द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आएंगे। ।

Pushyamitra Upadhyay

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो ,
अब गोविंद ना आएंगे !!

छोड़ो मेहंदी खड़क संभालो ,
खुद ही अपना चीर बचा लो !!

धूत बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेगे!!

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो ,
अब गोविंद ना आएंगे !!

कब तक आस लगाओगी तुम,
बिके हुए अखबारों से !!

कैसी रक्षा मांग रही हो ,
दुशासन दरबारों से !!

स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं ,
वह क्या लाज बचाएंगे!!

सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो ,
अब गोविंद ना आएंगे !!

कल तक केवल अंधा राजा,
अब गूंगा बहरा भी है!!

होठसील दिए हैं जनता के ,
अब कानों पर भी पहरा भी है !!

तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे ,
किसको क्या समझायेंगे सुनो ?

द्रोपदी शस्त्र उठालो,
अब गोविंद ना आएंगे।।