राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर घिरी मोदी सरकार की नैया पार कराने के लिए अब विदेश राज्यमंत्री वी के सिंह मैदान में उतर चुके हैं। विमान सौदे का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि अंतर सरकार करारों में भागीदार का चयन सरकार द्वारा नहीं किया जाता है। सिंह ने कहा कि सरकार नहीं, उपकरण बनाने वाली कंपनी तय करती है कि आफसेट प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए भागीदार कंपनी कौन सी होगी।
भारतीय वाणिज्य दूतावास में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि यदि फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन को भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की वैमानिकी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लि. (एचएएल) उपयोगी नजर नहीं आई तो इसको लेकर होहल्ला करने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा, जो बात उठ रही है वह यह कि एचएएल को क्या हुआ। यदि मैं व्यंग के लहजे में कहूं तो दसॉल्ट को एचएएल उपयोगी नहीं लगती है, तो हमें हल्ला नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, उपकरण बनाने वाली कंपनी यह तय करती कि आफसेट किसे देना है। ऐसे में यह फैसला दसॉल्ट का था। कई चीजों के लिए उन्होंने विभिन्न कंपनियों का चयन किया। अनिल अंबानी उनमें से एक हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 अप्रैल, 2015 को पेरिस में फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ बैठक के बाद 36 राफेल जेट लड़ाकू विमानों की खरीद की घोषणा की थी। इस सौदे को अंतिम रूप 23 सितंबर, 2016 को दिया गया। इस मामले में विवाद ने उस समय जोर पकड़ा जब ओलांद ने फ्रांसीसी मीडिया में बयान में कहा कि भारत सरकार ने अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम प्रस्तावित किया था और फ्रांस के पास कोई और विकल्प नहीं था।
सिंह ने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि एचएएल के ऊपर पहले की काफी काम का बोझ है और उसे कई चीजें करनी हैं। हो सकता है कि दसॉल्ट ने उनके साथ बातचीत की हो। कहा जा रहा है कि एचएएल के साथ बातचीत 95 प्रतिशत पूरी हो गई थी। ऐसे में पांच प्रतिशत का क्या हुआ। कैसे यह वार्ता टूट गई।