दिल्ली में “आपातकाल की कहानियां ” पुस्तक का हरियाणा के राज्यपाल ने किया विमोचन

दिल्ली में स्थित साहित्य अकादमी के सभागार में ‘आर्यवर्त साहित्य संस्कृति संस्थान’ के तत्वावधान में हरियाणा के राज्यपाल प्रोफेसर कप्तान सिंह सोलंकी द्वारा प्रोफेसर अरुण कुमार भगत द्वारा लिखी गई दो पुस्तकें ‘आपातकालीन पत्रकारिता की संघर्ष गाथा’ और’आपातकाल की कहानियां’ का लोकार्पण किया गया | आपको बता दे कि प्रोफेसर अरुण कुमार भगत माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के नोएडा परिसर के प्रभारी हैं| प्रोफेसर भगत की अब तक 15पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है | समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर राज्यपाल प्रोफेसर कप्तान सिंह सोलंकी थे, जबकि विशिष्ट अतिथि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील आंबेकर थे. कार्यक्रम में माखन लाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र तथा हिन्दुस्तानी अकादमी इलाहाबाद के अध्यक्ष डॉ उदय प्रताप सिंह भी मौजूद रहे.

इस अवसर पर हरियाणा के राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा की मुझे बहुत ख़ुशी है कि आपातकाल के काले अध्याय पर एक साथ दो-दो पुस्तकों का लोकार्पण कर रहा हूँ| साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि राजनेता सिर्फ पांच साल के लिए सोचता है जबकि एक दूरदर्शी लेखक अगली पीढ़ी तक के लिए सोचता है| आगे उन्होंने बताया कि आपातकाल के दौरान लोगों को किस तरह की यातनाएं झेलनी पड़ी थी| मुझे इस मौके पर बुक रिलीज से ख़ुशी हो रही है लेकिन जेल यातनाओं की यादें दुःख दे रही हैं| उन्होंने यह भी कहा कि सम्पूर्णानन्द ने कहा था कि ये क्रांति अभी पूरी नहीं हुई है यह अभी भी अधूरी है| उन्होंने इस अवसर पर महात्मा गाँधी के विचारों की चर्चा की तथा कहा कि आज जिस गुड गवर्नेंस की चर्चा चल रही है वो समाज के अंतिम व्यक्ति तक को महसूस होनी चाहिए और उसे ये एहसास होना चाहिए की सरकार उसकी है| उनका कहना था कि १९७५ का आपातकाल सत्ता सुख के लिए लगाया गया था जो बिलकुल नहीं होना चाहिए था|

इसके पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करके हुयी. इस अवसर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय संयोजक मा. सुनील आंबेडकर जी ने कहा कि आपातकाल के समय वो भी प्राथमिक विद्यालय के ही छात्र थे और जो समझा उसके अनुसार उन्होंने आपातकाल की तुलना तानाशाही से की| उन्होंने कहा की लोगों को हमारे लोकतंत्र के इस काले हिस्से से परिचित होने चाहिए| आज की पीढ़ी को आपातकाल के बारे में जानना जरुरी है| जब सारे मीडिया हाउस सरकार के साथ चुप हो गए उस समय इंडियन एक्सप्रेसस के रामनाथ गोयनका ने मह्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी| आज के दौर में उन्होंने युवाओं से ताकीद की कि हमें सोशल मीडिया या फिर बड़े-बड़े मीडिया हाउस पर निर्भर नहीं होना चाहिए, सूचना संजाल और डाटा चोरी के इस दौर में किसी पर पूर्ण रूप से निर्भर रहना सही नहीं| आगे उन्होंने प्रो. भगत को दोनों पुस्तकों के लिए धन्यवाद दिया और इस तरह के लेखन को जारी रखने के लिए कहा|

पुस्तक लोकार्पण के इस मौके पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता के पूर्व कुलपति अचुत्यानंद मिश्र ने कहा कि मैंने आपतकाल को खुद देखा है| उन्होंने उस समय के महत्वपूर्ण घटनाक्रम पर प्रकाश डालते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की भूमिका के बारे में बताया|

इस अवसर पर अरुण भगत ने कहा कि वे पिछले २३ वर्षों से आपातकाल पर शोध कर रहे हैं | प्रो भगत ने बताया कि जब आपातकाल लगायी गयी थी तो वह मात्र १० वर्ष की थे| उन्होंने इस अवसर पर आपातकाल के दौरान के व्यक्तिगत अनुभव का जिक्र करते हुए बताया कि उनके पिता जी एक शिक्षक थे जिनका वेतन आपातकाल के दौरान नसबंदी के लक्ष्य को पूरा न करने के कारण रोक दिया गया था| दिल्ली आकर उन्होंने कमल किशोर गोयनका जी से प्रेरित होकर इस पर शोध किया जिसके लिए उन्होंने गोयनका जी को धन्यवाद दिया|

इस अवसर पर शिक्षकों, लेखकों छात्रों और बुध्धिजीवियों सहित गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही. कार्यक्रम का संचालन अशोक जी ने किया.