अब राहुल गाँधी नहीं रहे जनेऊधारी हिन्दू

आर्टिकल – चन्द्रपाल प्रजापति

गुजरात में 22 वर्षों का वनवास ख़त्म करने के लिए कांग्रेस ने मंदिरों में खूब पूजा अर्चना की। गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान के दौरान राहुल ने कम से कम 25 मंदिरों में गए । गुजरात चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बराबरी करने की जुगत में राहुल गांधी मंदिर-मंदिर जाने का दिखावा कर रहे थे। जबकि यही राहुल पहले कहते थे कि मंदिर जाने वाले लड़की छेड़ते हैं। गुजरात में चुनाव प्रचार करने पहुंचे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जब सोमनाथ मंदिर में दर्शन करने पहुंचे थे, तब वहां पर विवाद खड़ा हो गया था। मंदिर के रजिस्टर में उनकी गैर हिन्दू के तौर पर एंट्री कराई गई थी। राहुल गांधी के साथ-साथ राज्य सभा सांसद और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की भी एंट्री गैर हिन्दू के तौर पर कराई गई थी । मंदिर के सुरक्षा रजिस्टर में यह एंट्री कांग्रेस के मीडिया कॉर्डिनेटर मनोज त्यागी ने कराई थी । बता दें कि मंदिर के नियमों के मुताबिक गैर हिन्दुओं को रजिस्टर में एंट्री करनी जरूरी होती है। मंदिर में दर्शन के बाद एक रजिस्टर में राहुल व अहमद पटेल के नाम की एंट्री का फोटो सोशल मीडिया में वायरल हुआ था , इसके बाद राहुल के धर्म को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ।

लेकिन गुजरात चुनाव में राहुल को इसका मनमाफिक नतीजा नहीं मिला। राहुल के मंदिर दर्शन का एक मकसद ये दिखाना भी था कि बीजेपी से ज्यादा उनकी पार्टी कांग्रेस हिन्दुओं की हितैषी है। राहुल के इस नए हिन्दुत्व कार्ड को बीजेपी ने सियासी पैंतरा बताते हुए उनके हिन्दू होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया। वहीं कांग्रेस ने इसके जवाब में कहा कि राहुल गांधी हिन्दू ही नहीं, बल्कि जनेऊधारी हिन्दू हैं। हालांकि गुजरात में कांग्रेस का हिन्दुत्व कार्ड काम नहीं आया और विधानसभा चुनाव के नतीजों से बीजेपी राज्य में सत्ता पर काबिज हो गयी। बीजेपी की इस जीत में मणिशंकर अय्यर और कपिल सिब्बल जैसे कांग्रेसी नेताओं के बयान ने भी अहम भूमिका निभाई थी। वहीं पीएम मोदी को लेकर मणिशंकर अय्यर की ‘नीच’ टिप्पणी ने भी कांग्रेस की जड़े खोदने में अहम भूमिका निभाई। अयोध्या विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकार हाशिम अंसारी की तरफ से बतौर वकील पेश हुए कपिल सिब्बल ने जब इस मामले की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव तक टालने की बात कही, तो मानो गुजरात में मुश्किल में घिरी बीजेपी को संजिवनी मिल गई। उन्होंने राम मंदिर को लेकर कांग्रेस पर दोहरा रुख रखने की बात जोर-शोर से उछाली।

नेता सभी मर्यादाओं को लांघ रहे हैं। वे यह नहीं समझते कि उन्हें क्या बोलना है और क्या नहीं। इससे उनकी पार्टी की साख पर भी धब्बा लगता है। गंदी राजनीति और गलत भाषा के प्रयोग पर रोक लगनी चाहिए, जिसके लिए सभी नेताओं को एकजुट होकर शुरुआत करनी होगी ताकि देश प्रदेश के नाम पर धब्बा न लगे। इस परिणाम से स्पष्ट है कि मतदाता विकास को सर्वाधिक महत्व दे रहे हैं जबकि धर्म, जातिवाद और अन्य संकीर्णताओं के आधार पर चुनाव जीतने के नुस्खे अब कारगर नहीं रहे। गुजरात चुनाव में वरिष्ठ नेताओं ने मंदिरों में मत्था टेका, खुद को शिवभक्त घोषित किया, जनेऊ निकालकर दिखाया, पर मतदाताओं ने स्पष्ट कर दिया कि ये बातें उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं। साफ है, लोग राहुल के मंदिर जाने के पीछे के मंसूबों को समझ रहे थे । लोग यह नहीं भूले हैं कि ‘हिंदू आतंकवाद’ या ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे शब्द किसकी देन हैं। यानी राहुल गांधी की मंदिरों की परिक्रमा करने की नीति मतदाताओं को लुभा नहीं पाई ।