काश ! अटल जी की बात मानी होती: विनोद बंसल

प्रखर व्यक्तित्व व उत्तम कृतित्व के धनी, मानवता व विश्व शांति के उपासक, राजनीति के अजात शत्रु, श्रेष्ठ सांसद, पत्रकार, कवि, विचारक, कटु वचनों के मृदभाषी, श्रेष्ठ वक्ता, महान देश-भक्त, स्वतंत्रता सेनानी तथा श्रेष्ठ भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति के महायोद्धा तो थे ही, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्कारों से ओत प्रोत उनका राष्ट्रीय, धार्मिक व आध्यात्मिक जीवन भी श्रेष्ठ व अनुकरणीय था। ऐसे महात्मा को शब्दों में श्रद्धांजलि देना वास्तव में एक बेहद कठिन कार्य है।

श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन हो या मठ-मन्दिरों की मुक्ति के लिए संघर्ष, गौ रक्षा की बात हो या धर्मांतरण पर अंकुश, मुगलों के अत्याचार हों या अंग्रेजों द्वारा शोषण, कश्मीर की समस्या हो या आतंकवाद, पूर्वोत्तर का अलगाववाद हो या केरल व बंगाल में साम्यवादी खून-खराबा, पडौसी देश श्रीलंका की समस्या हो या बांग्लादेशी घुसपैठ का दंश, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद हो या चीनी कहर, गुट निरपेक्ष सम्मलेन की बात हो या संयुक्त राष्ट्र संघ की, देश की सीमाओं की बात हो या सैनिकों के सम्मान की, महिला सशक्तिकरण की बात हो या बाल विकास की, पूर्व प्रधान मंत्री श्री बाजपेयी अपने प्रखर विचारों तथा स्पष्ट कार्य योजना के लिए विश्व विख्यात रहे हैं.

25 दिसम्बर 1925 को दादा पंडित श्याम लाल बाजपेयी, माता कृष्णा देवी व अध्यापक-कवि पिता श्री कृष्ण बिहारी के ग्वालियर स्थित घर में जन्मे श्री बाजपेयी जी ने संस्कारों की पाठशाला सरस्वती शिशु मंदिर से प्राथमिक शिक्षा के उपरांत हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत में विशेष योग्यता के साथ ग्वालियर में स्नातक तथा स्वामी श्रद्धानंद द्वारा स्थापित कानपुर के डीएवी कालेज से प्रथम श्रेणी में राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर किया. उनके सामाजिक जीवन का प्रारम्भ स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित राष्ट्रवादी युवाओं के संगठन आर्य कुमार सभा के साथ प्रारम्भ हुआ जिसके वे 1944 में महासचिव बने.

1939 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयंसेवक बनाने के बाद संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री बाबासाहिब आप्टे की प्रेरणा से भारत की स्वतंत्रता के वर्ष 1947 में वे संघ के प्रचारक बने और घर-बार छोड़ देश व समाज के कल्याण हेतु पूर्णकालिक निकल गए. भारत विभाजन के भयंकर कत्लेआम की विभीषिका को उन्होंने करीब से देखा तथा पंडित दीन दयाल उपाध्याय जी के साथ जुट गए राष्ट्रोत्थान में. उन्होंने मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ व साप्ताहिक ‘पांचजन्य’ के साथ दैनिक अखबार ‘स्वदेश’ (ग्वालियर) तथा वीर अर्जुन (दिल्ली) का सम्पादन कर पत्रकार जगत में भी अनेक कीर्तिमान बनाए. आजीवन अविवाहित रहे श्री बाजपेयी ने एक पुत्री को गोद लिया जिसने अंतिम संस्कार के समय उनके पार्थिव शरीर को मुखाग्नि दी.

अंग्रेजो भारत छोडो आन्दोलन में अपने बड़े भाई ‘प्रेम’ के साथ 23 दिन की जेल यात्रा के साथ ही उनके राष्ट्रीय जीवन का प्रारम्भ हुआ. महात्मा गांधी की ह्त्या के बाद 1948 में संघ पर लगे प्रतिवंध के बाद यह अनुभव किया गया कि संघ के बढ़ते प्रभाव से देश की राजसत्ता परेशान है और हमारी बात रखने वाला संसद में कोई है नहीं इसलिए श्री दीनदयाल उपाध्याय तथा अटल जी के नेतृत्व में भारतीय जन संघ का गठन हुआ. 1954 में डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जब कश्मीर मुद्दे पर आमरण अनशन किया उस समय अटल जी उनके साथ ही थे.

