Award winning Hindi Poem on mental illness – Kya Kabhi Socha Hai ?

क्या कभी सोचा है ?

मानसिक रोगी, ये शायद अदृश्य होते हैं,

क्योंकि, समाज में उन्हें जीने का समान अधिकार नहीं मिला,

उन्हें सम्मान नहीं मिला,

उन्हें स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार नहीं मिला,

तो क्यों कोई किसी को बताकर अपना अपमान कराये,

क्यों कोई खुद का मजाक बनवाये,

या खुद ही मजाक बन जाये,

क्या कभी सोचा है?

मानसिक रोग भी तो एक आम रोग ही है,

क्या कभी सोचा है?

मानसिक रोग भी ठीक हो सकता है

क्या कभी सोचा है?

कैसा लगता होगा अपनी पहचान छुपाना,

कैसा लगता होगा अपने आप को अंधेरे में धकेलना,

क्यों कोई रोशनी बनकर नहीं आता?

क्यों कोई दिया नहीं जलाता?

क्यों कोई अपना हाथ नहीं बढ़ाता?

क्या समाज के डर से?

किस खोखले समाज से डर रहे हैं हम,

जहाँ हर किसी को कोई ना कोई रोग है,

तो क्यों मानसिक रोग का हऊआ है?

क्या मस्तिष्क हमारे शरीर का हिस्सा नहीं?

क्या स्वस्थ मस्तिष्क होना मेरा अधिकार नहीं?

क्या एक आम जीवन जीना, मेरा सपना मात्र ही रह जायेगा?

काश! काश कोई एक बार, बस एक बार मेरा हाथ पकड़ ले,

बस एक बार मेरे साथ खड़ा को जाये,

काश मेरे नाम के साथ से “पागल” शब्द हट जाये,

काश कोई मेरी बात सुने,

काश कोई मेरी बीमारी को समझे,

काश कोई मानसिक रोगों की चुप्पी तोड़े |

काश कोई मानसिक रोगों की चुप्पी तोड़े |

Umang Chauhan

Lady Irwin College

Email- c.umang912