह स्तंभों में से एक है। इसमें सार्वजनिक परिवहन को तरजीह दी गई है। नगरीय इलाकों में सार्वजनिक परिवहन की बसों के लिए 18000 करोड़ रुपए का आवंटन, ब्रॉड गेज रेल पटरियों के 100% विद्युतीकरण और वर्ष 2030 तक रेलवे की साजो सामान संबंधी लागतों को कम करने तथा छोटे शहरों के लिए मेट्रो लाइट और मेट्रो नियो सेवाएं शुरू करने के ऐलान पर अमल से लोगों के आवागमन के तौर-तरीकों में बदलाव होगा। इससे हमारी हवा की गुणवत्ता सुधरेगी, सड़कों पर जाम कम होगा और भविष्य के लिए एक समान नगरीय ढांचा तैयार होगा।”
“बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने भारत के लिए सौर ऊर्जा का अपना वादा दोहराया है। साथ ही सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और इंडियन रिन्यूएबल डेवलपमेंट एजेंसी में अति आवश्यक अतिरिक्त पूंजी के जरिए इस वादे पर अमल की दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी बढ़ाया गया है,” ये कहना है नेचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल के इंडिया प्रोग्राम में प्रमुख एनर्जी एक्सेस एंड क्लाइमेट पॉलिसी कंसलटेंट मधुरा जोशी का।
ग्रीन हाइड्रोजन के विषय में घोषणा सुन कर डब्ल्यूआरआई इंडिया की जलवायु शाखा की निदेशक उल्का केलकर ख़ासी, उत्साहित हैं। वो कहती हैं, “यह न सिर्फ स्टील तथा सीमेंट जैसे भारी उद्योगों को डीकार्बनाइज करने के लिए जरूरी है बल्कि यह उस स्वच्छ इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो दुर्लभ खनिजों पर निर्भर नहीं करता।” आगे, रेलवे की लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिए भारतीय रेल के डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर को सहयोग देने के ऐलान पर उल्का कहती हैं, “यह पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से भी दूरदर्शितापूर्ण कदम है, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के साथ माल ढलाई को सड़क से रेल पटरी पर लाए जाने से प्रदूषण घटेगा और तेल पर निर्भरता में भी उल्लेखनीय कमी लाई जा सकेगी।”
डब्ल्यूआरआई इंडिया में उल्का के सहयोगी और वायु गुणवत्ता शाखा के निदेशक डॉक्टर अजय सिंह नागपुरे कहते हैं, “बजट 2021-22 में हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए आवंटित धन में वर्ष 2020 में आवंटित 4400 करोड़ रुपए के मुकाबले कमी देखी गई है। पिछले साल संबंध में जारी किया गया धन स्थानीय नगरीय इकाइयों द्वारा काफी हद तक खर्च नहीं किया गया। इस साल राज्यों तथा शहरों द्वारा क्षमता विकास के लिए किए गए सामूहिक प्रयासों से धन को दक्षता पूर्ण तरीके से इस्तेमाल करने में मदद मिलेगी और बदलाव को जमीन पर उतारने में भी आसानी होगी।”
कुल मिलाकर अगर कहा जाए तो इस बजट में पर्यावरण को यक़ीनन एक मौका ज़रूर मिला है। हाँ, इसमें कोई दो राय नहीं कि करने को बहुत कुछ अब भी है, लेकिन पर्यावरण की नज़र से देखें तो इन सकारात्मक फ़ैसलों का स्वागत ज़रूर करना चाहिए।