7 नवम्बर 1966 का दिन गौ रक्षा आन्दोलन के इतिहास में अनेक अर्थों में अभूतपूर्व था. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि असंख्य गौभक्तों का वह विशालतम ज्वर न पहले उठा था और न आगे…. संसद भवन के गेट पर ही बने मंच पर अटल जी भी बैठे थे. जैसे ही उस अपार जनसमूह को सम्बोधित करने अटल जी मंच पर खड़े हुए, सत्ता के गलियारों में एक हलचल सी मच गई और जानबूझ कर पहले तो बत्ती गुल कर लाउडस्पीकरों को बंद करा दिया गया और फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आदेश पर पुलिस द्वारा बर्वरता का जो नंगा नाच हुआ, अवर्णीय व अविस्मरणीय है. असंख्य संतों व अन्य गौ भक्तों को गोलियों से भून दिया गया तथा अनगिनत का आज तक पता नहीं चला कि वे कहाँ गए. किन्तु इस घटना ने अटल जी को गौ-रक्षार्थ और अटल बना दिया. इससे पूर्व 1962 में भी जब प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने गौ हत्याबंदी कानून के लिए आमरण अनशन किया तब भी अटल जी पं दीनदयाल उपाध्याय जी के साथ वहां पर थे.

अपने राजनैतिक जीवन के शिखर पर पहुँच वे जहां देश के 10वें प्रधान मंत्री बने वहीँ उन्हें 10 बार लोकसभा तथा 2 बार राज्यसभा के सदस्य बनने के साथ 3 बार प्रधान मंत्री तथा एक बार विदेश मंत्री बनने का भी अवसर मिला.

श्रीराम जन्म भूमि के लिए हुए विश्व के विशालतम जन-आन्दोलन के अंतर्गत 04.04.1991 को वोट क्लब की अभूतपूर्व रैली में भी देश भर के पूज्य व श्रेष्ठ संतों व विहिप नेताओं के साथ अटल जी भी मंच पर थे. बिहार के समस्तीपुर में जब रथयात्रा को रोक कर आडवाणी जी को गिरफ्तार कर लिया गया तो 30 अक्टूबर 1990 को श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत अवैद्यनाथ जी, स्वामी चिन्मयानंद जी, सर-संघ चालक रज्जू भैया जी, विश्व हिन्दू परिषद् के अध्यक्ष श्री विष्णु हरी डालमीयाँ तथा श्री गुमानमल लोढ़ा के साथ अटल जी ने भी लखनऊ में गिरफ्तारी दी थी.

1992 में जन्मभूमि के सन्दर्भ में जन आक्रोश को भांपते हुए अटल जी ने अनेक प्रयास किए कि कार-सेवा शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो जाए. 9 जुलाई 1992 को प्रारम्भ हुई कार-सेवा को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री पीवी नरसिम्हाराव द्वारा संतों को दिए आश्वासन पर तीन माह के लिए स्थगित तो करवा दिया गया किन्तु, वे उन आश्वासनों पर उदासीन ही बने रहे. नवम्बर 1992 तक लगभग 5 माह के अटल जी के अनवरत प्रयासों के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री टस से मस नहीं हुए और अंततोगत्वा माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय में देरी व केंद्र सरकार की हठ-धर्मिता के कारण 6 दिसम्बर 1992 को राम भक्तों का स्वत: स्फुरित धैर्य आखिर जबाव दे ही गया और 464 वर्ष पुराने पापी जर्जर बाबरी ढांचे को धरासाई होने में 400 मिनिट भी नहीं लगे. किन्तु, उसके बाद विश्व भर में जिहादियों ने हिन्दू समाज पर जो कहर बरापाया वह जग जाहिर है. गौ रक्षा व श्रीराम जन्म-भूमि के सन्दर्भ में काश!! अटल जी की बातें उस समय की राज-सत्ता ने मानी होती तो……


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