विनोद पाण्डेय.
खतरा अब भी बढ़ा हुआ है
द्वार कोरोना खड़ा हुआ है
वहीँ सुरक्षित है जो अपने
घर के अंदर पड़ा हुआ है
ईश्वर की इच्छा भी है यह
और खुदा की भी मंजूरी ||
धंधा-पानी मंद हो गया
माना कुछ पाबंद हो गया
रोजी-रोटी के खातिर भी
बाहर जाना बंद हो गया
किन्तु न जीवन से बढ़कर कुछ
पा लोगे कितना मजदूरी ||
कुछ दिन छोड़ो सैर सपाटा
करो दूर से सबको टाटा
कुछ दिन छोड़ो पिज़्ज़ा-बर्गर
घर में बैठो ,गूथो आटा
घर की रोटी प्यार से खाओ
और कभी खाना तंदूरी ||
सरकारी फरमान मान लो
जीवन सबसे बड़ा जान लो
लॉकडाउन में रहकर घर में
कोरोना से जंग ठान लो
जीत तुम्हारे मन में ही है
जैसे मृगा संग कस्तूरी ||